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हिंदुत्ववाद और मराठीवाद के बीच झूलती राज ठाकरे की राजनीति


MNS प्रमुख राज ठाकरे अपने पार्टी के अस्तित्व को बचाने के लिए फिर एक बार आक्रामक मराठीवाद का मुद्दा अपना रहे हैं. इसका संकेत रविवार के दिन उनकी पार्टी की सालाना गुढ़ी पाड़वा रैली के दौरान मिला जब उन्होंने धमकी दी कि मुंबई में रहकर जिन्हें मराठी नहीं आती है उन्हें थप्पड़ खाने होंगे. राज ठाकरे के सियासी करियर पर अगर शुरुवात से गौर करें तो पता चलता है कि वे ज्यादा वक्त तक किसी एक मुद्दे पर टिके नहीं. उनकी राजनीति हिंदुत्ववाद और मराठीवाद के बीच झूलती रही है.

महाराष्ट्र में बीते चार साल से लंबित स्थानीय निकाय चुनाव इस साल के अंत तक हो सकते हैं. इन चुनावों को महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के प्रमुख राज ठाकरे के सियासी अस्तित्व के लिए निर्णायक माना जा रहा है. ठाकरे की ओर से संकेत मिल रहे हैं कि राज्य की सियासत में अपनी खोई हुई जमीन वापस हासिल करने के लिए वे मराठीवाद का मुद्दा अपना सकते हैं.

 साल 2005 में जब राज ठाकरे ने शिवसेना छोड़कर अपनी अलग पार्टी बनाई, तब से वे लगातार अपनी राजनीतिक पहचान स्थापित करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. बार-बार पार्टी की विचारधारा बदलने के बावजूद आंकड़ों ने कभी उनका साथ नहीं दिया. हाल ही में राज ठाकरे ने अपने घर के बाहर शिवाजी पार्क में एक किताबों की प्रदर्शनी का आयोजन किया, जिसे अभिजात पुस्तक प्रदर्शन नाम दिया गया. इसमें मराठी प्रकाशकों ने हजारों किताबों की नुमाइश की. वैसे तो राज ठाकरे एक पुस्तक प्रेमी रहे हैं और उनके घर में किताबों से भरी-पूरी एक लाइब्रेरी है, लेकिन इस प्रदर्शनी का मकसद एक राजनीतिक संदेश देना भी था.

ठाकरे यह जताना चाहते थे कि राज्य में अब भी मराठीभाषियों के सबसे बड़े हितचिंतक वे ही हैं. हाल ही में उन्होंने मुंबई महानगरपालिका आयुक्त भूषण गगरानी से भी मुलाकात की और मांग की कि दूसरे राज्यों से आने वाले मरीजों से बीएमसी के अस्पतालों में अतिरिक्त शुल्क वसूला जाए. ठाकरे के मुताबिक, बाहरी मरीजों के कारण मुंबई के सरकारी अस्पतालों पर दबाव काफी बढ़ गया है. मांग की गई कि जिनके आधार कार्ड में स्थानीय पता हो, केवल उन्हीं का इलाज सामान्य शुल्क पर किया जाए.

चुनावी साल में मराठी किताबों की नुमाइश का आयोजन हो या बीएमसी अस्पतालों में बाहरी राज्यों के मरीजों से अधिक शुल्क वसूलने की मांग,राज ठाकरे लगातार अपने क्रियाकलापों से संकेत दे रहे हैं कि वे फिर से मराठीवाद की राजनीति अपनाने वाले हैं. यह विचारधारा भूतकाल में उन्हें सीमित कामयाबी दिला चुकी है. साल 2006 में पार्टी की स्थापना के समय उन्होंने मराठीवाद का मुद्दा उठाया था. उत्तर भारतीयों के खिलाफ चलाई गई उनकी आक्रामक मुहिम 2008 में हिंसक रूप ले चुकी थी, जिससे महाराष्ट्र के कई इलाकों में दंगे हुए थे. इस ध्रुवीकरण का फायदा राज ठाकरे को 2009 में मिला, जब उनकी पार्टी ने पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा और 13 सीटें जीतीं. इसके बाद नासिक महानगरपालिका चुनाव में भी वे अपनी पार्टी का मेयर जिताने में कामयाब रहे.

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राज ठाकरे को मिली सियासी सफलता पानी के बुलबुले जैसी रही. 2014 और 2019 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी सिर्फ एक सीट ही जीत पाई, और 2024 में एक भी नहीं. नासिक महानगरपालिका से भी उनकी पार्टी की सत्ता चली गई. 2017 में मुंबई महानगरपालिका में एमएनएस के 7 पार्षद चुने गए थे, लेकिन उनमें से 6 शिवसेना में चले गए. बीते विधानसभा चुनाव में उन्होंने अपने बेटे अमित ठाकरे को माहिम सीट से उम्मीदवार बनाकर राजनीति में लॉन्च किया, लेकिन अमित ठाकरे तीसरे स्थान पर रहे, जबकि सीट शिवसेना (ठाकरे गुट) के उम्मीदवार ने जीती. लगातार मिल रही सियासी शिकस्त से परेशान राज ठाकरे ने पार्टी की विचारधारा के साथ कई प्रयोग किए. जो राज ठाकरे कभी कहते थे कि “महाराष्ट्र धर्म के अलावा उनका कोई धर्म नहीं,” उन्होंने फरवरी 2020 में हिंदुत्व का चोला पहन लिया. चूंकि शिवसेना तब कांग्रेस के साथ महाविकास आघाड़ी का हिस्सा बन चुकी थी, उन्हें लगा कि एक कट्टर हिंदुत्ववादी पार्टी के लिए जगह बन गई है, क्योंकि उद्धव ठाकरे के हिंदुत्व में मुस्लिम विरोध का तत्व नहीं था.

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राज ठाकरे ने मस्जिदों पर लगे लाउडस्पीकरों के खिलाफ मुहिम छेड़ी और कार्यकर्ताओं को निर्देश दिया कि अगर मस्जिदों से अजान सुनाई दे, तो उनके सामने हनुमान चालीसा बजाई जाए. अपनी हिंदुत्ववादी छवि को मजबूत करने के लिए उन्होंने सार्वजनिक मंचों पर भगवा रंग के कपड़े पहनने शुरू किए. उनके कार्यकर्ताओं ने बैनर और पोस्टरों में उन्हें “हिंदू जननायक” कहना शुरू कर दिया. इसी के साथ, राज ठाकरे ने गैर-मराठियों के खिलाफ बयान देना बंद कर दिया. हालांकि, उनकी पार्टी की विचारधारा बदल गई, लेकिन मतदाताओं का नजरिया नहीं बदला. 2024 में एमएनएस शून्य विधायकों वाली पार्टी बन गई. अपना सियासी वजूद बनाए रखने के लिए राज ठाकरे को मुंबई महानगरपालिका में अच्छा प्रदर्शन करना बेहद जरूरी है. सवाल यह है कि जिस मराठीवाद ने उन्हें पहले सफलता दिलाई थी, क्या वही नुस्खा अब भी काम करेगा?



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