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गलत अगर गलत नहीं लगता, तो आपके इंसान बनने में कमी

प्रवेश का वीडियो मंगलवार को वायरल हुआ था. यह 10 दिन पुराना बताया जा रहा है.

मध्य प्रदेश के सीधी में आदिवासी युवक पर पेशाब करने के मामले में राजनीति गर्माई हुई है. घटना की तस्वीरें अधिकतर लोगों ने देख ली होंगी. पहले सोशल मीडिया पर अपनी पूरी वीभत्सता में और फिर टीवी और अखबारों के जरिए. घटना की तस्वीरें मैंने भी देखी. पहले सोशल मीडिया पर बस ऐसे ही स्क्रॉल करते हुए, अचानक. स्तब्ध रह गई थी मैं. जैसे अचानक सब कुछ जड़ हो गया हो. शायद नहीं होना चाहिए था. खबरें देना ही काम है. हर रोज़ कुछ ना कुछ ऐसा नज़र से गुज़रता है, जो भले ही दर्शकों तक ना पहुंचे पर बिना धुंधलाए, बिना छिपाए हम पत्रकारों के सामने कई तस्वीरें गुज़रती हैं. वो वीडियो वायरल हो रहा था. उसे एक बार देखने के बाद मैं इतना सकते में थी कि दोबारा उसे नहीं देखना चाहती थी. इसे झुठलाने के लिए नहीं… बस इसलिए कि इतना अमानवीय देखा ना जाए.

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वो एक भयावह कृत्य है. लोग पूछते हैं उस शख्स ने किस कारण से ये किया, लेकिन मैं पूछती हूं क्या ऐसा करने के लिए भी कोई कारण होना चाहिए? मैं जब ये लिख रही हूं मेरे दिमाग में वो तस्वीरें चल रही हैं, जो मुझे सबसे ज्यादा झकझोर रही हैं. हर बार… 

 

जिसके साथ ये हो रहा था, उसके सामने कोई भीड़ नहीं थी मारने वाली. कोई हथियार नहीं था, जिसकी नोक पर वो हो. लेकिन जब उसके साथ ये हो रहा था तब वो वहां बैठा रहा. न तो वो भागा, ना गुस्से में मारने उठ बैठा. बस ऐसे बैठा रहा कि ये क्रूरता सहना ही उसकी नियति है, जिसके सामने ना जाने कब से वो समर्पण किए बैठा हो. जो जाति के आधार पर दशकों से हर जगह से ठोकर खा रहा हो, शायद उसने ये भी नहीं सोचा होगा.

उसके लिए बस एक और दिन था. उसने ना पुलिस में कोई शिकायत दी ना कुछ और किया. बात सामने तब आई, जब सोशल मीडिया पर ये चल पड़ा. उसने इसे भी अपने जीवन का सत्य समझा. ये हर भारतीय के लिए शर्मनाक होना चाहिए, उसे परेशान करना चाहिए. आज़ादी के 75 साल के बदलाव उस शख्स के मानस तक क्यों नहीं पहुंचे, ये सवाल हम सब से है.

कभी देखा है कि किसी कामगार को या अपने घर बर्तन धोने वाली महिला को आपने बैठने बोला हो और वो ज़मीन पर बैठ गए. ये दशकों के दमन का परिचायक है. जब जहां देखें इसे रोकें. हर दिन हर कदम पर इन चीज़ों को रोकें. आत्मसम्मान, सम्मान सिर्फ आपका विशेषाधिकार नहीं. मानवीय व्यवहार हर मानव का अधिकार है, कर्तव्य है.

सीएम शिवराज चौहान ने आदिवासी मज़दूर दशमत रावत के चरण धोए, माफी मांगी. ये एक संदेश है. जिसने ये कृत्य किया उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ है. घर ढहा दिया गया है. क्या उसे कोई पश्ताचाप है? या ये लगता है कि उसके साथ गलत हुआ? सारा फर्क यही है.

कुछ चीज़ें ऐसी होती हैं, जहां सही और गलत बिल्कुल साफ-साफ दिखाई देता है. ये ऐसा ही वाकया है. अगर इस मामले में भी आपको गलत… गलत नहीं लगता, तो आपके इंसान बनने में कुछ कमी रह गई है.

(कादम्बिनी शर्मा NDTV इंडिया में एंकर और सीनियर एडिटर (फॉरेन अफेयर्स) हैं…)

डिस्क्लेमर: इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.



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