रामदेव और आचार्य बालकृष्ण को बड़ी राहत, SC ने भ्रामक विज्ञापन मामले में माफीनामा किया मंजूर
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट से योग गुरु स्वामी रामदेव और पतंजलि आयुर्वेद के एमडी आचार्य बालकृष्ण को बड़ी राहत मिली है. सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को रामदेव, उनके सहयोगी बालकृष्ण और पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के खिलाफ़ भ्रामक विज्ञापन मामले में उनके द्वारा मांगी गई माफ़ी स्वीकार कर ली है. साथ ही अवमानना केस भी बंद कर दिया है. योग गुरु, बालकृष्ण और फ़र्म का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता गौतम तालुकदार ने कहा, “अदालत ने रामदेव, बालकृष्ण और पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड द्वारा दिए गए वचनों के आधार पर अवमानना कार्यवाही बंद कर दी है.”
शीर्ष अदालत ने भ्रामक विज्ञापन मामले में योग गुरु रामदेव, उनके सहयोगी बालकृष्ण और पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड को जारी अवमानना नोटिस पर 14 मई को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था.
क्या है मामला
यह मामला कोविड के वक्त का है जब पतंजलि ने कोरोनिल नाम की एक दवा 2021 में शुरू की थी. रामदेव ने इस दवा को लेकर दावा किया था कि, “कोविड-19 के लिए पहली साक्ष्य-आधारित दवा”. पतंजलि ने यह भी दावा किया कि कोरोनिल को विश्व स्वास्थ्य संगठन से प्रमाणन प्राप्त है, लेकिन इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने इसे “सरासर झूठ” बताया.
रामदेव का एक वीडियो वायरल होने के बाद चिकित्सा संस्था और पतंजलि के बीच टकराव बढ़ गया, जिसमें उन्हें यह कहते हुए सुना गया कि एलोपैथी एक “बेवकूफ और दिवालिया विज्ञान” है. आईएमए ने रामदेव को कानूनी नोटिस भेजा और माफी मांगने को कहा. पतंजलि योगपीठ ने जवाब दिया कि रामदेव एक अग्रेषित व्हाट्सएप संदेश पढ़ रहे थे और उनके मन में आधुनिक विज्ञान के प्रति कोई दुर्भावना नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट पहुंचा आईएमए
अगस्त 2022 में, आईएमए ने समाचार पत्रों में ‘एलोपैथी द्वारा फैलाई गई गलतफहमी: फार्मा और मेडिकल उद्योग द्वारा फैलाई गई गलत धारणाओं से खुद को और देश को बचाएं’ शीर्षक से एक विज्ञापन प्रकाशित करने के बाद पतंजलि के खिलाफ एक याचिका दायर की थी. विज्ञापन में दावा किया गया कि पतंजलि की दवाओं से लोगों को मधुमेह, उच्च रक्तचाप, थायराइड, लीवर सिरोसिस, गठिया और अस्थमा ठीक हो गया है.
पिछले साल 21 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि को ऐसे दावों के खिलाफ चेतावनी दी थी और भारी जुर्माना लगाने की चेतावनी भी दी थी. अदालत के दस्तावेज़ों के अनुसार, पतंजलि के वकील ने तब आश्वासन दिया था कि “अब से, किसी भी कानून का उल्लंघन नहीं होगा, विशेष रूप से उत्पादों के विज्ञापन और ब्रांडिंग से संबंधित.”
इस साल 15 जनवरी को, सुप्रीम कोर्ट को भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ को संबोधित एक गुमनाम पत्र मिला, जिसकी प्रतियां न्यायमूर्ति कोहली और न्यायमूर्ति अमानुल्लाह को भेजी गईं. पत्र में पतंजलि द्वारा लगातार जारी किए जा रहे भ्रामक विज्ञापनों का जिक्र किया गया है. आईएमए के वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता पीएस पटवालिया ने अदालत को 21 नवंबर, 2023 की चेतावनी के बाद के अखबारों के विज्ञापन और अदालत की सुनवाई के बाद रामदेव और बालकृष्ण की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की प्रतिलेख भी दिखाया. इसके बाद कोर्ट ने पतंजलि से जवाब मांगा और पूछा कि उसके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू की जाए.
19 मार्च को कोर्ट को बताया गया कि पतंजलि ने अवमानना नोटिस का जवाब दाखिल नहीं किया है. इसके बाद कोर्ट ने रामदेव और बालकृष्ण को व्यक्तिगत रूप से पेश होने के लिए कहा. अदालत ने 2 अप्रैल की सुनवाई में भ्रामक विज्ञापनों पर उचित हलफनामा दायर नहीं करने पर “पूर्ण अवज्ञा” के लिए रामदेव और बालकृष्ण को कड़ी फटकार लगाई. इसके बाद 10 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट द्वारा माफीनामा खारिज कर दिया गया क्योंकि उन्हें पहले मीडिया को भेजा गया था.
अदालत ने कहा कि उनकी माफ़ी “दिल से नहीं मांगी थी” और “जबानी दिखावा मात्र” थी. इसके बाद 16 अप्रैल को एक सुनवाई में, दोनों को माफी मांगने का अपना इरादा प्रदर्शित करने के लिए कहा गया था.