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सुप्रीम कोर्ट में याद की गई 'निर्भया', महिला सुरक्षा के लिए सख्त व्यवस्था की मांग पर जारी हुआ नोटिस



<div dir="auto" style="text-align: justify;">16 दिसंबर 2012 का निर्भया गैंगरेप और हत्याकांड 12 साल बाद सुप्रीम कोर्ट में एक बार फिर याद किया गया. महिला वकीलों के संगठन ‘सुप्रीम कोर्ट वुमेन लॉयर्स एसोसिएशन (SCWLA) ने कोर्ट से पूरे देश के लिए महिलाओं की सुरक्षा पर गाइडलाइंस बनाने और कानूनों में सुधार की मांग की. सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को विचार के लिए स्वीकार करते हुए केंद्र सरकार के अलग-अलग मंत्रालयों को नोटिस जारी किया.</div>
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<div dir="auto" style="text-align: justify;">SCWLA ने सुप्रीम कोर्ट में जो मांगें रखीं हैं, उनमें सार्वजनिक इमारतों और जगहों पर सीसीटीवी कैमरा लगाने, पोर्नोग्राफिक सामग्री पर रोक से लेकर रेप के दोषियों के बधियाकरण (प्रजनन अंग को अयोग्य बना देना) शामिल है. जस्टिस सूर्य कांत और उज्ज्वल भुइयां की बेंच ने मामले पर नोटिस जारी करते हुए कहा कि इसमें से कुछ मांगें क्रूर लग रही हैं. इस पर SCWLA की अध्यक्ष और वरिष्ठ वकील महालक्ष्मी पवनी ने कहा कि कोर्ट चाहे तो उन मांगों को छोड़ कर बाकी पर कोर्ट विचार कर सकता है.</div>
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<div dir="auto" style="text-align: justify;">पवनी ने अपनी दलीलों की शुरुआत यह कहते हुए कही कि निर्भया से लेकर अभया (कोलकाता के आर.जी. कर रेप और हत्याकांड की पीड़िता) तक कुछ नहीं बदला है. सड़क से घर तक महिलाएं रेप का शिकार हो रही हैं. बड़े शहरों में हुए कुछ अपराध तो फिर भी चर्चा में आ जाते हैं, लेकिन छोटी जगहों पर होने वाले अपराध कालीन के नीचे छिपा दिए जाते हैं. कानून व्यवस्था चलाने वालों और समाज के इस रवैये से महिलाओं को होने वाली पीड़ा बहुत बड़ी है.</div>
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<div dir="auto" style="text-align: justify;">वरिष्ठ वकील ने कहा कि कानून बहुत हैं. निर्भया केस के बाद उन्हें और भी सख्त किया गया. लेकिन सवाल उन्हें लागू करने का है. कोर्ट को कानूनों में और सुधार और महिला सुरक्षा व्यवस्था को मजबूती से लागू करने के लिए दिशानिर्देश तय करने पर विचार करना चाहिए.&nbsp;जजो ने रोज़मर्रा के जीवन मे असुरक्षा महसूस कर रही महिलाओं की आवाज़ उठाने के लिए याचिकाकर्ता की सराहना की. उन्होंने कहा कि वह इस बात पर विचार करेंगे कि सुप्रीम कोर्ट के स्तर पर इस मामले में क्या किया जा सकता है. व्यवस्था की खामियों पर गौर किया जाएगा और उन्हें दूर करने की कोशिश की जाएगी.</div>
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<div dir="auto" style="text-align: justify;">ध्यान रहे कि महिला सुरक्षा को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहले भी कई मामलों में गाइडलाइंस जारी कर चुका है. हाल ही में जस्टिस बी वी नागरत्ना की अध्यक्षता वाली बेंच ने सभी सरकारी दफ्तरों में POSH (प्रिवेंशन ऑफ सेक्सुअल हरासमेंट) एक्ट के तहत आंतरिक शिकायत कमिटी बनाने समेत कई निर्देश दिए थे. SCWLA की इस नई याचिका में कुल 20 मांगें की गई हैं. इनमें वेरिफिकेशन के बाद ही सुरक्षा गार्ड नियुक्त करने, ओला-उबर समेत परिवहन क्षेत्र से जुड़े लोगों को महिला सुरक्षा पर प्रशिक्षण देने, OTT पर अश्लील सामग्री रोकने जैसी मांगें भी हैं. ऑनलाइन पोर्नोग्राफी पर रोक की मांग पर टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा कि यह सरकार के अधिकार क्षेत्र में आने वाला नीतिगत विषय है.</div>
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