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Asaduddin Owaisi Tells In Lok Sabha How Police Beaten Him Up In 1999 AIMIM Chief Slams Criminal Law Amendment Bills


केंद्र की ओर से लाए गए तीन नए क्रिमिनिल लॉ बिल बुधवार (20 दिसंबर) को लोकसभा में ध्वनिमत से पास हो गए. विधेयकों को लेकर सदन में चर्चा के दौरान एआईएमआईएम के प्रमुख और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने नए कानूनों पर आपत्ति जताई और सवाल किया कि पुलिस को हर बात की इजाजत दे दी गई है. उन्होंने संसद में बताया कि 1999 में पुलिस ने उनकी बहुत पिटाई की थी और उन पुलिसवालों को प्रोमोट कर दिया गया.

उन्होंने कहा, ‘सर, मुझे पुलिस ने पीटा सर. 22 दिसबंर, 1999 को मेरे सिर में 20 टांके लगे. पीठ से लेकर पैर तक मुझे पीटा गया. आपको मालूम सर क्या हुआ. तेलुगु देशम पार्टी की सरकार थी. उन्होंने उन दोनों पुलिस वालों को, जिन्होंने मुझे मारा था, उन दोनों को प्रोमोट करके आईपीएस बना दिया.’ ओवैसी ने यह भी कहा कि याद रखिए जिंदगियां बर्बाद करने का काम आप लोग कर रहे हैं. इसका सबसे बड़ा नुकसान मुसलमानों, दिलतों और आदिवासियों को होगा.

संसद में भड़क पड़े ओवैसी
इस दौरान, ओवैसी संसद में भड़क गए और कहने लगे, ‘अरे मैं तैयार हूं मरने के लिए. तुम मारोगे क्या? बोलो कहां मारोगे बताओ? तुम्हारी गोलियां खत्म हो जाएंगी मैं जिंदा रहूंगा गोलयों से मैं डरने वाला नहीं हूं?’ केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा में तीन विधेयक भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा (द्वितीय) संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य (द्वितीय) विधेयक 2023 पेश किए थे. ये तीनों विधेयक भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेने के लिए लाए गए हैं.

तीनों कानूनों पर उठाए सवाल
ओवैसी ने आरोप लगाया कि ये तीनों (प्रस्तावित) कानून खुद आपराधिक हैं. ये जुर्म की रोकथाम से ज्यादा सरकार के अपराधों को कानूनी शक्ल देने के लिए बनाए जा रहे हैं. उन्होंने आगे कहा कि आज सच्चाई यह है कि सूट पहनने वाला जेल से बच जाता है और खाकी पहनने वाला किसी को गोली मार सकता है उसकी कोई जवाबदेही तय नहीं होती.

असदुद्दीन ओवैसी ने आगे कहा, ‘अगर भगत सिंह और महात्मा गांधी होते तो इन तीनों प्रस्ताविक कानूनों को ‘रोलेट ऐक्ट’ करार देते. अगर सुधार करना था तो हमें उन प्रावधानों को निकालना था जो हुकूमत और पुलिस को मनमानी करने की इजाजत देते हैं.’ ओवैसी ने यह भी दावा किया कि देश के कारावासों में बंद लोगों में सबसे ज्यादा मुस्लिम, दलित और आदिवासी समुदाय के लोग हैं, उन्होंने विधेयक के एक प्रावधान का उल्लेख करते हुए कहा कि पुलिस कैसे किसी को आतंकवादी घोषित कर सकती है क्योंकि यह काम तो अदालत का है.

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