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35 Year Old Youth With 91 Percent Disability Created History By Climbing Mount Renock – 91 फीसदी विकलांग 35 साल के युवक ने माउंट रेनॉक पर चढ़ाई करके इतिहास रचा


91 फीसदी विकलांग 35 साल के युवक ने माउंट रेनॉक पर चढ़ाई करके इतिहास रचा

उदय कुमार ने अपनी उपलब्धि का श्रेय एचएमआई की टीम और ग्रुप कैप्टन जय किशन को दिया.

एक नि:शक्त युवक ने अपने हौसले के बलबूते हैरत में डालने वाली साहसिक उपलब्धि हासिल की है. सिक्किम में 35 साल के उदय कुमार, जो कि घुटने के ऊपर 91 प्रतिशत शारीरिक विकलांग, माउंट रेनॉक पर चढ़ाई करने में सफल हो गए हैं. उदय कुमार ने अपनी इस विस्मयकारी उपलब्धि के साथ पश्चिम सिक्किम के कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान में 16,500 फीट ऊंची चोटी पर फतह हासिल करके पर्वतारोहण के इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया है.

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इस अभियान का आयोजन दार्जिलिंग में हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान (HME) ने किया था.

उदय कुमार एचएमआई की एक टीम के साथ पांच मार्च को शिखर पर चढ़े और  यह अभियान 18 मार्च को समाप्त हुआ. शिखर पर चढ़ाई के दौरान उदय कुमार ने खतरनाक ढलानों और चढ़ाई के साथ-साथ अप्रत्याशित मौसम के हालात का सामना किया. हालांकि पूरे सफर के दौरान वे अपने संकल्प पर अडिग रहे और हर कदम के साथ अपने लक्ष्य के करीब पहुंचते गए.

अभियान एक ऐसे ऐतिहासिक क्षण के साथ समाप्त हुआ जब उदय कुमार माउंट रेनॉक पर 780 वर्ग फुट का सबसे बड़ा भारतीय ध्वज फहराने वाले पहले दिव्यांग व्यक्ति बन गए.

उदय कुमार ने अपनी उपलब्धि का श्रेय एचएमआई की टीम और ग्रुप कैप्टन जय किशन को दिया. उन्होंने कहा, “यह ग्रुप कैप्टन जय किशन और एचएमआई की टीम के कारण ही संभव हो सका. जिसकी रीढ़ की हड्डी टूट गई हो, जिसका एक पैर न हो, पैर में केवल चार उंगलियां हों, जिनमें से केवल तीन ही चढ़ने में काम आती हैं, के लिए 16,500 फीट की ऊंचाई एक दूर के सपने की तरह लगती है.” 

उन्होंने कहा, “इस सबके बीच कोविड ने भी मेरे मनोबल को प्रभावित किया. लेकिन उसके बाद मैं जय किशन सर से मिला. उन्होंने मुझे प्रेरित किया और हर दिन मेरा मार्गदर्शन किया. मैंने एचएमआई में जीवन के बारे में बहुत कुछ सीखा है.”

उदय कुमार ने अपनी पर्वतारोहण यात्रा जारी रखने और ऊंची चोटियों पर विजय प्राप्त करने की योजना बनाई है. उन्होंने कहा, “माउंट रेनॉक तो बस शुरुआत है, अभी बहुत कुछ करना बाकी है.”

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उदय कुमार की इस उपलब्धि ने न सिर्फ उन्हें पर्वतारोहण के इतिहास में स्थान दिलाया, बल्कि एक शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्ति द्वारा सबसे बड़ा राष्ट्रीय ध्वज फहराने का एक नया विश्व रिकॉर्ड भी उनके नाम हो गया.



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