Indian Soldier Baba Harbhajan Singh Temple In East Sikkim Servings Country Even After Death
Baba Harbhajan Singh Temple: भारतीय सेना में एक ऐसे जवान हैं जिन्होंने मृत्यु के बाद भी अपनी नौकरी नहीं छोड़ी है. वह मृत्यु के बाद भी पूरी ईमानदारी से अपनी ड्यूटी निभाते हैं. इतना ही नहीं उन्हें बाकी सभी सैनिकों की तरह सैलरी दी जाती है, दो महीने की छुट्टी मिलती है, समय-समय पर उन्हें प्रमोशन भी दिया जाता है और बाकी तमाम सुविधाएं भी दी जाती है.
हम बात कर रहे हैं सिपाही हरभजन सिंह की. इन्हें आज बाबा हरभजन सिंह के नाम से जाना जाता है. बाकयदा इनका मंदिर भी है जहां भक्तों की भारी भीड़ जुटती है. ये बात सुनने और पढ़ने में थोड़ी अजीब लगती है लेकिन सच है. आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी पूरी कहानी.
कैसे हुई हरभजन सिंह की मौत
एक सैनिक से बाबा बने हरभजन सिंह का पूरा नाम हरभजन सिंह ब्रसाई था. वह एक बहादुर भारतीय सेना के सिपाही थे. उनका जन्म 30 अगस्त 1946 को पाकिस्तान के गुजरांवाला जिले के एक छोटे से गांव में हुआ था. 20 साल की उम्र में हरभजन सिंह 9 फरवरी 1966 को भारतीय सेना के पंजाब रेजिमेंट में सिपाही के रूप में भर्ती हुए थे. महज दो साल बाद 4 अक्टूबर 1968 को एक हादसे में उनका देहांत हो गया.
घटना के वक्त उनकी ड्यूटी 23वें पंजाब रेजिमेंट के साथ पूर्वी सिक्किम में थी. उस दिन हरभजन सिंह घोड़ों के एक काफिले को तुकु ला से डोंगचुई ला ले जा रहे थे. तभी अचानक नाथुला पास के समीप उनका पैर फिसल गया और नजदीकी नाले में गिर गए. नाले में पानी का बहाव हरभजन सिंह के शरीर को घटना स्थल से दो किमी दूर तक ले गया.
कैसे मशहूर हुए हरभजन सिंह
हरभजन सिंह की मृत्यु के बाद कुछ ऐसे अजीबोगरीब घटनाक्रम हुए जिसकी वजह से वह धीरे-धीरे मशहूर होने लगे. कहा जाता है कि हरभजन सिंह मृत्यु के बाद अपने एक साथ के सपने में आए और अपने गुम शरीर के बारे में बताया. आश्चर्य की बात है कि भारतीय सेना को तीन दिन की खोजबीन के बाद उसी जगह पर उनका शव मिला. यही नहीं ये भी कहा जाता है कि हरभजन सिंह ने अपने साथी के सपने में आकर अपना समाधि स्थल बनाने का भी अनुरोध किया. इसके बाद यूनिट ने जेलेप दर्रे और नाथुला दर्रे के बीच 14 हजार फीट की ऊंचाई पर उनकी समाधि का निर्माण कर दिया.
मंदिर की स्थापना
बाद में हरभजन सिंह के समाधि स्थल पर ही उनका मंदिर स्थापित कर दिया गया. हरभजन सिंह का मंदिर सिक्किम की राजधानी गंगटोक के पास स्थित है. यहीं से उन्हें बाबा हरभजन सिंह का दर्जा दिलाया गया. कहा जाता है कि यहां सिर्फ भारतीय सेना ही नहीं, चीनी सेना के जवान भी उनके सम्मान में शीश झुकाने आते हैं.
बाबा हरभजन सिंह का मंदिर भक्तों के लिए एक प्रमुख धार्मिक स्थल है. यहां पर आने वाले लोग अपनी मनोकामनाओं को पूरा करने के लिए प्रार्थना करते हैं और बाबा हरभजन सिंह की आत्मा को श्रद्धांजलि देते हैं. हर साल 4 अक्टूबर को उनकी पुण्यतिथि पर मंदिर में खास कार्यक्रम होते हैं. ये दिन उनकी याद में विशेष रूप से मनाया जाता है. इस दिन उनके मंदिर में भजन-कीर्तन और धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं.
भक्तों के दुख दर्द दूर करते हैं बाबा!
सेना के जवान बाबा हरभजन सिंह के मंदिर की चौकीदारी करते हैं. मंदिर में हरभजन सिंह की मूर्ति, जूते, आर्मी ड्रेस, टोपी, बिस्तर और अन्य सामान रखे हुए हैं. यहां हर दिन उनके जूतों पर पॉलिश भी की जाती है. मंदिर के बाहर एक बोर्ड लगा हुआ है, जिसमें बताया गया है कि मान्यताओं के अनुसार, मंदिर में जल चढाने के बाद उसे पी लेने से बीमार व्यक्ति ठीक हो जाता है. इसलिए भक्त यहां बोतल में पानी लाकर रख देते हैं और फिर उसे लेकर घर चले जाते हैं. ये जल 21 तक इस्तेमाल किया जा सकता है. इस तरह भक्तों के दुख दर्द दूर होने की मान्यता है.
ऐसी भी मान्यता है कि बाबा हरभजन सिंह आज भी भारतीय सेना में अपनी ड्यूटी निभाते हैं. वह आज भी सरहद पार चीन की तमाम गतिविधियों की जानकारी अपने साथियों को सपने में आकर देते हैं.