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Jabalpur Congress leader refuse to contest MP Lok Sabha Election 2024 know reason ANN


MP Lok Sabha Election 2024: 28 साल से बीजेपी का गढ़ बन चुकी जबलपुर लोकसभा सीट पर कांग्रेस अभी तक कोई योग्य उम्मीदवार नहीं ढूंढ पाई है. बीजेपी ने दस दिन पहले अपने उम्मीदवार आशीष दुबे का ऐलान कर दिया था.

आशीष दुबे संगठनात्मक मीटिंग के साथ चुनावी बिसात बिछाने लग गए है, लेकिन कांग्रेस में रायशुमारी ही चल रही है. कहा जा रहा है कि कांग्रेस के दिग्गज नेताओं के चुनाव लड़ने से इनकार करने के कारण चुनौती दे सकने वाले उम्मीदवार की खोज कठिन होती जा रही है.

दरअसल, बदलती सियासी तस्वीर और बदलते समीकरणों ने मध्य प्रदेश में हैरतअंगेज बदलाव खड़े कर दिये हैं. कांग्रेस से जुड़े सूत्रों का कहना है कि जबलपुर के कई कांग्रेसी नेताओं ने भोपाल से लेकर दिल्ली तक बहुत आग्रहपूर्वक ये खबर भेजी है कि वो चुनाव नहीं लड़ सकेंगे. विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त और लोकसभा में हार के डर से नेताजी पीछे हट रहे हैं.

मध्य प्रदेश में कांग्रेस 28 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. खजुराहो की एक सीट कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन के सहयोगी समाजवादी पार्टी को दी है. दस सीटों पर कांग्रेस ने उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया है. बाकी बची हुई 18 सीटों के लिए अभी भी माथापच्ची चल रही है.

कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि केंद्रीय नेतृत्व ने पीसीसी से बची हुई 18 सीटों के लिए सिंगल नामों की लिस्ट भेजने को कहा है, लेकिन दिग्गजों के साथ दूसरी पीढ़ी के नेताओं के इनकार करने के कारण उलझन बढ़ती जा रही है.

किसने किया शुरू
सबसे पहले राज्य सभा सांसद विवेक तन्खा ने कहा था कि वे अब कभी चुनाव नहीं लड़ेंगे. वजह जो भी रही हो पर तन्खा का इनकार सबसे पहले आया था. इसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी जबलपुर से चुनाव लड़ने से साफ मना कर दिया था. इसके अलावा वर्तमान विधायक लखन घनघोरिया के साथ तीन पूर्व विधायक तरुण भनोट,संजय यादव और विनय सक्सेना ने भी पीसीसी को लोकसभा चुनाव लड़ने के प्रति अनिच्छा जाहिर कर दी है. 

पूर्व नगर कांग्रेस अध्यक्ष दिनेश यादव, सौरभ शर्मा, सत्येंद्र यादव और अंजू सिंह बघेल का नाम भी चर्चा में है. हालांकि, कुछ एक नाम हैं, जो टिकट लेने तैयार हैं पर उन्होंने कुछ शर्तें भी पार्टी के सामने रख दी हैं. पार्टी में उनकी शर्तों पर विचार चल रहा है. पहले खबर थी कि पैनल में दो नाम आ चुके हैं, लेकिन, बाद में नए नाम आ गए और अब कुछ भी स्पष्ट तौर पर कुछ नहीं कहा जा रहा है.

वहीं, कांग्रेस नेता सत्येंद्र यादव ने एबीपी लाइव से बातचीत में कहा कि यदि पार्टी टिकट देती है तो वे चुनाव लड़ने को तैयार है. इतना ही नहीं वे चुनाव जीतेंगे और कांग्रेस का जबलपुर सीट का 28 साल का सूखा भी खत्म कर देंगे. वे मैदान छोड़ने वालों में से नहीं है.

हार का डर या कुछ और वजह
वरिष्ठ पत्रकार रविन्द्र दुबे का कहना है कि चुनाव में हार-जीत होती ही है. कांग्रेसी सिर्फ हार के डर से टिकट से कन्नी काट रहे हों,ऐसा नहीं है. असल में कांग्रेस नेता अच्छे से जानते हैं कि यदि टिकट मिली तो पूरा चुनाव अकेले ही लड़ना पड़ेगा.

अव्वल तो पार्टी के पास संगठन का ढांचा ही नहीं है तो दूसरे, नेता भी ऐन मौके पर साथ नहीं आते. ऐसा एक नहीं, कई चुनावों में प्रमाण सहित देखा-सुना गया है.इसके अलावा नेताओं को लोग रहा है कि जेब के करोड़ों अलग खर्च हो जाएंगे. यही वजह है कि कांग्रेस में इस बार टिकट को लेकर मारामारी नहीं है.

जबलपुर सीट का इतिहास
पहले आम चुनाव के बाद से 1974 तक जबलपुर लोकसभा सीट पर कांग्रेस का दबदबा था. सेठ गोविन्द दास यहां से 5 बार निर्वाचित हुए. 1974 में सेठ गोविंद दास के निधन के बाद हुए उप चुनाव में विपक्ष के प्यूपिल्स कैंडिडेट के रूप में शरद यादव ने पहली पर लोकदल के टिकट पर चुनाव लड़ते हुए कांग्रेस को शिकस्त दी थी.

इसके बाद 1977 में शरद यादव दूसरी बार जबलपुर सीट से सांसद बने. साल 1982 में पहली बार जबलपुर में कमल का फूल खिला और बाबूराव परांजपे पर बीजेपी के पहले सांसद बने. दो साल बाद ही 1984 में कांग्रेस ने सीट पर फिर से कब्जा कर लिया. 

जब कर्नल अजय नारायण मुशरान ने आम चुनाव में बाबूराव परांजपे को पराजित कर दिया.1989 के चुनाव में यह सीट फिर बीजेपी के खाते में आ गई. साल 1991 के चुनाव में कांग्रेस ने फिर इस सीट पर कब्जा जमा लिया. इसके बाद 1996 से जबलपुर लोकसभा सीट बीजेपी का गढ़ बन चुकी है.

वर्तमान में राज्यसभा सदस्य विवेक तंखा जैसे धुरंधर भी दो बार यहां से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव हार गए. जबलपुर सीट से बीजेपी नेता बाबूराव परांजपे तीन बार, जयश्री बनर्जी एक बार और राकेश सिंह चार बार सांसद बने.

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