Mumbai BMC Running This Hospital By Spending Crores But Is Public Getting Its Benefits ANN
Mumbai Hospital: एशिया के सबसे बड़े अस्पतालों में से एक माना जाने वाला मुंबई का सेवन हिल्स हॉस्पिटल सवालों के घेरे में है. यह प्राइवेट अस्पताल दिवालिया हो चुका है. बीएमसी हर महीने करोड़ों रुपये खर्च करके इसे चला रही है लेकिन आरोप है कि जनता को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है.
एक शख्स ने आरोप लगाया है कि पैसे भराने के चक्कर में अस्पताल की ओर से इलाज में देरी किए जाने की वजह से उसकी बेटी की जान चली गई. उसने कहा कि वह इसे बीएमसी का अस्पताल समझकर बेटी को इलाज के लिए ले गया था.
कई स्थानीय लोगों का कहना है कि अस्पताल उनकी जमीन पर बना है लेकिन उसमें इलाज के लिए जाने से डर लगता है क्योंकि पहले डिपॉजिट भराया जाता है. उनका कहना है कि अस्पताल पास में है लेकिन वे इलाज के लिए दूसरे सरकारी अस्पताल का रुख करते हैं.
मुंबई महानगरपालिका अपने खर्चे पर चला रही ये अस्पताल
सेवन हिल्स हॉस्पिटल मुंबई मरोल इलाके में बना है. करीब 1,500 बेड वाला यह अस्पताल किसी फाइव स्टार होटल की तरह दिखता है. यह तमाम आधुनिक सुविधाओं से लैस है. आरोप है कि बीएमसी अपने पैसे से यह अस्पताल चला रही है लेकिन जनता का इलाज इसमें सस्ते में या फ्री में नहीं हो रहा है. इस अस्पताल के पीड़ित और इलाके में रहने वाले स्थानीय लोगों का कहना है कि अस्पताल का रवैया और दाम प्राइवेट वाले हैं.
19 वर्षीय बेटी को खोने वाले पिता ने बयां की आपबीती
मुंबई में ऑटो रिक्शा चलाकर गुजारा करने वाले देवीदास मोरे ने अपनी आपबीती साझा की. उन्होंने कहा कि बीते अप्रैल में उन्होंने अपनी 19 साल की बेटी साक्षी मोरे को खो दिया. देवीदास ने कहा कि उन्हें पता था कि इस अस्पताल में बीएमसी वाले अस्पताल की सुविधा मिलती है और उनकी बेटी का इलाज फ्री में या सस्ते में हो सकता है.
उन्होंने आरोप लगाया कि इलाज शुरू करने से पहले ही अस्पताल ने उनसे भारी भरकम फीस जमा करने के लिए कहा. देवीदास के मुताबिक, उन्होंने आधे पैसे भरे भी लेकिन पूरे पैसे नहीं होने की वजह से उनकी बेटी का इलाज समय पर शुरू करने में अस्पताल ने देरी की और उनकी बेटी की जान चली गई.
‘एक दिन पहले ही अस्पताल उसे भर्ती कर लेता तो मेरी बेटी बच जाती’
देवीदास ने कहा, ”रात को 11 बजे मेरी बेटी को फिट आया. मैं सेवन हिल्स हॉस्पिटल गया. मैं बीएमसी का फॉर्म भरकर उसे बीएमसी वार्ड में भर्ती कराना चाहता था. बाद में अस्पताल ने मुझसे कहा कि 20 हजार रुपये भरना पड़ेगा. मेरे पास 10 हजार रुपये थे. डॉक्टर बोले कि इसे अर्जेंट आईसीयू में भर्ती करना पड़ेगा. मैंने पूछा कि बीएमसी के अस्पताल में भर्ती करने के लिए पैसा लगता है क्या? मैं बेटी को लेकर घर चला गया.”
देवीदास ने बताया, ”लेकिन सुबह बेटी को फिर मुझे अस्पताल लाना पड़ा और उन्होंने 10 हजार रुपये में ही मेरी बेटी को एडमिट किया लेकिन एक दिन पहले ही अगर अस्पताल उसे भर्ती कर लेता तो मेरी बेटी बच जाती. उसकी नई जॉब लगी थी, एक दिन बाद उसे जॉब ज्वाइन करनी थी. देवीदास ने बताया कि उनकी बेटी 24 मार्च 2023 को अस्पताल में भर्ती हुई थी और 4 अप्रैल को उसका निधन हो गया.
बेटी खोने वाले पिता का अस्पताल पर आरोप
देवीदास ने कहा, ”हमारी बेटी को वेंटिलेटर पर डाल दिया गया था. हमें देखने भी नहीं दिया जा रहा था. पहले डेढ़ लाख का बिल बताया और फिर बाद में बढ़ाते जा रहे थे. मैंने 80 हजार रुपये भरे भी. मुझको जवाब दिया गया कि अगर तुम्हें बिल नहीं भरना है तो अपनी बेटी को बीएमसी में डालो. मैंने उनसे कहा कि मैंने तो बीएमसी के तहत ही भर्ती किया है, फिर वे मुझे उल्टा-सीधा जवाब देने लगे. बेटी करीब 11 दिन तक भर्ती रही. बाद में उसे मृत घोषित कर दिया गया.”
देवीदास मोरे और उनके परिवार के अन्य लोगों का आरोप है अस्पताल ने जानबूझकर कई दिनों तक उनकी बेटी को वेंटिलेटर पर रखने का बहाना किया. बेटी को देखने तक नहीं दिया जा रहा था. सिर्फ बिल बनाते जा रहे थे और करीब 7 दिन बाद बताया गया कि उनकी बेटी की मौत हो गई है.
अस्पताल को लेकर स्थानीय लोगों की क्या है राय?
सिर्फ देवीदास ही नहीं, अस्पताल के आसपास मौजूद बस्ती में रहने वाले लोगों ने भी आरोप लगाए. उन्होंने कहा कि वे अस्पताल की चकाचौध देख अंदर जाने से भी डरते हैं. उन्हें इस बात का अहसास ही नहीं हो पा रहा है कि यह अस्पताल मुंबई महानगरपालिका चला रही है. उन्हें अब भी सब कुछ प्राइवेट अस्पताल जैसे महंगा लगता है.
आरोपों के बारे में हॉस्पिटल चलाने वाले बीएमसी के अधिकारियों से जब बात की गई तो डॉक्टर महारूद्र कुंभार ने कहा कि फिलहाल अस्पताल में अभी करीब 300 बेड ही काम कर रहे हैं, जिनमें से 20 प्रतिशत बेड बीएमसी के लिए है और BMC की दर से मरीजों का इलाज होता है. बाकी इलाज के लिए सरकार की अन्य योजनाओं के हिसाब से भी इलाज की दर तय होती है. डॉक्टर महारूद्र कुंभार को बीएमसी की तरफ से इस अस्पताल का ओएसडी यानी ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी नियुक्त किया गया है.
आखिर कैसे दिवालिया हुआ अस्पताल?
दरअसल, जिस जमीन पर यह अस्पताल बना हुआ है वह मुंबई महानगरपालिका की है. 2005 में बीएमसी ने पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप प्रोजेक्ट के तहत इस जमीन को सेवेन हिल्स हेल्थ सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड नामक कंपनी को लीज पर दिया. विशाखापट्टनम बेस्ड इस कंपनी के मालिक जितेंद्र दास मगंती हैं.
अस्पताल को बनाने के लिए कई बैंकों से करोड़ों रुपये कर्ज लिया गया. 2010 में यह अस्पताल बनकर तैयार हुआ लेकिन समय पर बैंकों की किस्त न भरने की वजह से 2016-17 में यह अस्पताल बैंको के कर्ज में डूब गया और दिवालिया हो गया. अस्पताल बीएमसी का करोड़ों रुपये किराया भी नहीं भर सका. इसलिए बीएमसी ने इस अस्पताल पर अपना दावा ठोका. 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने बीएमसी को इसे अपने अंडर में लेने का आदेश दिया और कहा की इस अस्पताल पर कोई भी निर्णय बीएमसी वीटो पावर ही ले सकता है.
अस्पताल को लेकर स्थानीय लोग कर रहे ये मांग
फिलहाल अब स्थानीय लोग राजनीतिक पार्टियों से जुड़े नेताओं, समाजसेवी और महाराष्ट्र सरकार को पत्र लिख रहे हैं. वे बीएमसी प्रशासन से अपील कर रहे है कि इतने बड़े अस्पताल को पूरी तरह से बीएमसी अस्पताल घोषित किया जाए और पूरी तरह से इसे पब्लिक के लिए शुरू किया जाए जैसेकि मुंबई के अन्य सरकारी अस्पताल हैं.
लोगों की मांग है कि येलो कार्ड और ऑरेंज कार्ड धारक गरीब लोगों को बीएमसी अस्पताल वाली सुविधा प्रदान की जाए और इसके लिए बाकायदा बोर्ड लगवाए जाएं और लोगों में यह जागरूकता पैदा की जाए कि वे यहां जाकर बगैर झिझक के इलाज करा सकें. हालांकि, इस अस्पताल को अभी तक बीएमसी ने टेकओवर नहीं किया है, इस संबंध में पूछे जाने पर बीएमसी अधिकारी भी जवाब नहीं दे रहे हैं.
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