Telangana Assembly Election 2023 Caste Politics In Telangana Mudiraj Community Can Spoil KCR Game Know
Telangana Election 2023 News: तेलंगाना में आज (30 नवंबर) वोटिंग है. 119 विधानसभा सीटों के लिए हो रहे चुनाव में कौन जीतेगा और कौन हारेगा, इसका फैसला तीन दिसंबर को मतगणना के बाद ही साफ हो सकेगा, लेकिन इस बार चुनाव में यहां भी जाति की राजनीति हावी दिखी. हर राजनीतिक दल ने कैंडिडेट्स के चयन से लेकर अपने चुनाव प्रचार और मेनिफेस्टो तक में इस फैक्टर का ध्यान रखा है.
यहां ओबीसी वर्गीकरण के कारण राजनीतिक शक्ति बिखरती नजर आई. पिछड़े समुदाय अधिक आरक्षण लाभ के लिए एक-दूसरे के खिलाफ होड़ करते दिखे हैं. इस बार सबसे ज्यादा सुर्खियों में मुदिराज रहा. इस समुदाय के लिए लगभग सभी बड़े दलों ने वादा किया है. यहां हम जानेंगे कि कैसे तेलंगाना में जाति की राजनीति चल रही है.
नहीं दिख रहा कल्याणकारी योजनाओं का असर
तेलंगाना के संगारेड्डी जिले के जहीराबाद में अभी भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के विधायक हैं, लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने सुना है कि कांग्रेस पूरे राज्य में बढ़ रही है ऐसे में वह चूकना नहीं चाहते. किसानों और मछुआरों के इस गांव में मछुआरों को रायथु बंधु योजना के तहत भुगतान मिल गया है, लेकिन मछुआरों को सरकार की तरफ से अच्छा समर्थन न मिलने का अफसोस है. इस समुदाय के एक नेता बी शंकर कहते हैं कि कैसे दलित भी उनसे आगे निकल रहे हैं. वह कहते हैं कि उन्हें एक बार एक परीक्षा में 95% अंक मिले थे, लेकिन अपने लिए एक सीट भी सुरक्षित नहीं कर सके. हम संख्या में कहीं अधिक हैं लेकिन राजनीति, कॉलेजों और सरकारी कार्यालयों में हमारी स्थिति कमजोर है.“
तेलंगाना में मुदिराज की संख्या करीब 14 प्रतिशत
मुदिराज या मुदिराजस पारंपरिक रूप से मछली पकड़ने वाला एक समुदाय है. इस समुदाय के पास ग्रामीण इलाकों में कृषि भूमि भी है, ऐसे में कई लोग खेती भी करते हैं. यह राज्य के सबसे बड़े पिछड़े समुदायों में से एक है. उस्मानिया विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर सत्या नेली का अनुमान है कि उनकी ताकत राज्य में 11% से 14% के बीच है.
इस राज्य में अलग है पिछड़ी जाति की राजनीति
हैदराबाद में एनएएलएसएआर विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर वागीशान हरथी ने कहा, “यहां ओबीसी राजनीति, जो 1970 के दशक में शुरू हुई, मंडल के अलग है.” इसके पीछे की वजह यहां पिछड़ा वर्ग कोटा का उप-वर्गीकरण है. उदाहरण के लिए, तेलंगाना में, ओबीसी कोटा को क्रमशः 7%, 10%, 1%, 7% और 4% के साथ पांच समूहों – ए, बी, सी, डी और ई में बांटा गया है. अलग-अलग वर्गों में बंटे होने की वजह से पिछड़े समुदाय अधिक आरक्षण लाभ के लिए एक-दूसरे के खिलाफ होड़ कर रहे हैं. उदाहरण के लिए मुदिराज समुदाय के नेताओं ने खुद को डी वर्ग से ए में भेजने के लिए करीब दो दशकों से अभियान चलाया है. इस वोट बैंक को लुभाने के लिए ही बीजेपी समेत अन्य दलों ने इस पर कई वादे किए हैं.
योजनाओं के लाभ से ज्यादा जाति के आगे बढ़ने पर फोकस
हैदराबाद के विद्यानगर में रहने वाले कई लोगों का कहना है कि उन्होंने कई सरकारों को आते और जाते देखा है. हमारे समुदाय से पहला विधायक 1952 में कांग्रेस से चुना गया था और एनटी रामाराव के नेतृत्व में मुदिराज कम्यूनिटी पांच मंत्रियों तक पहुंच गई थी, लेकिन इतने समय के बाद भी हमारे लिए बीआरएस ने कुछ नहीं किया. हालांकि मुदिराज समुदाय के लोग ये जरूर बता रहे हैं कि उन्हें कल्याणकारी सहायताएं नियमित रूप से मिल रहीं हैं. समुदाय के एक नेता ने कहा, “उस्मानिया में हमारे समुदाय के 270 लोगों में से केवल तीन प्रोफेसर हैं. मैं अपने क्षेत्र से मास्टर डिग्री पूरी करने वाला एकमात्र व्यक्ति हूं, लेकिन हम कब कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ेंगे. हम कब तक खैरात से संतुष्ट रह सकते हैं, जबकि पिछड़ा वर्ग में ही दूसरी जाति के लोग आगे बढ़ रहे हैं.
इस तरह बिगाड़ सकते हैं केसीआर का खेल
मुदिराज समुदाय ने इस बार केसीआर की बेचैनी बढ़ा दी है. वैसे तो इस समुदाय के वोटर कई विधानसभा क्षेत्रों में हैं, लेकिन इनकी सबसे ज्यादा आबादी गजवेल और कामारेड्डी में है. गजवेल सीट से बीआरएस चीफ और मुख्यमंत्री केसीआर दो बार जीत दर्ज कर चुके हैं, लेकिन इस बार उनके सामने राजेंद्र मुदिराज भी खड़े हैं, इनकी पकड़ करीब 50 हजार वोटों पर है जो इसी समुदाय के हैं. इसके अलावा सीएम केसीआऱ जिस दूसरी सीट कामारेड्डी से लड़ रहे हैं, वहां भी मुदिराज वोटरों की संख्या अधिक है. यह समुदाय इस बार बीआरएस से नाराज बताया जा रहा है. अगर यह कांग्रेस या बीजेपी के साथ जाता है तो केसीआर की मुश्किलें दोनों सीटों पर बढ़ सकती हैं.
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