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Tribal People Are Celebrating The Karma Festival In Sarguja


Chhattisgarh News: आदिवासी अंचल सरगुजा जिले में परंपरागत लोकपर्व करमा के एक दिन पहले अम्बिकापुर शहर के कंपनी बाजार में प्रमुख वाद्ययंत्र मांदर की जमकर बिक्री हुई. ग्रामीण क्षेत्रों से मांदर बनाकर लोग बेचने के लिए बड़ी संख्या में पहुंचे. मांदर बेचने आए ग्रामीणों के द्वारा रविवारीय सप्ताहिक कंपनी बाजार के दिन करीब 11 लाख रूपए से अधिक के 250 से अधिक मांदर बिक्री का अनुमान लगाया गया.

सरगुजा के बतौली सुआरपारा, बगदरी लखनपुर, सीतापुर, जशपुर सहित अन्य इलाकों से बड़ी संख्या में ग्रामीण मांदर की बिक्री के लिए पहुंचे थे. बाजार में खरीदी के पहले लोगों ने मांदर के आवाज की टेस्टिंग भी की और दिनभर मांदर के थाप की गुंज होती रही. 

झाल और घुंघरू की जमकर हुई बिक्री
इसके अलावा बाजार में झाल और घुंघरू की भी जमकर बिक्री हुई. झाल बेचने पहुंचे रामचंद्र कंसारी ने बताया कि एक झाल की कीमत करीब 2 हजार रूपए है और एक सीजन में वे 100 से अधिक झाल बेच लेते है. इधर मिट्टी से बने मांदर साढ़े चार हजार रूपए से लेकर पांच हजार रूपए और लकड़ी से बने मांदर सात से आठ हजार रूपए के बीच हाथों हाथ बिक गए. आज सोमवार से करमा पर्व मनाया जाएगा. गांवों में अलग-अलग तिथि को यह पर्व मनाया जाता है ताकि लोक एक-दूसरे गांवों में आयोजित पूजन अनुष्ठान में शामिल हो सकें.

मौसम से मांदर का निर्माण हुआ प्रभावित
बतौली के सुआरपारा निवासी आशीष कुमार, लखनपुर के बगदरी निवासी सूखनाथ कोरते, जयसिंह उरें, नेतराम शिवभरम सहित अन्य ग्रामीणों ने बताया कि मिट्टी से एक मांदर बनाने में कम से कम एक सप्ताह का समय लगता है. पहले मिट्टी से मांदर का आकार देने के बाद उसे सूखने के बाद पकाया जाता है. फिर इसके बाद रंग-रोगन करते हुए तैयार किया जाता है. इस बार रूक रूक हो रही बारिश के कारण मांदर निर्माण प्रभावित हुआ है. हालांकि पहले से तैयारी करने की वजह से वे 250 से अधिक मांदर तैयार करने में सफल रहे.

भाइयों की सुख समृद्धि के लिए बहनें रखती है व्रत
आदिवासी अंचलों में करमा पर्व भक्तिभाव से मनाने की परंपरा है. इस दिन बहनें अपने भाइयों की सुख समृद्धि, दीर्घायु होने की कामना के साथ निजर्ला व्रत रख पूजा- अर्चना करती है. इसके लिए करम वृक्ष के डंगाल की स्थापना आंगन, घरों में की जाती है और ज्वारा सजाने के साथ विविध-धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता है. इस दिन श्रद्धालु परंपरागत मांदर की थाप पर नृत्य करते है. 

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