UP Lok Sabha Election Varanasi Political equations change due BSP may increase moves BJP problems ann
Lok Sabha Election 2024: देश की सबसे चर्चित और हाई प्रोफाइल वाराणसी लोक सभा सीट पर 1 जून को वोट डाले जाएंगे. लेकिन अभी से ही यहां का सियासी पारा बढ़ने लगा है. वर्तमान समय में यहां पर बीजेपी कांग्रेस के बाद बहुजन समाज पार्टी ने अपने प्रत्याशी का ऐलान कर दिया है. इसमें कोई दो राय नहीं कि वाराणसी की लोकसभा सीट पर बीते 1.5 दशक में चर्चित चेहरे और दिग्गज नेताओं का प्रभाव खूब देखा गया है.
यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ-साथ भाजपा के वरिष्ठ नेता डॉक्टर बोली मनोहर जोशी और आम आदमी पार्टी के प्रमुख व दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल का नाम शामिल रहा है. निश्चित ही वाराणसी के स्थानीय नेताओं को चुनावी मैदान में इन्हें टक्कर देने के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ी है.
वाराणसी के वोटर का भरोसा किस पर
बीजेपी के शीर्ष नेताओं ने वाराणसी के लोकसभा सीट के साथ-साथ पूर्वांचल में भी बड़ी जीत हासिल करने के लिए खुद कमान संभाल ली है. प्रधानमंत्री मोदी के लिए वाराणसी से तो बीजेपी पदाधिकारीयों द्वारा महीनों पहले से ही सबसे बड़ी जीत का दावा किया जा रहा हैं. हालांकि यह इतना आसान भी नहीं होगा. क्योंकि वाराणसी के बदलती तस्वीर के साथ-साथ बेरोजगारी, महंगाई और जनपद की बुनियादी मुद्दों को भी वोटर समझते हुए मतदान केंद्र पर पहुंचेंगे. लेकिन यहां से बसपा के उम्मीदवार उतारने से तो निश्चित ही इंडिया गठबंधन की चुनौतियां बढ़ेंगी.
बसपा यहां बढ़ा सकती है इंडिया गठबंधन की मुश्किलें
बहुजन समाज पार्टी ने वाराणसी के लोकसभा सीट पर अतहर जमाल लारी को मैदान में उतारा है. जो इससे पहले समाजवादी पार्टी और कौमी एकता दल से जुड़े रहे है. वरिष्ठ पत्रकार पवन सिंह की माने तो मुस्लिम समाज से आने वाले अतहर जमाल लारी को बुनकर समाज, आम मुस्लिम मतदाता और जो समाजवादी पार्टी से जुड़े वोटर रहे है. उनका साथ मिल सकता है. हालांकि इससे वाराणसी के इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी अजय राय की राह थोड़ी मुश्किल हो सकती है.
अजय राय को कांग्रेस पार्टी के कोर वोटर के साथ-साथ आम मुस्लिम मतदाता व समाजवादी पार्टी के वोटरों का भरपूर साथ बहुत आवश्यक है. माना जा रहा है कि कुछ प्रतिशत भी वोटर अगर बहुजन समाज पार्टी की तरफ रुख करते हैं तो निश्चित ही वाराणसी की सीट पर इंडिया गठबंधन के लिए चुनौती और बढ़ेगी. और चुनाव के शुरुआती दिनों में भी हमने देखा कि एनडीए के खिलाफ लड़ाई में सपा और कांग्रेस पार्टी ने सीटों की खींचातानी को दूर रखते हुए एक साथ चुनावी मैदान में उतरने का निर्णय ले लिया.
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