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Ananta Chaturdashi 2023 Jodhpur Confectioner Saw Ananta God In His Dream Built A Temple Ann


Ananta Chaturdashi: अनंत चतुर्दशी (Ananta Chaturdashi) का पर्व पर भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा होती है. इस दिन भगवान विष्णु के भक्त पूरे दिन उपवास रखते हैं. पूजा के दौरान पवित्र धागा बांधते हैं. अनंत चतुर्दशी पर इस पवित्र धागे का बहुत महत्व होता है. ऐसा ही पवित्र धागा जोधपुर (Jodhpur) शहर के चोखा गांव में रहने वाले हलवाई नवरत्न प्रजापत ने हाथ में बांध रखा है. इसके बाद उसकी बाद भगवान के प्रति आस्था बढ़ती गई और उन्होंने अनंत भगवान का मंदिर बनवा दिया. मंदिर में उन्होंने धागे की ही प्राण प्रतिष्ठा करवाई. इस मंदिर की एक खासियत है कि जब तक भक्त मंदिर में आकर आंगन में नहीं बैठते, तब तक उन्हें मंदिर के गर्भ ग्रह में स्थापित भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप के दर्शन नहीं होते.

अनंत भगवान का मंदिर बनवाने वाले हलवाई नवरत्न प्रजापत ने बताया कि मुझे एक रात को सपना आया था. सपना आने के बाद मैनें मंदिर बनवाने की ठानी और बनवा दिया. अनंत चतुर्दशी पर भगवान विष्णु की पूजा होती है. विष्णु का स्वरूप हम पवित्र धागे में देखते हैं, इसलिए मंदिर में धागे की प्राण प्रतिष्ठा करवाई गई है. नवरत्न हलवाई ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि सपने में उन्होंने भगवान के दर्शन दिए. मंदिर की गर्भ ग्रह में भगवान विष्णु और लक्ष्मी की प्रतिमा के आगे दो गोल चूड़ी नुमा सर्कल के पत्थर को तरास कर लगाया गया है. जो देखने में बंधा हुआ धागा लगता है. देश-दुनिया मे कहीं भी भगवान विष्णु के इस स्वरूप की स्थापना नहीं है. मंदिर परिसर के गर्भगृह में दो प्रतिमाएं भी स्थापित की गई है, जो भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की हैं.

हलवाई ने बनवाया मंदिर
मंदिर में रखी भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की प्रतिमा के दर्शन के लिए मंदिर में प्रवेश करने के बाद आंगन में बैठना जरूरी होता है. तभी एक साथ धागे के बीच से दोनों मूर्तियों के दर्शन होते हैं. हलवाई नवरत्न प्रजापत ने बताया कि मंदिर परिसर में एक खास तरह की शिव-पार्वती (आदिशक्ति) और भगवान गणेश की चार शेर के रथ पर सवार प्रतिमा भी स्थापित की गई है. हलवाई नवरत्न प्रजापत ने बताया कि मैनें बचपन से लेकर जवानी तक बहुत संघर्ष किया है. कई तरह की तकलीफें देखी है. तकलीफों के चलते भगवान के प्रति आस्था बढ़ गई. इसके बाद भगवान की ऐसी कृपा हुई कि अनंत भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी का मंदिर बनाने का मुझे सौभाग्य मिला.

 2003 में बना मंदिर
उन्होंने बताया कि मंदिर के निर्माण के लिए किसी से भी चंदा इकट्ठा नहीं किया गया है. ना ही किसी की मदद ली गई है. अपनी कमाई से हिस्सा निकालकर मैं मंदिर के कार्यो में लगता हूं. इस मंदिर का निर्माण वर्ष 2003 में हुआ था. इसकी प्राण प्रतिष्ठा शरद पूर्णिमा के दिन  सुबह 5:15 पर की गई. उन्होंने बताया कि हर मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा सूर्य भगवान को साक्षी मानकर होती है. इस मंदिर की प्रतिष्ठा चंद्रमा को साक्षी मानकर हुई. इस मंदिर का निर्माण कार्य एक साल चला. उसके बाद मंदिर बनकर तैयार हुआ. हवाई नवरत्न प्रजापत ने बताया की अनंत चतुर्दशी के दिन अनंत भगवान के मंदिर में जो धागे आते हैं.  

उनको गंगासागर में विसर्जित किया जाता है. अनंत चतुर्दशी को यहां काफी श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है. इस दिन मंदिर के दर्शन करने के लिए कई लोग दूर-दराज से आते हैं. अनंत चतुर्दशी पर मंदिर में हमेशा की तरह इस बार भी अनंत भगवान की कथा का भी आयोजन किया गया. श्रद्धालु काफी संख्या में मंदिर पहुंचे और मंदिर के दर्शन किए.

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