राजस्थान में बीजेपी जीती तो पीएम मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा के लिए शुरू हो जाएगा सबसे बड़ा इम्तिहान?
<p style="text-align: justify;">राजस्थान में अशोक गहलोत की गारंटी पर मोदी की गारंटी भारी पड़ गई है. एग्जिट पोल सर्वे की मानें तो इस बार भी परंपरा के हिसाब से राजस्थान में राज बदलने जा रही है. एबीपी-सी वोटर के एग्जिट पोल में बीजेपी को स्पष्ट बहुमत मिलता दिख रहा है. </p>
<p style="text-align: justify;">एग्जिट पोल के मुताबिक भारतीय जनता पार्टी को 94-114 सीटें मिल सकती है. राज्य में बहुमत के लिए 100 सीटों की जरूरत है. </p>
<p style="text-align: justify;">5 राज्यों के चुनाव में राजस्थान एकमात्र राज्य है, जहां बीजेपी की सरकार बनती दिख रही है. हालांकि, यहां मुख्यमंत्री का चयन पार्टी हाईकमान के लिए आसान नहीं रहने वाला है. राजस्थान में बीजेपी की तरफ से मुख्यमंत्री पद के लिए कम से कम 5 बड़े दावेदार हैं. </p>
<p style="text-align: justify;">हालांकि, जीत के करीबी आंकड़ों की वजह से मुख्यमंत्री फाइनल करना पार्टी हाईकमान के लिए आसान नहीं रहने वाला है. जानकारों का कहना है कि पार्टी का यह एक फैसला 2 स्तर पर प्रभाव डाल सकता है. </p>
<p style="text-align: justify;">पहला असर <a title="लोकसभा चुनाव" href="https://www.abplive.com/topic/lok-sabha-election-2024" data-type="interlinkingkeywords">लोकसभा चुनाव</a> के दौरान होगा, जो अब से 3 महीने बाद ही प्रस्तावित है. सीएम चयन का प्रभाव 5 साल सरकार चलाने पर भी पड़ने वाला है. </p>
<p style="text-align: justify;"><strong>बीजेपी में कितने सीएम दावेदार?</strong></p>
<p style="text-align: justify;"><strong>वसुंधरा राजे-</strong> भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे 2 बार राजस्थान की मुख्यमंत्री रही हैं. पूरे चुनाव में एकमात्र प्रदेश स्तर की नेता थीं, जिन्होंने अपने सीट से बाहर भी जाकर बीजेपी उम्मीदवारों के लिए प्रचार किया. </p>
<p style="text-align: justify;">चुनाव से पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा था कि वसुंधरा ही बीजेपी का छुपा हुआ चेहरा है. </p>
<p style="text-align: justify;">हालांकि, वसुंधरा और बीजेपी हाईकमान की तल्खी की चर्चा राजस्थान के सियासी गलियारों में सबसे ज्यादा होती है. अमित शाह और वसुंधरा के बीच अदावत की खबरें सूत्रों के हवाले से राजस्थान की अखबारों में खूब छपती है. </p>
<p style="text-align: justify;">वसुंधरा राजे की राह में एक बड़ा रोड़ा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेताओं की नाराजगी को भी माना जा रहा है. 2003 में जब वसुंधरा पहली बार मुख्यमंत्री बनी थी, तब से ही संघ के नेताओं के साथ उनके विवाद शुरू हो गए थे. </p>
<p style="text-align: justify;"><br /><img src="https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2023/11/29/301f289615231bbbfd904a9ce7aa74441701251396086621_original.jpeg" /></p>
<p style="text-align: justify;">संघ के तत्कालीन प्रमुख केएस सुदर्शन ने खुले तौर पर वसुंधरा के कामकाज की आलोचना की थी. 2008 आते-आते संघ बैकग्राउंड के कई नेताओं ने सरकार से खुद को अलग कर लिया था. हालांकि, विधायकों के समर्थन की वजह से वसुंधरा मजबूत बनी रही.</p>
<p style="text-align: justify;">2013 में वसुंधरा को दूसरी बार मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली, लेकिन हाईकमान इस बार भी ज्यादा खुश नहीं था. 2018 में वसुंधरा के वीटो ने हाईकमान के करीबी गजेंद्र सिंह शेखावत को प्रदेश अध्यक्ष नहीं बनने दिया था.</p>
<p style="text-align: justify;">इस सबके इतर वसुंधरा के पक्ष में समर्थन की बातें कही जा रही है. वसुंधरा के 50 से ज्यादा करीबी नेता बीजेपी के सिंबल पर चुनाव लड़ रहे हैं. 10 से ज्यादा करीबी निर्दलीय ताल ठोक रहे हैं और चुनाव जीतने की स्थिति में भी है. </p>
<p style="text-align: justify;">अगर वसुंधरा 50 विधायकों का समर्थन चुनाव बाद जुटा लेती हैं, तो उन्हें इग्नोर करना हाईकमान को भारी पड़ सकता है. </p>
<p style="text-align: justify;"><strong>दीया कुमारी-</strong> ‘वसुंधरा नहीं तो कौन’… वाले सवाल का सियासी गलियारों में सबसे पहला जवाब राजसमंद से सांसद दीया कुमारी हैं. वसुंधरा की तरह ही दीया राजघराने के ताल्लुक रखती हैं. उन्हें बीजेपी हाईकमान खासकर प्रधानमंत्री मोदी का भरोसेमंद माना जाता है. </p>
<p style="text-align: justify;">जयपुर राजघराने की एकमात्र वारिस दीया ने 2013 में राजनीति ज्वॉइन की थी. वर्तमान में जयपुर की विद्याधरनगर सीट से विधायकी लड़ रही हैं.</p>
<p style="text-align: justify;">राजपूत चेहरा होने की वजह से दीया के नाम रेस में सबसे आगे है. हालांकि, यही वजह उनकी राह में रोड़ा भी है. राजस्थान में लगातार राजपूतों को मुख्यमंत्री बनाने की वजह से जाट और गुर्जर वोटर 2018 में बीजेपी से छिटक गई थी.</p>
<p style="text-align: justify;">इस बार पार्टी ने इन वोटरों को साधने के लिए किसी को भी सीएम चेहरा घोषित नहीं किया है. सरकार बनने पर बीजेपी अगर दीया कुमारी को मुख्यमंत्री बनाती हैं, तो भविष्य में पार्टी से जाट और गुर्जरों को छिटकने का डर बना रहेगा.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>अर्जुन राम मेघवाल-</strong> राजस्थान बीजेपी के भीतर अर्जुन राम मेघवाल को सीएम पद के लिए डार्क हॉर्स के रूप में देखा जा रहा है. मेघवाल वर्तमान में मोदी कैबिनेट में मंत्री हैं और उन्हें प्रधानमंत्री का काफी करीबी माना जाता है.</p>
<p style="text-align: justify;">आईएएस की नौकरी छोड़ राजनीति में आए मेघवाल दलित समुदाय से भी हैं. सिर्फ राजस्थान में दलित समुदाय की आबादी राजस्थान में 16 प्रतिशत के आसपास है. मोदी कैबिनेट में भी मेघवाल को दलित कोटे से ही जगह मिली थी.</p>
<p style="text-align: justify;">निहालचंद गहलोत की जगह 2016 में मेघवाल को कैबिनेट में शामिल किया गया था. राजस्थान में 17 प्रतिशत दलित हैं, जिसका रुझान अक्सर कांग्रेस की तरफ रहती है. बीएसपी भी दलित वोटों के जरिए हर चुनाव में 5-10 सीट जीतने में कामयाब हो जाती है.</p>
<p style="text-align: justify;">मेघवाल की एक खूबी किसी गुट से न होने की भी है. वसुंधरा के समय ही उन्होंने बीजेपी का दामन थामा था. ऐसे में अगर मेघवाल को बीजेपी सीएम के रूप में प्रोजेक्ट करती है, तो शायद ही वसुंधरा खुलकर इसका विरोध करे.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>ओम बिरला-</strong> लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के नाम की भी चर्चा जोरों पर है. बिरला राजस्थान बीजेपी का निर्विवाद चेहरा हैं. टिकट बंटवारे के बाद ओम बिरला को ही डैमेज कंट्रोल करने की जिम्मेदारी मिली थी. </p>
<p style="text-align: justify;">बिरला पर राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ का वरदहस्त भी है. जीत का मार्जिन कम रहना भी बिरला के फेवर में जा सकता है. क्योंकि बिरला किसी गुट से नहीं हैं.</p>
<p style="text-align: justify;">हालांकि, बिरला के राह में रोड़े भी कम नहीं हैं. बिरला का राज्य की लोकल पॉलिटिक्स में ज्यादा दखल नहीं रहा है. कोटा के अलावा अन्य जिलों में उनका प्रभाव कम ही है. इसके अलावा बिरला वर्तमान में लोकसभा स्पीकर हैं और केंद्र की राजनीति कर रहे हैं. <br /><br /><img src="https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2023/11/29/cfd50d62e32c17f7935c765d605598881701251431944621_original.jpeg" /></p>
<p style="text-align: justify;"><strong>ये भी दावेदार, लेकिन रेस में काफी पीछे</strong></p>
<p style="text-align: justify;">इन 4 नामों के अलावा सतीश पूनियां, राजेंद्र राठौड़, बाबा बालकनाथ और गजेंद्र सिंह शेखावत भी सीएम पद के दावेदार हैं. हालांकि, कई वजहों से यह सभी रेस में काफी पीछे हैं. </p>
<p style="text-align: justify;">पूनिया जाट नेता हैं, लेकिन पार्टी में वसुंधरा गुट से उनकी अदावत काफी चर्चित है. राठौड़ भी 36 कौम में लोकप्रिय नहीं हैं. इसी तरह शेखावत के नाम पर भी पार्टी के भीतर विरोध के स्वर उठ सकते हैं.</p>
<p style="text-align: justify;">हाल ही में सरदारपुरा सीट से शेखावत ने अशोक गहलोत के खिलाफ चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया था.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>एक सीएम और 2 डिप्टी सीएम का फॉर्मूला भी चर्चा में</strong><br />राजस्थान की सत्ता में अगर बीजेपी आती है, तो उत्तर प्रदेश का फॉर्मूला लागू कर सकती है. 2017 में यूपी की सत्ता में आने के बाद बीजेपी ने एक मुख्यमंत्री के साथ 2 डिप्टी सीएम बनाया था. राजस्थान में भी इसी तरह से बीजेपी सत्ता के समीकरण को साध सकती है. </p>
<p style="text-align: justify;">सियासी गलियारों में कहा जा रहा है कि इस फॉर्मूले से पार्टी 3 जातियों को एक साथ साधने की रणनीति पर काम कर रही है. राजनीति रूप से राजस्थान में जाट, गुर्जर, मीणा, राजपूत, ब्राह्मण और दलित मुखर है. </p>
<p style="text-align: justify;">विधानसभा में इन्हीं 5 समुदाय से सबसे ज्यादा विधायक चुनकर जाते हैं. </p>
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