Lok Sabha Election 2024 Secret deal between Akhilesh Yadav Mayawati in West UP spoil BJP plan
UP Lok Sabha Election 2024: सियासत में इन दिनों टिकट बंटवारे का मौसम चल रहा है. उत्तर प्रदेश की बात करें तो बीजेपी, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बाद बीएसपी ने भी 25 उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है. पहले चरण के लिए बुधवार को नामांकन का अंतिम दिन है. लेकिन जैसे ही मायावती ने प्रत्याशियों की घोषणा की तो तो उनके मुस्लिम उम्मीदवारों को लेकर खूब चर्चा हुई.
राजनीति के जानकार कहने लगे कि मायावती ने समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का खेल खराब करने की तैयारी कर ली है. लेकिन जब मैंने बीएसपी के इन 25 उम्मीदवारों के बारे में पड़ताल की तो मामला कुछ और ही दिखाई देने लगा है. मायावती के ये प्रत्याशी ऐसे हैं जो 2024 के चुनाव में दोधारी साबित हो सकते हैं. यानि मायावती कहीं इंडिया गठबंधन को नुकसान हो सकता हैं तो कहीं NDA को नुकसान पहुंचाती नजर आ रही हैं.
बीएसपी ने अभी तक 25 उम्मीदवारों के नाम की घोषणा की है. पहली लिस्ट में 16 उम्मीदवार थे, जिसमें 7 मुस्लिम थे. BSP की ये लिस्ट खूब सुर्खियों में रही थी. लेकिन 24 घंटे के भीतर ही BSP ने 9 और प्रत्याशियों की घोषणा कर दी. खास बात ये थी कि इन 9 प्रत्याशियों में कोई भी मुस्लिम नहीं था. सुरक्षित सीटों को छोड़ दिया जाए तो बाकी प्रत्याशियों में कोई ब्राह्मण, कोई राजपूत और कोई जैन है.
मायावती ने जिंदा किया पुराना नारा
BSP ने अभी तक जिन 25 सीटों के लिए प्रत्याशी घोषित किए हैं, उसमें 4 ब्राह्मण हैं. आपको याद होगा एक वक्त में बीएसपी ने नारा दिया था- ‘पंडित शंख बजाएगा, हाथी बढ़ता जाएगा’. आज इस नारे को फिर कैसे मायावती ने जिंदा कर दिया है. मथुरा से मायावती ने कमलकांत उपमन्यू को टिकट दिया है, जो ब्राह्मण समाज से आते हैं. समाज के बीच इनकी मजबूत पकड़ मानी जाती है, जबकि इस सीट से कांग्रेस चुनाव लड़ रही है.
मेरठ से मायावती ने देवव्रत त्यागी को उतारा है, यहां पहली बार कोई त्यागी नेता किसी बड़ी पार्टी के सिंबल पर चुनाव लड़ रहा है. पिछले दिनों त्यागी समाज के वोटर बीजेपी से नाराज भी दिखे थे, यानी इसे भूनाने की कोशिश हो रही है. इसी तरह बीएसपी ने फतेहपुर सीकरी से रामनिवास शर्मा को प्रत्याशी बनाया है. ये भी ब्राह्मण समाज से हैं, इस सीट पर ब्राह्मण वोटर बड़ी तादात में हैं.
कानपुर देहात यानि अकबरपुर लोकसभा सीट से मायावती ने राजेश द्विवेदी को टिकट दिया है. ये भी ब्राह्मण समाज से हैं और इस इलाके में ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या अच्छी-खासी है. सूत्रों की मानें तो बीएसपी अभी कई और सीटों पर ब्राह्मण कैंडिडेट उतारने की तैयारी कर रही है. अयोध्या में सच्चिनानंद पांडेय के नाम पर लगभग-लगभग सहमति बन चुकी है. जबकि उन्नाव से अशोक पांडेय को उतारा जा सकता है.
क्या कहते हैं जानकार
वरिष्ठ पत्रकार हेमंत तिवारी बताते हैं कि इस बार BSP के उम्मीदवारों के नाम बहुत चौंकाने वाले दिख रहे हैं. कहीं ब्राह्मण कैंडिडेट है तो कहीं राजपूत कैंडिडेट हैं. दरअसल, आम तौर पर ब्राह्मण समाज के वोटर को बीजेपी का सपोर्टर माना जाता है. लेकिन जब उसके ही समाज का कोई प्रत्याशी किसी पार्टी के सिंबल पर चुनाव लड़ता है, तो बड़ी संख्या में वोटर उसके साथ जुड़ते हैं.
बहुत से लोगों के मन में सवाल होगा कि मायावती और अखिलेश यादव अगर पर्दे के पीछे मिलकर काम कर रहे हैं तो चुनाव में एक साथ क्यों नहीं आ जाते? 2019 की तरह गठबंधन क्यों नहीं कर लेते? दरअसल, इसके पीछे भी एक बड़ी वजह हो सकती है. ये वजह जनवरी के महीने में खुद मायावती ने ही बताई थी. गठबंधन के सवाल पर मायावती ने कहा था कि सपा के वोट उनकी पार्टी के प्रत्याशियों को शिफ्ट नहीं होते है.
मायावती ने कहा था कि गठबंधन कर चुनाव लड़ने पर बसपा का वोट पूरा चला जाता है, लेकिन उनका अपना बेस वोट बसपा को ट्रांसफर नहीं होता है. खासकर अपर क्लास का वोट बसपा को ट्रांसफर नहीं हो पाता है. ये बात बिल्कुल सही नजर है. 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा और बीएसपी के लिए नतीजे उस हिसाब से नहीं आए, जिसका उन्होंने अनुमान लगाया था.
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पीएम का सपना दिखा रहे अखिलेश यादव
यही वजह है कि ये दोनों पार्टियां अब गठबंधन से बच रही हैं. हालांकि दोनों नेताओं का एक दूसरे पर टिप्पणी ना करना, ये भी बताता है कि इस बार का चुनाव अलग तरीके से लड़ा जा रहा है. बीते दिनों अखिलेश यादव ने कहा था कि समाजवादियों ने हमेशा बसपा प्रमुख को सम्मान देने का काम किया. अखिलेश ने कहा कि हमने तो यह भी संकल्प लिया था कि देश की प्रधानमंत्री उस वर्ग से हो, जिन्होंने हजारों साल समाज की तमाम बुराइयों का सामना किया. सपा तो उन्हें प्रधानमंत्री बनाने का सपना देख रही थी.
ऐसे कई मौके आए जब पत्रकारों ने अखिलेश यादव से मायावती को लेकर सवाल किया. लेकिन कभी भी उन्होंने तीखे शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया. अब मैं बीएसपी के कुछ और प्रत्याशियों के बारे में आपको बताता हूं, जो पश्चिमी यूपी की राजनीति में चर्चा का विषय बने हुए हैं.
मुरादाबाद से बीएसपी ने इरफान सैफी को उतारा है, जबकि सपा यहां से पूर्व विधायक नीरज मौर्य को उतार चुकी है. यानि दोनों पार्टियों ने अलग-अलग समुदाय के प्रत्याशी उतारे हैं. कन्नौज से अखिलेश यादव के चुनाव लड़ने की चर्चा है और यहां से बीएसपी ने मुस्लिम प्रत्याशी उतारा है. ये भी अपने आप में एक अलग संकेत देता है.
बदला-बदला दिख रहा चुनाव
इसी तरह पीलीभीत जो वरुण गांधी की सीट है, यहां से सपा ने भगवत शरण गंगवार को प्रत्याशी बनाया है और बीएसपी ने मुस्लिम समाज के अनीश अहमद खान को प्रत्याशी बनाया है. यानि जिन सीटों पर बसपा ने मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं. उन अधिकतर सीटों पर सपा ने गैर मुस्लिम को टिकट दिया है.
हालांकि कांग्रेस की सीटों पर स्थिति अलग है. सहारनपुर से बीएसपी ने माजिद अली को उतारा है तो कांग्रेस ने इमरान मसूद को प्रत्याशी बनाया है. अमरोहा में मायावती ने मुजाहिद हुसैन को प्रत्याशी बनाया है. कांग्रेस ने यहां से दानिश अली को टिकट दिया है. मायावती की ये रणनीति कई लोगों के मन में सवाल पैदा कर रही है. सवाल ये है कि क्या ये मायावती और अखिलेश यादव का कोई नया सियासी प्रयोग है.
इस चुनाव में बहुत कुछ बदला-बदला दिखाई दे रहा है. अब मैं आपको अखिलेश यादव के कुछ और इशारे बताता हूं. अखिलेश यादव ने चंद्रशेखर आजाद से पूरी तरह दूरी बना ली. सवाल ये है कि क्या इसके पीछे मायावती की मजबूरी है? अखिलेश पहले की तरह मायावती को BJP की B टीम नहीं बता रहें, क्या मायावती को लेकर अखिलेश यादव का नजरिया बदल गया है?