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विदेशियों ने बदली बोधगया के इस गांव की तस्‍वीर, गंदगी और झोपड़ी की जगह बने टाइल्स लगे शानदार मकान



बोधगया:

बिहार के बोधगया में महादलित परिवारों के लिए एक विदेशी संस्था ने कमाल कर दिया है. अब इसकी तारीफ हर जगह हो रही है. कभी गांव में गंदी नालियां थीं और महादलित परिवार घास-फूस की झोपड़ियां बनाकर रहते थे. हालांकि अब दृश्‍य बदल चुका है. यह परिवार अब टाइल्स लगे पक्के मकान में रह रहे हैं और इस सिलौंजा गांव को ‘दशरथ देश’ गांव का नाम दिया गया है. विदेशियों ने इन महादलित परिवारों के सपने को साकार कर दिया है. 

यह गांव अब बिहार की सबसे आधुनिक कॉलोनियों में शुमार हो चुका है. इस गांव में करीब 100 से 150 महादलित परिवार रहते हैं. आमतौर पर यह लोग तिरपाल और घास-फूस की झोपड़ियों और गंदगी से भरी नालियों के बीच रहने को मजबूर थे और मजदूरी कर किसी तरह से अपना पालन पोषण कर रहे थे. 

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चेंग येंग ने लिया बदलाव का संकल्प

बोधगया बौद्ध धर्म का पवित्र तीर्थ स्थल है. यह हर साल देश-विदेश से हजारों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है. पिछले साल ताइवान की ‘बौद्ध सूची चैरिटी फाउंडेशन’ के सदस्य बोधगया आए थे. सिलौंजा गांव में महादलित परिवारों की दयनीय स्थिति देखकर उन्‍हें बुरा लगा. इसके बाद इन परिवारों के लिए संस्था के प्रमुख मास्टर चेंग येंग ने बदलाव का संकल्प लिया. 

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40 शानदार पक्‍के घर बनकर तैयार

संस्था ने सबसे पहले गांव के परिवारों से जमीन के दस्तावेज मांगे और कागजी प्रक्रिया पूरी करने वालों की सूची तैयार की. इसके बाद इन परिवारों के लिए पक्के और आधुनिक मकान बनाए गए. ये मकान साधारण नहीं, बल्कि शानदार और सुविधायुक्त हैं. टाइल्स और पुट्टी से सजी दीवारें, चौकी, गार्डन, किचन, दो बेडरूम, बरामदा और घर के बाहर हैंडपंप जैसी सुविधाओं ने इन घरों को वीआईपी कॉलोनी का दर्जा दिलाया. यह कॉलोनी किसी वीआईपी कॉलोनी से कम नहीं दिखती है. फिलहाल 40 परिवारों को घर बनाकर दिया गया है. वहीं संस्‍था ने कागजी प्रक्रिया पूरी करने के बाद अन्‍य लोगों को घर बनाकर देने का आश्‍वासन दिया है. 

13 लाख रुपयों से घरों का निर्माण

महादलित परिवार के बसंत माझी बताते हैं कि बरसात और गर्मी में पानी और तेज हवाओं के कारण हमारे घर हर साल ध्वस्त हो जाते थे, लेकिन ताइवान की संस्‍था ने हमारे दर्द को समझा और प्रशासनिक अनुमति लेकर आलीशान मकान बना दिया. उन्‍होंने बताया कि एक मकान करीब 13 लाख रुपए से बना है. 

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दशरथ मांझी की प्रतिमा की स्‍थापित 

वही टिंकू देवी बताती है कि हमें विश्वास नहीं था, लेकिन जब मकान बनने लगा तो हमें विश्वास हुआ. हमारा मकान बन गया है और जो लोग बच गए हैं, उनसे भी जमीन से दस्‍तावेजों की मांग की गई है. उनका मकान भी यह लोग ही बनाकर देंगे. 

वहीं विदेशी संस्था और महादलित परिवारों को सहायता पहुंचाने में मदद करने वाले बुद्धिस्ट और महादलित परिवार से आने वाले ललन मांझी बताते हैं कि ताइवान की संस्था ‘बौद्ध सूची चैरिटी फाउंडेशन’ के लोग घूमने के लिए आए थे. हमारी दुर्दशा देखकर के वे लोग काफी आहत हुए और उन्‍होंने दो सालों में ही घर बना दिए. उन लोगों ने इस गांव का नाम ‘दशरथ देश’ रखा है. वहीं दशरथ मांझी की आदमकद प्रतिमा भी लगाई गई है. 




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