प्रियंका गांधी के लिए दक्षिण भारत की डगर कितनी मुश्किल? राहुल गांधी को यूपी में मिलेंगी कौन-कौन सी चुनौतियां?
18वीं लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) में कांग्रेस पार्टी ने पिछले 2 चुनावों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करते हुए 99 सीटों पर जीत दर्ज की. कांग्रेस पार्टी की तरफ से इस चुनाव में प्रचार अभियान की पूरी जिम्मेदारी राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के हाथों में रही. चुनाव से पहले राहुल गांधी ने 2 बार भारत जोड़ो यात्रा कर देश भर में कार्यकर्ताओं के उत्साह को बढ़ाया वहीं प्रियंका गांधी ने भी इस चुनाव में कई जनसभा कर कांग्रेस की जीत में अहम भूमिका निभाई.
दक्षिण भारत की राजनीति से दूर रही हैं प्रियंका गांधी
प्रियंका गांधी पिछले 1 दशक से राजनीति में पूरी तरह से सक्रिय रही हैं. हालांकि उनका कार्यक्षेत्र मुख्यरूप से उत्तर प्रदेश ही रहा है. पिछले हिमाचल विधानसभा चुनाव में वो हिमाचल में भी सक्रिय दिखी थीं. लंबे समय तक वो उत्तर प्रदेश की प्रभारी भी थी. यूपी विधानसभा चुनाव से पहले प्रियंका गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने जमकर काम किया था. ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ अभियान की शुरुआत भी उनके द्वारा की गयी थी. हालांकि यूपी चुनाव में अच्छी सफलता नहीं मिलने के बाद प्रियकां गांधी की सक्रियता यूपी में कम हो गयी. हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में अमेठी और रायबरेली सीटों पर प्रियंका गांधी के हाथों में ही चुनाव की कमान थी. अब तक की उनकी राजनीति उत्तर भारत में ही रही है. दक्षिण भारत में पहली बार उनकी एंट्री हो रही है.
साउथ इंडिया पर राहुल गांधी का रहा है फोकस
हालांकि 2012 के विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने यूपी में कांग्रेस को अच्छी सफलता दिलायी थी. 2017 में सपा के साथ गठबंधन में कांग्रेस को अच्छी सफलता नहीं मिलने के बाद से राहुल यूपी की राजनीति से दूर ही रहे थे. यूपी से सटे राज्य बिहार, राजस्थान, दिल्ली में भी राहुल गांधी की बहुत अधिक सक्रियता नहीं रही है.
अखिलेश यादव के साथ कॉर्डिनेशन बड़ी चुनौती?
उत्तर प्रदेश में हाल में हुए चुनाव में कांग्रेस और सपा गठबंधन को अच्छी सफलता मिली है. हालांकि कांग्रेस और सपा गठबंधन के अनुभव पहले अच्छे नहीं रहे हैं. कई बार दोनों ही दल आपस में टकराते रहे हैं. ऐसे में उत्तर प्रदेश में राहुल गांधी के लिए अखिलेश यादव के साथ कॉर्डिनेशन करना एक कठिन टास्क होगा.
क्या टकराव को टालने की है कोशिश?
हाल के दिनों में कांग्रेस पार्टी की रणनीति को करीब से जानने वालों का मानना रहा है कि पार्टी में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के बीच व्यक्तिगत रिश्तों में जितनी भी मजबूती रही हो लेकिन उनके समर्थकों में उतनी एकता नहीं दिखती है. ऐसे में यह भी सवाल खड़े हो रहे हैं कि क्या उत्तर और दक्षिण भारत में दोनों ही नेताओं के बीच शक्ति संतुलन बनाने की तैयारी है?
उत्तर भारत और दक्षिण भारत की राजनीति में है अंतर
प्रियंका गांधी को पहली बार मिलेगी लेफ्ट से चुनौती
प्रियंका गांधी की राजनीति में एंट्री ऐसे समय में हुई थी जब देश के अधिकतर हिस्सों में लेफ्ट पार्टियां कमजोर पड़ती रही थी. हालांकि केरल अब भी वाम पार्टियों का गढ़ रहा है. ऐसे में दिल्ली में कांग्रेस लेफ्ट की दोस्ती के बीच प्रियंका गांधी को केरल में लेफ्ट पार्टियों से मुकाबला करना होगा. साथ ही उन्हें केरल में बीजेपी के बढ़ते प्रभाव को कम करने के लिए प्रयास करना होगा.
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) ने मंगलवार को कहा कि वह वायनाड लोकसभा उपचुनाव में प्रियंका गांधी वाद्रा के खिलाफ अपना उम्मीदवार उतारेगी. भाकपा के प्रदेश सचिव बिनॉय विश्वम ने संवाददाताओं से कहा कि वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) में शामिल भाकपा के पास वायनाड लोकसभा सीट है और उसका उम्मीदवार उपचुनाव में चुनाव लड़ेगा. उन्होंने कहा, “इसमें संदेह क्या है? भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) और वाम लोकतान्त्रिक मोर्चा (एलडीएफ) ऐसा कुछ नहीं करेंगे जो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अनुकूल हो. हम निश्चित रुप से वहां अपना उम्मीदवार उतारेंगे.”
क्या वायनाड में कम हुआ है राहुल का जादू?
केरल में 2026 में होने वाले हैं विधानसभा चुनाव
केरल में पिछले 8 साल से कांग्रेस पार्टी सत्ता से दूर है. कांग्रेस 2026 में होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव में वापसी करना चाहती है. ऐसे में प्रियंका गांधी को केरल में पार्टी को इसके लिए खड़ा करने की भी चुनौती होगी. केरल में लोकसभा में कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा रहा है हालांकि विधानसभा में उसे पिछले 2 चुनाव से अच्छी सफलता नहीं मिली है.
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