Lok Sabha Election 2024 Why Is BJP Seeking Votes Name Of Muslim Ruler Hasan Khan Mewati In Haryana – लोकसभा चुनाव: हरियाणा में मुस्लिम शासक हसन खान मेवाती के नाम पर भाजपा क्यों मांग रही है वोट
दरअसल सैनी 16वीं सदी के मेवाती शासक हसन खान मेवाती की तारीफ कर रहे थे. मेवाती ने मुगल शासक बाबार के खिलाफ 1526 में पानीपत की लड़ाई में हिस्सा लिया था. उन्होंने 1527 में खानवा की लड़ाई में भी मुगल सेना के खिलाफ हथियार उठाए थे. इसी युद्ध में लड़ते हुए वो वीरगति को प्राप्त हुए थे.
मेवात की राजनीति
इन दिनों हरियाणा के भाजपा नेता मुस्लिम बहुल मेवात में हसन खान मेवाती की तारीफों के पुल बांध रहे हैं. मेवात का इलाका हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के बीच फैला हुआ है. मुख्यमंत्री पद से हटने से तीन दिन पहले नौ मार्च को मनोहर लाल खट्टर ने नूंह के बड़कली चौक पर हसन खान मेवाती और गांधी ग्राम में महात्मा गांधी की प्रतिमाओं का अनावरण किया था.इसी अवसर पर उन्होंने सरकारी स्तर पर 15 मार्च को मेवाती का शहीदी दिवस मनाने की घोषणा की थी.इसके अलावा उन्होंने नलहर के शहीद हसन खान मेवाती राजकीय मेडिकल कॉलेज में हसन खान मेवाती के नाम पर एक शोध पीठ की स्थापना की भी घोषणा की थी. इस मेडिकल कॉलेज की स्थापना कांग्रेस सरकार में हुई थी.
नूंह की सांप्रदायिक हिंसा का जिक्र करते हुए खट्टर ने कहा था कि बाहरी तत्व मेवात के लोगों की एकता को तोड़ना चाहते हैं. उन्होंने लोगों से अपील की थी कि वो हसन खान मेवाती की देशभक्ति से प्रेरणा लेते हुए भाईचारा बनाए रखें.यह पहला मौका था, जब नूंह की सांप्रदायिक हिंसा के बाद सरकार ने मेवात के मुसलमानों की सुध ली थी.
बीजेपी नेताओं को क्यों याद आ रहे हैं हसन खान मेवाती?
प्रतिमा अनावरण के करीब तीन महीने बाद हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने पुन्हाना की रैली में नूंह को पवित्र भूमि बताया. उन्होंने कहा कि हमें इस बात पर गर्व होना चाहिए कि राजा मेवाती ने अपने 12 हजार सैनिकों के साथ बाबर के सामने झुके नहीं,बल्कि लड़ते हुए जान दी.सैनी ने कहा कि किसी भी सरकार ने राजा मेवाती की शहादत पर ध्यान नहीं दिया,लेकिन उन्हें इस बात पर गर्व है कि अगर किसी ने इस काम को किया है तो वह हैं पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर जिन्होंने बडकली चौक पर उनका शहीदी दिवस मनाया.
मेवात में यह पहली बार नहीं था कि कोई हिंदूवादी नेता हसन खान मेवाती की तारीफ कर रहा हो. इससे पहले 2015 में मेवात में ही आने वाले राजस्थान के भरतपुर में आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत आए थे. उस समय उन्होंने कहा था कि मेवाड़ के राजा राणा सांगा के योद्धा हसन खान मेवाती ने बाबार का अपनी सेना में शामिल होने का न्योता ठुकरा दिया था, वो भारत माता के सपूत थे. उन्होंने कहा था कि हसन खान मेवाती ने कहा था कि मेरी भाषा, धर्म और जाति बाबार की ही तरह हो सकती है, लेकिन पहले वो भारतीय और भारत माता के बेटे हैं.इसके बाद 2021 में भी भगावत ने मुसलमानों से मेवाती जैसे देशभक्ती का रास्ता अपनाने की अपील की थी.
कितना पिछड़ा है मेवात?
दरअसल नूंह की करीब 80 फीसदी आबादी मुसलमानों की है.नूंह जिले में तीन विधानसभा क्षेत्र हैं. इन तीनों सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है.इन्हीं में से फिरोजपुर झिरका के विधायक मामन खान को सांप्रदायिक दंगे के दौरान गिरफ्तार किया गया था. ये तीनों विधानसभा क्षेत्र गुड़गांव संसदीय क्षेत्र में आते हैं. इस सीट पर भाजपा के राव इंद्रजीत सिंह 2009 से जीत रहे हैं.राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के करीब का यह जिला देश के सबसे पिछड़े जिलों में से एक है.
नरेंद्र मोदी सरकार ने जनवरी 2018 में आकांक्षी जिला कार्यक्रम (एडीपी) शुरू किया था. इसमें देश के सबसे पिछड़े 112 जिलों को शामिल किया गया था. इस सूची में नूंह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का एक मात्र जिला था. इस इलाके में केंद्र सरकार ने विकास के कई कार्यक्रम शुरू किए हैं. इसका असर भी नूंह जिले में दिखाई देता है. इन विकास कार्यों का जिक्र भाजपा नेता अपने भाषणों में करते हैं. विकास के अलावा वो मेवात के भाईचारे का जिक्र करना नहीं भूलते हैं.जैसे भाजपा उम्मीदवार राव इंद्रजीत सिंह को प्रचार के दौरान यह कहते सुना जा सकता है कि मैंने कभी भी किसी के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया.
कौन थे हसन खान मेवाती?
हसन खान मेवाती का जन्म राजस्थान के अलवर के खानजादा राजवंश में हुआ था.वो मुस्लिम राजपूत थे. हसन खान मेवाती को ‘शाह-ए-मेवात’और’दिल्ली के कोतवाल’ के नाम से भी जाना जाता है.वो दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी के ममरे भाई थे.बाबर ने 1526 में पानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहिम लोदी को हरा दिया था.लोदी की हार दिल्ली सल्तनत का अंत और मुगल काल की शुरुआत थी.इस लड़ाई में इब्राहिम लोदी और हसन खान मेवाती के पिता अलावल खान की मौत हो गई थी. बाबर की सेना ने मेवाती के बेटे ताहिर को बंधक बना लिया था.ताहिर की रिहाई के बदले में बाबर ने हसन खान मेवाती को मुगल सेना में शामिल होने का न्योता दिया था. इसे मेवाती ने ठुकरा दिया था. मुगल सेना से लड़ने के लिए मेवाती ने मेवाड़ के राजा राणा सांगा से हाथ मिलाया था. वो खानवा की लड़ाई में वीरगति को प्राप्त हुए थे.
ये भी पढें: भारत की चाबहार डील से क्यों बौखलाया अमेरिका, पढ़े इसके पीछे की पूरी इनसाइड स्टोरी