Loksabha Election 2024 Opposition also kept distance from Muslims gave tickets to 115 in 2019 and only 78 ABPP
भारत में लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया चल रही है. 7 चरणों में चार चरण का मतदान संपन्न हो चुका है और आज 20 मई को पांचवें चरण के लिए वोट डाले जाएंगे. इन चुनावों से पहले प्रचार के दौरान कांग्रेस और सपा खुद को मुस्लिमों की रहनुमा बताने का एक भी मौका नहीं छोड़ रही थी. लेकिन, हकीकत इन सबसे कोसों दूर नजर आ रही है.
दरअसल भारत में लगभग 20 करोड़ की आबादी मुसलमानों की है लेकिन बावजूद इसके यहां संसद से लेकर विधानसभा तक इस समुदाय के प्रतिनिधित्व बेहद कम है. आसान भाषा में कहें तो पिछले कुछ सालों में भले ही भारत में मुस्लिमों की आबादी बढ़ी हो, लेकिन उनका संसद और विधायिकाओं में प्रतिनिधित्व घटा है.
ऐसे में इस रिपोर्ट में विस्तार से समझते हैं कि साल 2019 की तुलना में इस बार कितने मुस्लिम मुख्य दलों में उम्मीदवार हैं….
मौजूदा आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने एक मुस्लिम उम्मीदवार को मैदान में उतारा है, और उसके सहयोगी जदयू ने बिहार में एक और उम्मीदवार खड़ा किया है. लेकिन खास बात ये है कि प्रमुख विपक्षी दलों के बीच भी मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व गिर गया है.
इस चुनाव में कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, आरजेडी, राकांपा और सीपीआई (एम) ने 78 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है, जो कि साल 2019 की तुलना में 37 कम हैं. पिछले लोकसभा चुनाव यानी साल 2019 में विपक्षी पार्टियों ने कुल 115 मुस्लिम प्रत्याशी को मैदान में उतारा था.
2019 में, 26 मुस्लिम उम्मीदवार सांसद के रूप में चुने गए. उनमें से कांग्रेस और टीएमसी के चार-चार, बीएसपी और एसपी के तीन-तीन और एनसीपी और सीपीआई (एम) के एक-एक सदस्य हैं. अन्य लोग असम के एआईयूडीएफ, लोक जनशक्ति पासवान (अब दो गुटों में विभाजित), आईयूएमएल और जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस से थे.
बसपा ने उतारे 35 मुस्लिम उम्मीदवार
बसपा ने इस लोकसभा चुनाव 2024 में 35 मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं, जो विपक्ष की सभी पार्टियों में सबसे ज्यादा है. इन 35 उम्मीदवारों में से आधे से ज्यादा यानी 17 उम्मीदवार उत्तर प्रदेश में उतारे गए हैं. इसके अलावा मध्य प्रदेश में 4, बिहार और दिल्ली में तीन-तीन, उत्तराखंड में दो और राजस्थान, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, झारखंड, तेलंगाना और गुजरात में एक-एक मुस्लिम कैंडिडेट को मैदान में उतारा गया है.
बसपा ने पिछले लोकसभा में कितने मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे
बसपा का इस बार का मुस्लिम उम्मीदवार पिछले लेकसभा चुनाव (2019) की तुलना में थोड़ा कम है. दरअसल साल 2019 में बसपा और समाजवादी पार्टी गठबंधन में मैदान में उतरी थी. उस चुनाव में बसपा ने 39 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था, जिनमें से तीन जीतकर संसद पहुंचने में कामयाब हुए थे. वहीं साल 2014 में बहुजन समाज पार्टी ने कुल 61 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था, जिनमें से एक ने भी जीत दर्ज नहीं की थी.
मुस्लिम उम्मीदवारों के मामले में दूसरे नंबर पर कांग्रेस
मौजूदा लोकसभा चुनावों में बसपा के बाद कांग्रेस ने सबसे ज्यादा यानी 19 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है. जिनमें से पश्चिम बंगाल में 6 मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में हैं, इसके बाद आंध्र प्रदेश, असम, बिहार और यूपी में दो-दो और कर्नाटक, केरल, ओडिशा, तेलंगाना और लक्षद्वीप में एक-एक उम्मीदवार हैं.
वहीं इन प्रत्याशियों के संख्या की तुलना साल 2019 के प्रत्याशियों से की जाए तो ये काफी कम है. दरअसल कांग्रेस ने पिछले लोकसभा चुनाव में कुल 34 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा, जिनमें से 10 बंगाल में और 8 यूपी में थे. इनमें से चार जीते.
साल 2014 में भी कांग्रेस ने लगभग इतनी ही संख्या में 31 मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारे थे, जिसमें से तीन ने जीत हासिल की थी. हालांकि उस वक्ट पार्टी ने 464 सीटों पर चुनाव लड़ा था.
तीसरे स्थान पर टीएमसी
इस बार चुनावी मैदान में टीएमसी के तीसरे सबसे ज्यादा यानी छह मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं, जिनमें से पांच को पार्टी ने अपने गृह राज्य बंगाल में खड़ा किया है और एक उम्मीदवार असम में खड़ा किया गया है.
टीएमसी के मुस्लिम उम्मदवारों की तुलान साल 2019 लोकसभा चुनाव से किया जाए तो पिछले चुनाव में पार्टी ने पश्चिम बंगाल, ओडिशा, त्रिपुरा, असम और बिहार राज्यों में 13 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था. जिन में से चार की जीत भी हुई थी. हालांकि, 2014 में, पश्चिम बंगाल में सत्ता में आने के तीन साल बाद, टीएमसी ने 24 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था और उनमें से तीन ने जीत हासिल की थी.
समाजवादी पार्टी ने कितने कैंडिडेट उतारे
इस चुनाव में मुस्लिम यादव वोटबैंक वाली एसपी ने केवल चार मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है. यह 2019 की तुलना में आधी संख्या है. 2019 में पार्टी ने 8 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था जिनमें से तीन ने जीत हासिल की थी. वहीं साल 2014 में सपा ने 39 मुस्लिम प्रत्याशियों को मैदान में उतारा था लेकिन एक ने भी जीत हासिल नहीं की
हालांकि जहां 2014 में सपा 197 सीटों पर चुनाव लड़ रही थी. जबकि वहीं 2019 में पार्टी ने सिर्फ 49 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और इस बार समाजवादी पार्टी 71 सीटों पर मैदान में हैं.
आरजेडी ने दो मुस्लमान उम्मीदवार को मैदान में उतारा
मुस्लिम-यादव ने वोट बैंक वाली एक और पार्टी राजद साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में पांच उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था लेकिन इस चुनाव में इस पार्टी ने बिहार में केवल दो मुसलमानों को ही टिकट दिया है. साल 2014 में, इसी पार्टी ने छह मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था जिसमें से एक की जीत भी हुई थी.
महागठबंधन गठबंधन के हिस्से के रूप में पांच आरजेडी बिहार में पांच साल पहले की तुलना में इस बार ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ रहा है. साल 2019 में पार्टी ने 19 सीटों पर कैंडिडेट उतारे थे जबकि इस बार पार्टी ने 23 सीटों पर चुनाव लड़ रही है.
मुस्लिम प्रत्याशी उतारने से कतराती क्यों हैं पार्टियां
इस सवाल के जवाब में दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर राजीव रंजन गिरि ने एबीपी न्यूज से बात करते हुए कहा कि देश का कोई भी चुनाव हो उसमें मुस्लिम प्रत्याशी कम उतारे जाने की एक वजह पार्टियों की तुष्टिकरण की नीति है. अभी का हाल देखें तो भारतीय जनता पार्टी भले ही मुस्लिमों से दूरी बरतती हो, लेकिन कांग्रेस-समाजवादी पार्टी जैसी पार्टियों के अभी भी मुस्लिम वोटर्स हैं. यही कारण है कि पार्टियों चुनाव प्रचार के दौरान उनके हितों को लेकर तमाम वादे तो करती है लेकिन जब टिकट देने की बात आती है पार्टी उसी को टिकट देती हैं, जिसके जीत की संभावना ज्यादा हो. इस दौरान कई फैक्टर का ध्यान रखा जाता है. जैसे जातिगत समीकरण, धार्मिक समीकरण, आबादी, लोकप्रियता.
बीजेपी में हाशिए पर क्यों जा रहे मुसलमान?
देश की सत्ता से लगातार मुसलमानों की घटती हिस्सेदारी पर अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष और बीजेपी नेता आतिफ रशीद कहते हैं- हमारे पास जो डाटा है, भारतीय जनता पार्टी को वोट करने वाले 99.9 प्रतिशत वोटर्स हिंदू हैं. मुसलमानों का जो वोटिंग पैटर्न है, वो बीजेपी को हराने का है. यानी मुसलमान भारतीय जनता पार्टी को हराने के लिए वोट करते हैं. ऐसे में बीजेपी मुसलमानों को मंत्री बनाकर हिंदुओं को नाराज करने का खतरा क्यों उठाएगी?
70 साल से मुसलमान इस मुगालते में है कि वही सरकार चुनते हैं, जबकि हकीकत कुछ और है. हमेशा से हिंदू-मुसलमान मिलकर सरकार बनाते रहे हैं और दोनों की हिस्सेदारी रही है. बीजेपी मुस्लिमों को टिकट देती है, तो मुस्लिम उम्मीदवार को सब मिलकर हरा देते हैं. इसलिए पार्टी ने टिकट देना भी बंद कर दिया.