लोगों की परेशानियों का मैसेज घर-घर तक पहुंचाने में सफलता से मिली जीत : तनुज पूनिया
नई दिल्ली:
Lok Sabha Election 2024: उत्तर प्रदेश की बाराबंकी (Barabanki) लोकसभा सीट से तनुज पूनिया (Tanuj Punia) दो लाख से अधिक वोटों से जीते हैं. उनके पिता पीएल पूनिया कांग्रेस (Congress) के कद्दावर नेता रहे हैं. तनुज पूनिया ने जोरदार जीत हासिल की है. पीएल पूनिया (PL Punia) भी बाराबंकी से सांसद रह चुके हैं. वे राज्यसभा में भी रहे हैं और कांग्रेस के महासचिव भी रहे हैं. पिता-पुत्र से एनडीटीवी ने विशेष बातचीत की.
तनुज पूनिया ने आईआईटी (IIT) से ग्रेजुएशन करने के बाद विदेश में नौकरी की और फिर राजनीति में आ गए. इस बारे में सवाल पर उन्होंने कहा कि, आईआईटी से केमिकल इंजीनियरिंग की और उसके बाद नोएडा में नौकरी भी की. राजनीति में इसलिए आए क्योंकि शुरुआत से आपसे (पिता पीएल पूनिया ) प्रेरणा लेकर देखा था कि किस तरह से समाज में लोगों की मदद करते हैं. तो मैंने सोचा कि दस-पंद्रह साल नौकरी कर लें उसके बाद करते हैं. तो उन्होंने (पीएल पूनिया ) कहा कि दस-पंद्रह साल करोगे तो फिर यहां पर जमीन नहीं बना पाओगे. लोगों से जिस तरह से रिश्ते बनाने होते हैं क्षेत्र में, उस तरह से नहीं बना पाओगे. समय देना है तो अभी करो. तो सलाह को मानते हुए जल्दी ही राजनीति में उतर आए.
राजनीति में कर सकते हैं लोगों की ज्यादा मदद
पीएल पूनिया ने 2009 में बाराबंकी जीती थी, 2014 तक सांसद रहे. उसके 10 साल बाद तनुज ने उनकी हार का बदला लिया. तनुज ने इससे पहले दो विधानसभा चुनाव हारे और एक लोकसभा चुनाव भी हारे. उन्हें चौथी बार में सफलता मिली है. पीएल पूनिया से यह पूछने पर कि तनुज को आईआईटी में पढ़ाने के बाद राजनीति में क्यों बुला लिया? उन्होंने कहा कि, जैसा कि इन्होंने बताया कि राजनीति एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें ज्यादा मदद कर सकते हैं. अगर ये मल्टीनेशनल कंपनी में काम करते रहते तो ये अपने लिए जीते, अपने लिए खाते, अपने लिए कमाते. लेकिन यहां पर खुद का अपना अधिकतर खत्म हो जाता है और जनता के बीच में रहकर जनता के ही काम करना हमेशा लगा रहता है. तो मेरा ये विचार था. हालांकि मैं रिटायरमेंट के बाद राजनीति में आया और हमेशा मुझे लगा कि मुझे पहले आना चाहिए था राजनीति में. बहुत लेट किया. तो वह गलती जो मैंने की थी थी वह इनको नहीं करने देना चाहता था, यही सोचकर इनको आगे बढ़ाया.
मेहनत का फल मिला
विधानसभा चुनाव हारे, लोकसभा चुनाव भी हारे. चौथी बार में सफलता मिली. इस बीच ऐसा नहीं लगा कि कहां फंस गए, इससे अच्छा तो मैं नौकरी ही करते रहते? इस सवाल पर तनुज पूनिया ने कहा कि, नहीं, ऐसा नहीं है. मेहनत का फल तो हमेशा मिलता है. आप (पीएल पूनिया) हमेशा, बार-बार ये बताते हैं कि मेहनत पूरी करो, चौबीसों घंटे लगे रहो, मेहनत का फल मिलेगा ही मिलेगा. कोई भी क्षेत्र हो, नौकरी हो, मजदूरी हो.. मेहनत करेंगे तभी फल मिलेगा. जो मेहनत नहीं करेगा उसकी हो सकता है कि किस्मत एकाध बार चमक जाए लेकिन फिर बाद में वो फेल है. तो मेहनत का जो नतीजा है वह हमें मिला है. इस बार सात लाख 20 हजार वोट मिले हैं. सवा दो लाख से जीते हैं.
क्या हो गया था इस बार जो सवा दो लाख से जीत मिली? सवाल पर उन्होंने कहा कि, मेहनत बहुत की. हमने अलग मेहनत की, समाजवादी पार्टी वाले अलग कर रहे थे. गठबंधन हुआ तो मेहनत साथ में करने लगे. जनता का रुझान ही था इस बार इनको हटाने का. उन्होंने देखा कि किस तरह से किसान परेशान, युवा परेशान.. हर कोई परेशान है. इस परेशानी का हम लोग हमारे नेताओं का मैसेज घर-घर पहुंचा पाए. उस मैसेज से लोग प्रभावित हुए और उन्होंने वोट दिया. उसी का नतीजा है कि इतनी भारी जीत मिली.
इंडिया गठबंधन के पक्ष में गया दलित वोट
पीएल पूनिया ने मायावती के साथ भी काम किया. उसके बाद कांग्रेस में आए. कहा जा रहा है कि इस बार दलितों ने सपा-कांग्रेस गठबंधन को वोट दिया. यह भी कहा जा रहा है कि 13 सीटों पर बीजेपी को मायावती की पार्टी बीएसपी की वजह से मदद मिली. दलित फैक्टर, यह वोट इस बार कहां गया? इस सवाल पर पीएल पूनिया ने कहा कि, जहां तक 13 सीटों पर भाजपा को मदद करने की बात है, वहां पर अधिकांश जगह पर अगर देखेंगे तो मुस्लिम कैंडिडेट थे. तो मुस्लिम वोट है जो अभी दिखाया जा रहा है कि मायावती के पास इतने परसेंटेज है, तो दलित वोट नहीं है. दलित वोटों का हिसाब अगर मैं बता दूं ये एक विधानसभा में मीता गौतम जी बीएसपी से एमएलए थीं तो एक विधानसभा में 40 हजार वोट पाए थे. और अब की बार पांचों विधानसभाओं के मिलाकर लोकसभा में 40 हजार भी नहीं पाए. तो मुश्किल से एक विधानसभा में सात-आठ हजार वोट बचा और बाकी सारा का सारा वोट, जिसमें जाटव वोट सम्मिलित है, बड़े पैमाने पर इंडिया गठबंधन के पक्ष में, कांग्रेस के पक्ष में घूम गया.