9 Years Of PM Modi: Modi Government Is Supporting Women From Birth To Old Age – 9 Years Of PM Modi:मोदी सरकार जन्म से बड़ी उम्र तक महिलाओं का दे रही साथ
उत्तर प्रदेश में अनूपशहर के बाहरी इलाक़े के इस छोटे से गांव में वाल्मीकि समुदाय के परिवार बसते हैं जो रामायण के रचयिता के वंशज होने का दावा करते हैं.
सुबह उठकर अंशिका स्कूल की तैयारी कर रही है, अपने स्कूल का सबक़ दोहरा रही है. उससे पूछने पर कि स्कूल में लंच में क्या मिलता है, वह कहती है चावल, पाव-भाजी, चने और केले.
अंशिका की मां को स्कूल जाना नसीब नहीं हुआ और अपनी उम्र के गांव के ज़्यादातर लोगों की तरह वह भी अनपढ़ है. वह अपना घर दूसरे लोगों के घरों में साफ सफाई करके चलाती है. लेकिन अपनी बेटी के लिए वो एक बेहतर भविष्य चाहती हैं. वे कहती हैं कि अपने बच्चों के बारे में सोचते हैं कि बच्चा अच्छा बने. यह तो नहीं पता कि यह क्या बनेगी, डॉक्टरनी बनेगी, कि मास्टरनी बनेगी. मां के यह कहने पर अंशिका कहती है – डॉक्टर.
नदजीक की अंशिका का बहन कली अपना बस्ता तैयार कर रही है. कली 11वीं कक्षा में है. और आत्मविश्वास से भरी हुई है. उससे पूछने पर कि क्या पढ़ती हो, वह कहती है मैंने पीसीएम लिया है. पूछने पर कि पढ़ाई भारी नहीं लगती? वह कहती है- नहीं, मैंने सोचा अपनी लाइफ में मुझे पायलट बनना है, ताकि मैं पैसेंजरों से एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन छोड़ सकूं. मेरा बचपन से ही सपना था, जब मैं एयरोप्लेन को देखती थी तो लगता था कि काश मैं भी इसे चलाऊं.
अंशिका और कली भारत में बच्चियों की साक्षरता की बदलती कहानी की मिसाल हैं. जिसकी बदहाल स्थिति में एक दशक में काफी बदलाव आया है. माध्यमिक शिक्षा में लड़कियों के दाखिले का प्रतिशत 75.51 प्रतिशत से बढ़कर 79.46 प्रतिशत हो गया. फिर भी फिर भी माध्यमिक शिक्षा में लड़कियों के स्कूल छोड़ने की दर काफ़ी ज़्यादा है. 2015 में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान की शुरुआत हुई और विशेषज्ञों का कहना है कि इससे इस विषय पर खुलकर चर्चा होने लगी.
प्रधानमंत्री की वित्तीय सलाहकार परिषद की सदस्य शमिका रवि कहती हैं कि, स्कूलों में लड़कियों का प्रदर्शन लड़कों से काफी बेहतर होता है. अब तो उच्च शिक्षा में भी भर्ती दर बढ़ी है. लैंगिक खाई लगभग भर चुकी है. आज भारत में महिलाओं के कॉलेज जाने की उतनी ही संभावना है जितनी पुरुषों की.
राजनीतिक विश्लेषक और शोधकर्ता डॉ मनीषा प्रियम का मत है कि, शिक्षा नीति के लक्ष्य तभी पूरे होते हैं जब सरकारें लड़कियों, महिलाओं और सुविधाहीन सामाजिक वर्गों पर विशेष ध्यान देती हैं. वरना लैंगिक दूरियां भर नहीं पातीं. आम लोगों और सुविधाहीन सामाजिक समूह के बीच की खाई भी नहीं भर पाती. तो मुझे लगता है कि आने वाले दिनों में इस पर जोर दिया जाएगा.
अंशिका और काली, परदादा परदादी एजुकेशनल सोसायटी की छात्राएं हैं. यह संस्था 22 साल पहले सैम सिंह ने शुरू की जो 40 साल तक अमेरिका में डुपॉन्ट जैसी बड़ी कंपनी में काम करने के बाद अपने वतन लौटे. भारतीय समाज को बदलने की खातिर डुपॉन्ट के पूर्व प्रमुख जब यहां आए तो सच्चाई ने उन्हें हिलाकर रख दिया.
सैम सिंह ने बताया कि, शिक्षा तो पहली 10 प्रथमिकताओं में भी नहीं आती. इसलिए मैंने यह हल निकाला. अगर मैं तुम्हारी बेटी को पहनने के लिए कपड़े दूं, जिसे हम स्कूल ड्रेस कहें. स्कूल आने-जाने के लिए साइकिल दें और हर दिन 10 रुपये उसके बैंक खाते में करें ताकि 14 साल की उम्र में उसके पास 30-40 हजार रुपये हो जाएं, तो इस तरह हमने परदादा-परदादी नामक यह स्कूल शुरू किया.
बच्चियों के स्कूल में पढ़ते रहने और छोड़ने के फ़ैसले में एक अहम भूमिका पोषण और गर्म खाने की होती है. प्रधानमंत्री पोषण अभियान का इस उम्मीद के साथ विस्तार किया गया कि यह 11 करोड़ 80 लाख बच्चों तक पहुंचेगी. लड़कियों के लिए गर्म खाना शिक्षा के द्वार खोल देता है.
अपोलो अस्पताल की संयुक्त प्रबंध निदेशक डॉ संगीता रेड्डी कहती हैं कि, प्रथमिक शिक्षा को ही लीजिए, उसमें चाहे मिड-डे मील योजना हो, जिसमें लड़के और लड़कियां लगभग बराबर हैं, यह एक बड़ी उपलब्धि है. लेकिन मुझे सबसे ज्यादा इस बात का गर्व है जागरूकता बढ़ने से माध्यमिक शिक्षा में जहां पहले 76 प्रतिशत लड़कियों के नाम लिखे थे, वह अब बढ़कर 84 प्रतिशत हो गए हैं.
यह कक्षाएं अंशिका और काली जैसी लड़कियों के लिए सुरक्षित जगहें हैं. इनके मां-बाप, बालिका और सुकन्या समृद्धि योजनाओं के जरिए इन्हें स्कूलों में भेज पाते हैं क्योंकि यह योजनाएं लड़कियों के परिवारों को कुछ पैसे और छात्रवृत्तियां देती हैं.
छात्रा कली सिंह ने कहा, स्कूल में मुझे स्कॉलरशिप जो मिली थी सरकार की तरफ से, वह तीन हजार मिली थी. मेरी पढ़ाई के लिए बुक्स नहीं हैं, पैन नहीं है, कुछ सामान नहीं है, तो मैंने पैसे का यूज उस जगह किया.
आहार की महिलाओं ने कुछ मदद के साथ अब अपने स्वयं सहायता समूह बना लिए हैं.
परदादा-परदादी एजुकेशनल सोसायटी के संस्थापक वीरेंद्र सैम सिंह ने कहा, जो मैंने शुरू किया था उस मॉडल को गुजरात ले गए. और कहा कि यह उसे अपने गांव में लागू करना है. और आज हमारे यहां 10 हजार ऐसी महिलाएं हैं जो स्वयं सहायता समूह की सदस्य हैं. भारत सरकार के कई कार्यक्रम हैं लेकिन उन्हें अमल में लाने वालों की कमी है. हम लोग वह कमी पूरी कर रहे हैं.
इन समूहों का हिस्सा बनकर इनकी जिंदगी बदल गई है. परदादा-परदादी एजुकेशनल सोसायटी के महिला सशक्तीकरण कार्यक्रम के प्रबंधक प्रबल शुक्ला ने बताया, महिलाएं पहले बातचीत नहीं कर पाती थीं, निकल नहीं पाती थीं. बैंक जाने से लगता था कि बहुत बड़ी चीज है बैंक. मगर अब बदलाव आ रहा है. इनको हम लोगों को बताना होता है कि गवर्नमेंट की जो स्कीम आती हैं, वे कैसे आसानी से मिल जाएंगी. इसमें महिलाएं जितनी भी आती हैं, काफी गरीब तबके से आती हैं.
छात्रा कली की मां ने कहा- मैं समूह में हूं तो मुझे एक नौकरी मिली. शौचालय का साफ-सफाई का काम था. इससे छह हजार रुपये मिलते हैं. कली की दादी और स्वयंसेवा समूह की सदस्य रानी सिंह कहती हैं कि, फायदा होता है बकरी खरीद लेते हैं, कुछ जानवर खरीद लेते हैं. अपना कारोबार चलाते रहते हैं. कमाई हो जाती है. यहां से लेते हैं और वापसी करते जाते हैं. घर का खाना-खर्चा चलाते हैं.
इंडिया सैनिटेशन कोअलिशन और राथ्सचाइल्ड एंड कंपनी, इंडिया की चेयरपर्सन नैना लाल किदवई ने कहा, जो सबसे खास चीज हमने हासिल की है वह राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के जरिए हुई है, जिसमें लगभग चार लाख ग्रामीण महिलाओं के स्वयंसेवा समूहों को प्रशिक्षण के जरिए मदद की गई. इस मिशन ने गरीब और वंचित समुदायों की 8.7 करोड़ महिलाओं को 81 लाख स्वयं सेवा समूहों में जुटाया. मेरे हिसाब से स्वयं सेवा समूह अभियान को देश के अभियान में बदलना बहुत अहम है. हमारे स्वयं सेवा समूह जितने मजबूत होंगे उतना ही माइक्रोफाइनेंस संस्थाओं के लिए उन्हें कर्ज देना आसान हो जाएगा क्योंकि माइक्रोफाइनेंस ज्यादातर स्वयंसेवा समूहों के जरिए ही दिया जाता है.
डॉ संगीता रेड्डी कहती हैं कि, सहकारी और स्वयंसेवा समूह आंदोलन से जुड़े इतने सारे लोग इस मुहिम में जुटे हैं जिससे बड़ा असर पड़ रहा है. उनकी संख्या बढ़ रही है और उनको मजबूत नेतृत्व भी मिल रहा है. प्रधानमंत्री का बहुत मशहूर बयान है कि भारत केवल महिला विकास पर नहीं बल्कि महिलाओं की अगुवाई में विकास पर ध्यान दे रहा है.
हाशिए पर पड़े इन लोगों के लिए स्वयं सहायता समूह एक बेहतर भविष्य तक जाने का पुल है. कली की दादी अनीता देवी का अपना मकान है. वे दो करोड़ ऐसी महिलाओं में से एक हैं जिन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान मिले हैं. अनीता देवी कहती हैं कि, झोपड़ी में रहते थे. गरीबी ज्यादा थी तो क्या करें. समूह वालों की तरफ से प्रधानमंत्री योजना में नाम लिखकर ले गए. तब हमें यह मकान मिला. टायलेट भी सरकार की तरफ से बना. पहले खुले में जाना पड़ता था. शर्म तो आती थी. गरीबी में कहां से जाते लैट्रिन में. अब टायलेट में जाते हैं.
मनीषा प्रियम कहती हैं कि, शौचालय ही लीजिए. लोग इसके बारे में बात नहीं करना चाहते थे.घरों में शौचालयों के बारे में. मेरे खयाल से इससे सरकार और महिला मतदाताओं के बीच एक भरोसा कायम हुआ. उन्हें लगा कि कोई तो उनके बारे में सोच रहा है. फिर आवास योजना को ले लीजिए , इसमें पैसे के आवंटन का तरीका बहुत साफ था.
शमिका रवि के अनुसार, सरकार के पहले कुछ सालों में 10 करोड़ शौचालय बने. तो वो ज्यादातर हाईजीन, पब्लिक हैल्थ को लेकर था. डेटा जब सामने आया, हम लोगों ने एनालाइज किया तो देखा इसका प्रभाव औरतों के ऊपर वो जो एक क्राइम होता है, उसमें बहुत भारी बदलाव, बहुत गिरावट आई. बलात्कार के मामलों में करीब 14 प्रतिशत की कमी आई. महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में 20 प्रतिशत की कमी आई और यह इज्जत की जिंदगी जीने की बुनियादी जरूरतें हैं.
लड़कों से पढ़ाई में आगे, लड़ाकू पायलट और सैनिक, विश्व चैंपियन, मकान की मालकिन, संस्थापक, नेता.. महिलाएं जो वोट देकर चुनाव की हवा बदलने की ताक़त रखती हैं. भारत में लड़कियों और महिलाओं की कहानी आहिस्ता-आहिस्ता बदल रही है.
मदुरै के उसीलमपट्टी गांव में 34 साल की अरुलमोड़ी सरवनन ने प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत 50 हज़ार रुपये का क़र्ज़ लिया जिससे उनका जीवन बदल गया. 2016 में उन्होंने सरकार की ई-मार्केटिंग योजना में सरकारी विभागों के लिए सामान बेचने के लिए अपना नाम लिखवाया. अगले साल ही उन्हें प्रधानमंत्री कार्यालय से थर्मस फ़्लास्क का ऑर्डर मिला. प्रधानमंत्री मोदी ने इनकी कामयाबी की कहानी जून 2017 में मन की बात में सुनाई भी थी.
प्रधानमंत्री ने कहा था, और मजा यह है कि उन्होंने मुझे जो चिट्ठी लिखी वह बहुत इंटरेस्टिंग है. उन्होंने लिखा कि एक तो मुझे मुद्रा से पैसे मिल गए, मेरा कारोबार शुरू हो गया. मैं क्या दे सकती हूं, वह सारी सूची रख दी. और मुझे प्रधानमंत्री कार्यालय से आर्डर मिला.
अरुलमोड़ी सरवनन ने कहा, मुझे 232 रुपये के दस स्टैंप पैड्स का पहला ऑर्डर मिला. मैं बहुत खुश थी. मैंने सामना पैक करते भेज दिया. एक के बाद एक ऑर्डर आते गए. मार्च 2017 में मेरे पास प्रधानमंत्री कार्यालय से ऑर्डर आया. मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा.
SUGAR कॉस्मेटिक्स की सह-संस्थापक विनीता सिंह कहती हैं कि, यह अभी नंबर्स में दिखेगा ही. यह गारंटीड है कि अगले 10 साल में महिला नेतृत्व एक्सप्लोड होने वाला है. मेरी जैसी कई इंटरप्रेन्योर 10 साल पहले सोच नहीं सकती थीं कि अपना खुद का बिजनेस बनाकर बड़ा करें. आज अगर आप देखें शार्क टैंक में 48 परसेंट वीमेन थीं. बहुत चेंज हुआ है. मीडिया का काफी रोल है. हर मीडिया हाउस आज महिला इंटरप्रेन्योर को सेलिब्रेट कर रहा है.
शमिका रवि ने कहा, अगर आप देखें तो वित्तीय सुविधाएं जैसे बैंक खाते तो प्रधानमंत्री जनधन योजना में घर की महिला प्रमुख पर ध्यान दिया गया और इसी वजह से ज्यादातर बैंक खाते महिलाओं के नाम हैं. इसमें बचत है, बीमा है, भुगतान है, कर्ज लेने की बढ़ती सुविधाएं, मुद्रा योजना के तहत मिलने वाला कर्ज है, और आंकड़े देखकर लगता है कि मुद्रा योजना का सबसे छोटा सेगमेंट शिशु में ज्यादातर महिलाओं ने ही कर्ज लिया है.
स्टैंड अप इंडिया स्कीम के तहत (25 नवंबर, 2022) अब तक 1 लाख 58 हज़ार खातों के लिए 35,886 करोड़ रुपये मंज़ूर किए जा चुके हैं. इस योजना की 80% लाभार्थी महिलाएं हैं.
नैना लाल किदवई कहती हैं, मेरा हौसला यह देखकर बहुत बढ़ता है कि दो संस्थाओं के सर्वक्षणों में शायद ग्रांट थॉर्नटन उनमें से एक था, भारत में बड़ी कंपनियों में नेतृत्व के बड़े पदों पर बैठी महिलओं की संख्या विश्व की औसत से ज्यादा है.
कहानी का दूसरा पहलू यह भी है कि महिला कर्मियों की संख्या तेजी से घट रही है. नैना लाल किदवई कहती हैं कि, अगर इस उद्योग में काम कर रही 72 प्रतिशत महिलाएं चार राज्यों में हैं तो हम बाकी राज्यों में क्या कर रहे हैं. हम सबको यह समझना चाहिए और मुझे कोई ताज्जुब नहीं. ये दक्षिण राज्य हैं.
विनीता सिंह कहती हैं कि आज भी इंडिया की वर्क फोर्स में 20 परसेंट से कम मात्रा में वीमेन हैं. इन नंबर में चेंज आने में एक और दशक लगेगा.
संगीता रेड्डी कहती हैं कि, जी 20 सशक्तिकरण का हिस्सा होने के तौर पर मुझे बहुत खुशी है कि भारत की महिलाओं को दुनिया में तोहफे में टेक्नॉलोजी साक्षरता एक डिजिटल फ्लुएंसी मंच मिलेगा.
काली जैसे लड़कियों के लिए अब भी काफी चुनौतियां हैं. लेकिन एक ऐसा देश जो वर्ग के आधार पर बंटा हुआ है और जहां अमीरों और ग़रीबों के बीच की खाई बड़ी है, वहां महिलाओं का सशक्तिकरण परिवारों को ग़रीबी से निकालने का एक अहम ज़रिया है.