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वॉटर बंम की तरह डैम का इस्तेमाल कर सकता है चीन… : ड्रैगन के हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट पर बोले अरुणाचल के CM




ईटानगर:

अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने चीन द्वारा यारलुंग त्सांगपो नदी पर दुनिया के सबसे बड़े जलविद्युत बांध के निर्माण को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की. उनका मानना है कि यह परियोजना अरुणाचल प्रदेश, असम और बांग्लादेश में लाखों लोगों की जल सुरक्षा, पारिस्थितिकी और आजीविका के लिए बड़ा खतरा पैदा करती है. उन्होंने कहा कि जल प्रवाह, बाढ़ और पारिस्थितिकी तंत्र में व्यवधान के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं. खांडू ने कहा कि चीन अपने हाइड्रोपावर डैम प्रोजेक्ट का इस्तेमाल वॉटर बॉम्ब की तरह कर सकता है.

पेमा खांडू ने ‘पर्यावरण और सुरक्षा’ विषय पर आयोजित सेमिनार के उद्घाटन समारोह में यारलुंग त्सांगपो नदी पर दुनिया की सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजना के निर्माण की चीनी योजना पर बात की. बता दें कि यारलुंग त्सांगपो नदी अरुणाचल प्रदेश में सियांग के रूप में प्रवेश करती है और बांग्लादेश में बहने से पहले असम में ब्रह्मपुत्र बन जाती है.

अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने चेतावनी दी है कि चीन द्वारा यारलुंग त्सांगपो नदी पर बांध बनाने से गंभीर परिणाम हो सकते हैं. उन्होंने कहा कि बांध के निर्माण से चीन को नीचे की ओर बहने वाले पानी के समय और मात्रा को नियंत्रित करने की शक्ति मिल जाएगी, जिससे सूखा या कम प्रवाह के दौरान विनाशकारी प्रभाव हो सकते हैं. खांडू ने बताया कि सर्दियों में विशाल सियांग या ब्रह्मपुत्र नदी सूख सकती है, जिसके कारण सियांग बेल्ट और असम के मैदानी इलाकों में जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाएगा.

उन्होंने यह भी कहा कि बांध से अचानक पानी छोड़े जाने से मॉनसून के दौरान भयंकर बाढ़ आ सकती है, जिसके परिणामस्वरूप समुदायों का विस्थापन, फसलों का नष्ट होना और बुनियादी ढांचे को नुकसान हो सकता है. इसके अलावा, बांध से तलछट के प्रवाह में बदलाव होगा, जिससे कृषि भूमि प्रभावित हो सकती है, जो नदी से मिलने वाले पोषक तत्वों पर निर्भर है.

खांडू ने यह भी उल्लेख किया कि भारत की प्रमुख नदियां तिब्बती पठार से निकलती हैं और चीन द्वारा तिब्बत के प्राकृतिक संसाधनों का अनियंत्रित दोहन इन नदी प्रणालियों के अस्तित्व के लिए खतरा है. तिब्बत को ‘एशिया का जल मीनार’ कहा जाता है, जो एक अरब से अधिक लोगों को पानी की आपूर्ति करता है. इसलिए, तिब्बत की नदियों और जलवायु पैटर्न पर भारत की प्रत्यक्ष निर्भरता को देखते हुए उन्होंने भारत से वैश्विक पर्यावरण संरक्षण प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की आवश्यकता की बात की.
 




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