हिंदी के मशहूर उपन्यास पर जब बनी फिल्म तो लेखक का आगरा का घर ही बन गया सेट, जया बच्चन को ऑफर हुई थी ये फिल्म
नई दिल्ली:
हिंदी दिवस 14 सितंबर को है. हम आपको हिंदी के उस साहित्यकार और उसकी किताब के बारे में बताने जा रहे हैं, जिस पर बॉलीवुड ने फिल्म बनाई और ये फिल्म हिंदी सिनेमा के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुई. हम यहां बात कर रहे हैं हिंदी के जाने-माने साहित्यकार राजेंद्र यादव और उनके उपन्यास सारा आकाश की. सारा आकाश का निर्देशन मशहूर निर्देशक बासु चटर्जी ने किया था. फिल्म 1969 में रिलीज हुई थी. इसमें राकेश पांडे, मधु चक्रवर्ती, नंदिता ठाकुर, ए.के. हंगल, दीना पाठक, मणि कौल, तरला मेहता और जलाल आगा प्रमुख किरदारों में थे. फिल्म की कहानी आगरा में पारंपरिक मध्यवर्गीय संयुक्त परिवार की है और इसमें एक नवविवाहित जोड़े के आंतरिक संघर्षों को दर्शाया गया है, जो घर-गृहस्थी के लिए खुद को पूरी तरह तैयार नहीं समझता है.
हिंदी साहित्यकार राजेंद्र यादव के घर में ही शूट हुई थी फिल्म
इस फिल्म को राजेंद्र यादव के पैतृक आवास पर शूट किया गया था. उनका ये घर आगरा के राजा की मंडी इलाके में था. राजेंद्र यादव ने सारा आकाश उपन्यास के दूसरे संस्करण की प्रस्तावना में बताया था कि डायरेक्टर और सिनेमैटोग्राफर के साथ उस घर पर जाना रोमांचित कर देने वाला अनुभव था.
फिल्म के सिनेमैटोग्राफर ने बासु चटर्जी से कहा था कि ये घर तो रेडीमेड सेट है और ऐसा कुछ मुंबई में नहीं किया जा सकता. इस तरह राजेंद्र यादव ने शूटिंग के लिए अपना वो घर बासु चटर्जी को उपलब्ध कराया था. बताया जाता है कि इस फिल्म के लिए पहले जया बच्चन से संपर्क साधा गया था, लेकिन वह उन दिनों फिल्म ऐंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया में थीं और इस वजह से उन्होंने इस रोल से इनकार कर दिया था.
राजेंद्र यादव का साहित्यिक सफर
राजेंद्र यादव हिंदी साहित्य के प्रतिष्ठित लेखक थे, जिन्हें उनकी सामाजिक और मनोवैज्ञानिक कहानियों के लिए जाना जाता है. राजेंद्र यादव का जन्म उत्तर प्रदेश के आगरा में हुआ था. राजेंद्र यादव ने हिंदी साहित्य को कई महत्वपूर्ण उपन्यास, कहानियां और लेख दिए, जो भारतीय समाज की जटिलताओं और व्यक्तिगत संघर्षों को गहराई से चित्रित करते हैं. राजेंद्र यादव की प्रमुख कृतियों में सारा आकाश, उखड़े हुए लोग, कुल्टा, शह और मात, ढोल और अपने पार और एक इंच मुस्कान शामिल हैं. राजेंद्र यादव हिंदी साहित्य में नई कहानी आंदोलन के प्रमुख हस्ताक्षर थे.
नई कहानी आंदोलन 1950 और 1960 के दशकों में हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण बदलाव लाया, जिसमें पारंपरिक कहानी की संरचनाओं और शैलियों से हटकर नई दृष्टिकोण और विषयवस्तु को शामिल किया गया. इस आंदोलन ने साहित्यिक दृष्टिकोण को आधुनिकता और यथार्थवाद की ओर मोड़ा. राजेंद्र यादव को उनकी साहित्यिक पत्रिका हंस की वजह से भी पहचाना जाता है, जिसका संपादन उन्होंने लंबे समय तक किया.
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