Lok Sabha Speaker Om Birla Sitting Below Sengol Be Able Fulfill Rajadharma On These 3 Issues ABPP
नई संसद, सेंगोल और लोकसभा स्पीकर ओम बिरला विशेष सत्र के बाद सुर्खियों में है. सोशल मीडिया से लेकर सियासी गलियारों तक में एक ही सवाल पूछा जा रहा है. आखिर सेंगोल के नीचे बैठे स्पीकर राजधर्म कब निभाएंगे, वो भी तीन बड़े मामले में?
पहला मामला, संसद के विशेष सत्र में बीएसपी सांसद दानिल अली पर बीजेपी सांसद रमेश बिधूड़ी का अमर्यादित बयान का है. दूसरा, डिप्टी स्पीकर के चुनाव तो तीसरा तृणमूल के सांसदों के अयोग्यता से जुड़ा मामला है.
तीन में से दो मामले तो सालों से लंबित हैं और अगर उस पर अब भी कार्रवाई नहीं हुई, तो 1 महीने बाद स्पीकर के एक्शन का भी कोई फायदा नहीं होगा. क्योंकि, मार्च के शुरुआती हफ्ते में लोकसभा चुनाव की घोषणा प्रस्तावित है.
बात पहले रमेश बिधूड़ी के बयान की
लोकसभा में शुक्रवार को चंद्रयान-3 की सफलता पर बहस चल रही थी. बीजेपी की ओर से रमेश बिधूड़ी बोलने के लिए खड़े हुए. इसी दौरान बिजनौर से बीएसपी सांसद दानिश अली कुछ बोलने लगे, जिस पर बिधूड़ी गुस्सा होकर उनको अपशब्द बोलने लगे.
बिधूड़ी के बयान को शुरू में तो प्रोसेडिंग से नहीं हटाया गया, लेकिन बवाल मचने के बाद इसे स्पीकर ने हटाने का आदेश दिया. संसद के टीवी पर भी बिधूड़ी के भाषण को अपलोड नहीं किया गया. विवाद बढ़ने पर बीजेपी ने बिधूड़ी को कारण बताओ नोटिस भी जारी किया.
इधर, कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी, एनसीपी के सुप्रिया सुले और बीएसपी के दानिश अली ने लोकसभा स्पीकर को एक पत्र लिखा है और इस मामले को विशेषाधिकार समिति के पास भेजने का आग्रह किया है.
विशेषाधिकार समिति में अगर यह मामला जाता है, तो बिधूड़ी की मुश्किलें बढ़ सकती है.
लोकसभा में विशेषाधिकार समिति के सदस्य और तृणमूल सांसद कल्याण बनर्जी एबीपी न्यूज़ से बात करते हुए कहते हैं- कौन सा मामला समिति के पास आएगा और कौन सा नहीं, यह स्पीकर ही तय करता है.
कल्याण बनर्जी के मुताबिक स्पीकर से चिट्ठी आने के बाद विशेषाधिकार समिति के चेयरमैन बैठक बुलाते हैं और उसमें मामले पर चर्चा होती है. लोकसभा वेबसाइट के मुताबिक विशेषाधिकार समिति में कुल 15 सदस्य होते हैं, इसमें संख्या के आधार पर पार्टी नेताओं को जगह मिलती है.
वर्तमान में चतरा से बीजेपी के सासंद सुनील कुमार सिंह इस प्रिविलेज कमेटी के चेयरमैन हैं. कमेटी में बीजेपी के 9 सदस्य हैं. इसके अलावा कांग्रेस, तृणमूल, बीजेडी, शिवसेना, वाईएसआर कांग्रेस और डीएमके के एक-एक सदस्य हैं.
लोकसभा में डिप्टी स्पीकर का चुनाव
17वीं लोकसभा के कार्यकाल में अब बमुश्किल 8 महीने का वक्त बचा हुआ है. हालांकि, मार्च में ही लोकसभा चुनाव की घोषणा प्रस्तावित है. इस हिसाब से देखा जाए, तो 6 महीने का कार्यकाल ही बचा हुआ है, लेकिन अब तक लोकसभा में उपाध्यक्ष का चुनाव नहीं हो पाया है.
विशेष सत्र में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने इस मुद्दे को उठाया भी था. चौधरी ने कहा कि संसद के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ कि लोकसभा में उपाध्यक्ष का पद रिक्त रहा हो. लोकसभा में डिप्टी स्पीकर न होने का मामला सुप्रीम कोर्ट भी जा चुका है.
भारतीय संविधान के अनुच्छेद-93 में लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पद के बारे में विस्तार से बताया गया है. इस अनुच्छेद के मुताबिक लोकसभा गठन के बाद तुरंत अपने दो सदस्यों को अपना अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुनेगी.
अध्यक्ष चुनने की जिम्मेदारी भारत के राष्ट्रपति और उपाध्यक्ष के चुनाव की जिम्मेदारी लोकसभा के स्पीकर पर है. संविधान सभा में उपाध्यक्ष की शक्ति पर बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर, एचवी कामथ और शिब्बन लाल सक्सेना के बीच खूब बहस भी हुई थी.
कामथ का तर्क था कि अध्यक्ष को अपना इस्तीफा उपाध्यक्ष के बजाय राष्ट्रपति को सौंपना चाहिए. अंबेडकर ने इसका विरोध किया था. 1969 में लोकसभा अध्यक्ष नीलम संजीव रेड्डी ने अपना इस्तीफा उपाध्यक्ष को सौंपा था.
लोकसभा में अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष ही सदन का संचालन करते हैं. इसलिए उपाध्यक्ष को लोकसभा का पीठासीन अधिकारी भी कहा जाता है. संसद के इतिहास में ऐसे 2 मौके भी आए, जब स्पीकर के न रहने पर उपाध्यक्ष ने उनका कार्यभार संभाला.
पहला, 1956 में जब तत्कालीन अध्यक्ष जीवी मावलंकर के निधन के बाद सत्र का संचालन उपाध्यक्ष एमए आयंगर ने किया था और दूसरा, 2022 में संसद सत्र के बीच में अध्यक्ष जीएमसी बालयोगी का निधन हो गया. उस वक्त संसद में आतंकवाद निरोधी विधेयक पेश किया गया था.
तत्कालीन डिप्टी स्पीकर पीएम सईद ने सत्र का संचालन किया, जिसके बाद बिल पास हुआ. सईद न होते तो बिल अगले सत्र के लिए अटक जाता.
तृणमूल सांसदों के अयोग्यता का मामला
तृणमूल के 2 सांसदों का अयोग्यता का मामला भी 2 साल से ज्यादा समय से लोकसभा स्पीकर के पास पेंडिंग है. पार्टी इस पर कई बार सवाल भी उठा चुकी है, लेकिन इस पर लोकसभा अध्यक्ष की ओर से फैसला नहीं हो पाया है.
दरअसल, बंगाल चुनाव 2021 के बाद तृणमूल नेता सुदीप बंधोपाध्याय ने एक पत्र स्पीकर को लिखा. बंधोपाध्याय ने अपने पत्र में कहा कि तृणमूल के कांथी से सांसद शिशिर अधिकारी और तमलुक के सांसद दिव्येंदु अधिकारी ने चुनाव में गृहमंत्री अमित शाह के साथ मंच शेयर किया.
बंधोपाध्याय के मुताबिक यह कृत्य दलबदल कानून के अधीन आता है, इसलिए उन पर कार्रवाई की जाए. तृणमूल के सांसद कल्याण बनर्जी के मुताबिक स्पीकर ने इस मामले की जांच के लिए विशेषाधिकार समिति को पत्र भेजा था.
कल्याण बनर्जी कहते हैं- 2 बार सुदीप इस मामले में अपना पक्ष रख चुके हैं, लेकिन विशेषाधिकार समिति ने जांच कर रिपोर्ट स्पीकर को अभी तक नहीं भेजा है. क्यों नहीं भेजा है के सवाल पर बनर्जी समिति के चेयरमैन को लेकर इशारा करते हैं.
विधायिका के भीतर दलबदल को रोकने के लिए साल 1985 में भारत के संविधान में 52वां संशोधन किया गया. इसके बाद 10वीं अनुसूची आस्तित्व में आई. 10वीं अनुसूची के मुताबिक दलबदल के मुद्दे पर सांसदों और विधायकों पर कार्रवाई का अधिकार स्पीकर के पास है.
इस कानून के तहत सदन के भीतर या सदन के बाहर दोनों जगह पर सदस्य के आचरण के लिए अयोग्यता की कार्रवाई का अधिकार स्पीकर को दिया गया है. हालांकि, इस कानून में समय-सीमा का कोई उल्लेख नहीं किया गया है.
सेंगोल और राजदंड की कहानी
संसद के नई बिल्डिंग में स्पीकर के पास सेंगोल रखा गया है. सेंगोल एक लोहे की धातु है, जिसके ऊपरी सिरे पर नंदिनी विराजमान हैं. यह धन-संपदा और वैभव का प्रतीक भी है. सेंगोल का इतिहास काफी पुराना है, लेकिन चोल राजवंश में इसे खूब लोकप्रियता मिली.
तमिल परंपरा में सेंगोल राजा को याद दिलाता है कि उसके पास न्यायपूर्ण और निष्पक्ष रूप से शासन करने के लिए एक डिक्री है. चोल राजाओं के राज्याभिषेक के दौरान पुरोहित उन्हों चक्रवर्ती उपाधि के साथ ही सेंगोल सौंपते थे.
चोल साम्राज्य में राजा को ही सर्वोच्च न्याय अधिकारी भी माना जाता था. राज सिंहासन के पास सेंगोल स्थापित किया जाता था. राजा विद्वानों और मंत्रियों के सहारे 2 तरह की सजा सुनाते थे. इसमें पहला, मृत्युदंड और दूसरा आर्थिक दंड. आर्थिक दंड में सोने के सिक्के लिए जाते थे.