1995 Murder Case Bihar Government Assisted Accused Prabhunath Singh Rather Than Prosecute It Fairly
सुप्रीम कोर्ट ने 1995 में बिहार के सारण (छपरा) जिले में विधानसभा चुनाव के दौरान दो लोगों की हत्या के दोषी पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह को उम्रकैद की सजा सुनाई है. कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्य ने निष्पक्ष तरीके से अभियोजन का पक्ष नहीं रखा और साथ ही पूरे कालखंड में आरोपी की मदद की. कोर्ट ने 1 सितंबर को प्रभुनाथ के लिए उम्रकैद कारावास की सजा का आदेश पारित किया था.
सुप्रीम कोर्ट ने 18 अगस्त को प्रभुनाथ सिंह को बरी करने के निचली अदालत और पटना हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए उन्हें दोषी करार दिया था. जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने राष्ट्रीय जनता दल (आरेजडी) नेता को कारावास की सजा सुनाने के साथ उनपर 25 लाख रुपये का अर्थदंड भी लगाया है. मुआवजे के आदेश से संबंधित दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 357 का जिक्र करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा का खंड(ए) मुकदमे पर आए खर्चों की भरपाई करने का भी प्रावधान करता है.
राज्य सरकार को भी लगाई फटकार
पीठ ने एक सितंबर को दिए फैसले में कहा, ‘हम इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए राज्य को ऐसा कोई भी खर्च देने के इच्छुक नहीं हैं क्योंकि राज्य ने वास्तव में मामले पर निष्पक्ष रूप से मुकदमा नहीं चलाया, बल्कि पूरे मामले में आरोपियों की सहायता की.’ पीठ में जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस विक्रम सेठ भी शामिल थे. फैसले में कोर्ट ने कहा कि राज्य के आचरण और पीड़ित परिवार को हुई परेशानी एवं उत्पीड़न को देखते हुए कोर्ट को लगता है कि सीआरपीसी की धारा 357 के तहत दिए जाने वाले मुआवजे के अलावा सीआरपीसी की धारा 357-ए के तहत अतिरिक्त मुआवजा दिया जाना चाहिए.
28 साल पुराना है मामला
पीठ ने कहा, ‘बिहार राज्य दोनों मृतकों के वैध उत्तराधिकारियों और मामले में घायल के जीवित होने पर उन्हें या उनके उसके वैध उत्तराधिकारियों को जुर्माने की राशि देगा यानी मृतक राजेंद्र राय और दारोगा राय के कानूनी उत्तराधिकारियों को 10-10 लाख रुपये का मुआवजा देगा जबकि घायल देवी या उनके कानूनी उत्तराधिकारियों को पांच लाख रुपये का मुआवजा देगा.’ पीठ ने एक सितंबर के फैसले में कहा, ‘मामले के तथ्यों,परिस्थितियों और हमारे निष्कर्षों पर गौर करते हुए और इस तथ्य को भी ध्यान में रखते हुए कि घटना साल 1995 की है, लगभग 28 साल पुरानी है, मौत की सजा देना उचित नहीं होगा और इसलिए हम प्रतिवादी संख्या-दो (प्रभुनाथ सिंह) को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) के तहत आजीवन कारावास की सजा देते हैं और 20 लाख रुपये का जुर्माना लगाते हैं.’
पीठ ने सिंह को हत्या के प्रयास के मामले में भी 7 साल कैद और पांच लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई. कोर्ट ने कहा कि दोनों सजाएं साथ-साथ चलेंगी. फैसले में कहा गया कि जुर्माना और मुआवजे की राशि दो महीने के भीतर निचली अदालत में जमा कराई जाए, ऐसा नहीं होने पर निचली अदालत यह राशि भू-राजस्व के बकाया के तौर पर वसूलेगी. सिंह को दोषी ठहराते हुए कोर्ट ने कहा था कि वह एक ऐसे मामले की सुनवाई कर रहा है जो हमारी फौजदारी न्याय प्रणाली का असाधारण दर्दनाक प्रकरण था.
मुकदमे के मुख्य हितधारक जिम्मेदारियों का निर्वहन करने में विफल रहे- SC
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि सिंह ने अपने खिलाफ सबूतों को मिटाने के लिए हर संभव प्रयास किए. पीठ ने टिप्पणी की कि एक आपराधिक मुकदमे के तीन मुख्य हितधारक- जांच अधिकारी, सरकारी अभियोजक और न्यायपालिका अपने-अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का निर्वहन करने में पूरी तरह से विफल रहे हैं. प्रभुनाथ सिंह 1995 में बिहार की राजधानी पटना के उच्च-सुरक्षा वाले इलाके में जनता दल के विधायक अशोक सिंह की उन्हीं के आवास पर हत्या करने के दोषी ठहराए जाने के बाद हजारीबाग जेल में बंद हैं.