Nikita Chaudhary Will Become Himachal Pradesh First Wheel Chair Doctor
Himachal News: कहते हैं कि ऊंची उड़ान के लिए तेज दौड़ना जरूरी होता है, लेकिन हौसलों की उड़ान के लिए तेज दौड़ने की नहीं बल्कि जज्बे की जरूरत होती है. ऐसा ही जज्बा हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा के नगरोटा बगवां की रहने वाली निकिता चौधरी ने दिखाया है. निकिता चौधरी चल तो नहीं सकतीं, लेकिन उनका हौसला पहाड़ की तरह मजबूत है. निकिता चौधरी टांडा मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की पढ़ाई कर रही हैं. चल पाने में असमर्थ निकिता चौधरी ने पहली ही बार में NEET की बेहद मुश्किल परीक्षा को पास कर लिया था.
संघर्ष भरा रहा निकिता चौधरी का जीवन
निकिता चौधरी व्हील चेयर पर रहकर ही अपना सारा काम करती हैं. व्हील चेयर पर ही वे रोजाना पढ़ाई के लिए भी टांडा मेडिकल कॉलेज जाती हैं. साल 2028 तक निकिता की पढ़ाई खत्म होगी और वे हिमाचल प्रदेश की पहली ‘डॉक्टर ऑन व्हील चेयर’ बन जाएंगी. पढ़ने में निकिता की कहानी भले ही बेहद साधारण लग रही हो, लेकिन वास्तव में उनका जीवन संघर्षों से भरा रहा है.
पढ़ाई में बचपन से ही बेहद तेज रहीं निकिता को घर वालों का तो भरपूर साथ मिला, लेकिन पड़ोस के लोगों ने दिव्यांगता की वजह से हमेशा हीन भावना के साथ ही उनको देखा. नौवीं क्लास में जब निकिता ने डॉक्टर बनने की ठानी, तब हर किसी ने कहा कि वह ऐसा नहीं कर सकेंगी.
कॉलेज में एडमिशन के लिए भी करना पड़ा संघर्ष
टांडा मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लेना भी उनके लिए आसान नहीं रहा. निकिता की दिव्यांगता की वजह से मेडिकल कॉलेज ने उन्हें पहले एडमिशन देने से इनकार कर दिया. बाद में निकिता को यह लड़ाई हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय में जाकर लड़नी पड़ी. हाई कोर्ट से निकिता को बड़ी राहत मिली और कोर्ट के आदेशों पर निकिता चौधरी को मेडिकल कॉलेज में एडमिशन मिला. निकिता से अब भी हाई कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन करते हुए फीस वसूली जा रही है. इस मामले को निकिता ने उमंग फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रो. अजय श्रीवास्तव के जरिए हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल के सामने उठाया है. राज्यपाल शिव प्रताप ने निकिता को राजभवन के स्तर पर समस्या का निपटारा करने का आश्वासन दिया है.
डॉक्टर की जगह आईएएस बनने की मिली सलाह
हिमाचल प्रदेश की पहली डॉक्टर ऑन व्हील चेयर बनने जा रही निकिता चौधरी ने एबीपी न्यूज़ के साथ खास बातचीत में बताया कि जब उन्होंने टांडा मेडिकल कॉलेज में एडमिशन के लिए अप्लाई किया, तो वहां एक डॉक्टर ने उन्हें आईएएस बनने की सलाह दी. इस पर निकिता ने सोचा कि अगर वह खुद को ही न्याय नहीं दिलवा पा रही है, तो आईएएस बनकर भी लोगों के साथ कैसे न्याय करेंगी? इसके बाद उन्होंने ठाना कि उन्हें हर हाल में मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लेकर डॉक्टर बनना है.
सामाजिक कार्यकर्ताओं का भी मिला भरपूर साथ
डगर बेहद मुश्किल थी. कानूनी रास्ता अपनाने का ज्यादा ज्ञान भी नहीं था. ऐसे में कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं का साथ मिला और फिर निकिता चौधरी ने डटकर चुनौतियों का सामना किया और जीत हासिल कर ली. हिमाचल प्रदेश में दिव्यांग मामलों के नोडल अधिकारी प्रो. अजय श्रीवास्तव का निकिता के जीवन में अहम योगदान रहा. प्रो. अजय श्रीवास्तव ने निकिता को एडमिशन दिलवाने की कानूनी लड़ाई लड़ी और अब भी वे पूरे परिवार के सदस्य की तरह निकिता का साथ दे रहे हैं.
हर चुनौती का डटकर सामना करने की जरूरत
एबीपी न्यूज़ के साथ बातचीत में निकिता चौधरी ने कहा कि अगर ठान लिया जाए, तो कुछ भी हासिल किया जा सकता है. उन्होंने अन्य दिव्यांग बच्चों से भी अपील की है कि वह डरकर घर पर न बैठें और समाज में अपना नाम बनाने के लिए डटकर हर चुनौती का सामना करें. निकिता चौधरी ने कहा कि कुछ लोग उन्हें आज भी हीन भावना के साथ देखते हैं. जब वह कहीं से गुजरती हैं तो लोग इस तरह मुड़-मुड़ कर उन्हें देखते हैं, जैसे मानो उन्होंने कोई अजूबा देख लिया हो.
हर किसी के लिए प्रेरणा स्रोत बनीं निकिता चौधरी
निकिता चाहती हैं कि उन्हें भी समाज में वही जगह मिले, जो हर किसी को मिल रही है. लोगों को न तो दुख जाहिर करने की जरूरत है और न ही दया दिखाने की. जरूरत है तो सिर्फ समाज में उन्हें आगे बढ़ाने के लिए सहयोग की. पहाड़ जैसे जज्बे वाली पहाड़ी राज्य की रहने वाली निकिता चौधरी आज हर किसी के लिए प्रेरणा स्रोत बन चुकी हैं.