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Bastar Migration Rate Increases in Search of MGNREGA Employment ANN


Bastar News Today: छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग से आदिवासी अंचलों में रहने वाले ग्रामीणों के रोजगार की तलाश में लगातार पलायन करने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. हर रोज संभाग के 7 जिलों से रोजगार की तलाश में सैकड़ों ग्रामीण दूसरे राज्यो में पलायन कर रहे हैं. 

इसमें अधिकतर गांव के युवा वर्ग शामिल है. इसके अलावा महिलाएं भी काम की तलाश में पलायन कर रही हैं. ग्रामीणों का कहना है कि छत्तीसगढ़ में मनरेगा के तहत काम तो दिया जाता है, लेकिन उसकी मजदूरी दर काफी कम है और भुगतान भी नकद नहीं किया जाता है.

रोजगारी की तलाश में गांव के गांव हो रहे खाली
ग्रामीणों के मुताबिक, मनरेगा में मिलने वाली मजदूरी से घर परिवार चलाना मुश्किल होता जाता है. यही वजह है कि काम की तलाश में छत्तीसगढ़ से लगे तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु राज्य से बड़ी संख्या में बस्तर के ग्रामीण पलायन कर रहे हैं. इस बढ़ते पलायन को रोक पाने में सरकार नाकाम साबित हो रही है.

बस्तर संभाग में ग्रामीणों के बढ़ते पलायन की वजह से सुकमा,दंतेवाड़ा, बीजापुर और नारायणपुर में गांव के गांव खाली हो रहे हैं. कई घरों में ताला लटका हुआ है. जांच में पता चला कि काम की तलाश में सभी दूसरे राज्यों में पलायन कर चुके हैं. सुकमा के पुष्पाल, कुकानार, पाकेला, छिंदगढ़ कुंडासावली और दंतेवाड़ा के कटेकल्याण, नकुलनार और बीजापुर के भी ऐसे दर्जनों गांव हैं, जहां आदिवासी ग्रामीणों के मकान सूने दिखाई पड़े हैं.

पलायन पर मजदूरों ने क्या कहा?
यहां के सभी ग्रामीण काम की तलाश में दूसरे राज्यों में पलायन कर चुके हैं. पुष्पाल के रहने वाले सोमारू बघेल ने बताया कि उनका बेटा और गांव के कई युवा काम की तलाश में तेलंगाना राज्य के करीमनगर पहुंचकर बोरवेल लगाने का काम करते हैं. इतनी दूर रोजगार की तलाश में जाने की वजह उन्होंने कम मजदूरी बताई है और दूसरा यहां पर रोजगार भी नहीं मिल पाता है.

छत्तीसगढ़ की तुलना में दूसरे राज्यों में नकद पैसा दिया जाता है और मजदूरी भी अच्छी खासी दी जाती है. जिसकी वजह से 12 महीने युवा वहीं रहकर काम करते हैं और तीज त्यौहारों पर कुछ दिन के लिए घर लौटते हैं. बस्तर संभाग के सैकड़ों गांव का यही हाल है. मनरेगा में मजदूरी के सवाल पर ग्रामीणों ने बताया कि मनरेगा में मजदूरी दर 221 रुपये है.

‘मनरेगा की मजदूरी के लिए करना पड़ता है लंबा इंतजार’
ग्रामीणों के मुताबिक, मनरेगी की मजदूरी का भुगतान ऑनलाइन होता है और उन्हें अपने मेहनताने को पाने के लिए 3 से 4 महीने तक इंतजार करना पड़ता है. इसके बाद कई बार बैंकों के चक्कर लगाने पड़ते हैं. 

यहां के ग्रामीणों ने बताया कि मजदूरी के बाद हर मजदूर चाहता है कि उसे उसका मेहनताना समय पर और नकद में मिले, लेकिन ऐसा नहीं होता. ऐसे में उन्हें घर परिवार चलाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. यही वजह है कि गांव के युवा और महिलाएं दूसरे राज्यों में पलायन करने को मजबूर हैं.

श्रम विभाग के पास पलायन का नहीं है कोई रिकॉर्ड
बस्तर से ग्रामीणों के पलायन का रिकॉर्ड श्रम विभाग के पास भी नहीं है. श्रम विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों का कहना है कि उन्हें इसकी जानकारी जरुर मिलती है कि कई गांव के ग्रामीण दूसरे राज्यों में काम की तलाश में अपना घर छोड़ रहे हैं, लेकिन उनके पास पलायन का कोई भी रिकॉर्ड नहीं है. 

अधिकारी बताते हैं कि पलायन रोकने के लिए सूचना मिलने पर समय- समय पर कार्रवाई की जाती है और ग्रामीणों को समझाया भी जाता है. इसके बावजूद इसके हर रोज ग्रामीणों के पलायन का मामला बस्तर में बढ़ता ही जा रहा है.

पलायन रोकने में जनप्रतिनिधि रहे हैं नाकाम
स्थानीय जनप्रतिनिधि भी पलायन रोक पाने में पूरी तरह से नाकाम साबित रहे है. यही वजह है कि बस्तर संभाग के अंदरूनी क्षेत्रों में गांव के गांव खाली हो रहे हैं, जो चिंता का विषय बना हुआ है. आने वाले दिनो में विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में ग्रामीणों के पलायन से दोनों ही पार्टी के लिए बड़ी समस्या उत्पन्न हो सकती है.

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