मूंग की फसल के लिए शराब को वरदान मान रहे MP के किसान, कीड़ों से बचाव और ज्यादा पैदावार का दावा
शराब भले ही सेहत के लिये ठीक ना हो, लेकिन मध्यप्रदेश के नर्मदापुरम जिले में किसान इसे मूंग के लिए वरदान मान रहे हैं. मूंग के अलावा कुछ किसान फसलों पर हल्दी, दूध का भी प्रयोग कर रहे हैं. उनका कहना है कि कीटनाशक के छिड़काव से नुकसान होता है, हालांकि कृषि वैज्ञानिकों की राय जुदा है. नर्मदापुरम के किसानों का मानना है कि शराब छिड़कने से मूंग की फली बगर जाती है यानी बहुत भरी हुई होती है. कई किसान 11 लीटर और 16 लीटर की स्प्रे मशीन में 100 एमएल तक देसी और अंग्रेजी शराब मिलाकर छिड़काव करते हैं.
नर्मदापुरम जिले में नयाखेड़ा गांव के किसान प्रेमशंकर पटेल की 5 एकड़ में खेती है. ज्यादातर मूंग, गेंहू और कभी कभार धान लेते हैं. प्रेमशंकर बताते हैं कि मूंग में कीटनाशक छिड़कने का खर्च हर एकड़ में 100-150 रुपये आता है, देसी शराब से 10-12 रु. प्रति एकड़ में काम हो जाता है. इल्लियों के लिए थोड़ा बहुत कीटनाशक छिड़कना पड़ता है. छिड़काव फसल बोने के 40 दिन बाद किया जाता है. उन्होंने कहा कि इससे अच्छी फसल होती है.
कीड़ों से बचाव, ज्यादा पैदावार!
कई किसान देसी शराब, महुए की शराब पानी में मिलाकर भी छिड़काव कर रहे हैं. बिछुआ के रहने वाले घासी राम के मुताबिक, कीटनाशकों के दाम बहुत ज्यादा होने से फसलों को बचाने के लिए शराब का इस्तेमाल शुरू किया गया है. इससे फसलें कीड़ों से भी बच रही हैं और पैदावार भी बढ़ रही हैं. घासीराम का कहना है कि कीटनाशक के साथ देसी शराब मिलाने से फायदा होता है. इससे फूल और फली अच्छी आते हैं और रोग भी कम लगता है. उन्होंने कहा कि शराब 80-90 रुपये की आती है, देसी शराब काम करेगी ही करेगी. वहीं कीटनाशक में 1500 रुपये में भी सही तरीके से काम नहीं हो रहा है.
महंगा कीटनाशक, सस्ती शराब
मूंग की फसल के लिए बाजार में कोरोजन, एमिडा, एसिडा, थायो, करेंट जैसे कीटनाशक 1200 से 1800 रुपये में 150 एमएल मिलता है, जबकि देसी शराब 80 रुपये और अंग्रेजी शराब 200 रुपये में 180 एमएल तक मिल जाती है. पैदावार बढ़ाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली ‘मोनो’ एक एकड़ के लिए करीब 360 रुपये की आती है.
जैविक खेती के लिए सुविधाएं नहीं
जमुनिया रंधीर गांव में 30 एकड़ में खेती करने वाले किसान जीतेन्द्र भार्गव कहते हैं, मूंग में उत्पादन बढ़ाने के लिए दवा डाली जाती है, लेकिन एक चौथाई से भी कम कीमत में शराब का छिड़काव हो जाता है. प्रति एकड़ 500 एमएल शराब लगती है, 15 लीटर पानी में लगभग 100 एमएल के हिसाब से शराब मिलाई जाती है. जीतेन्द्र भार्गव ने कहा कि इस क्षेत्र में जैविक खेती को बहुत प्रोत्साहन दिया जा रहा है लेकिन इसमें सुविधाएं उतनी नहीं है. उन्होंने कहा कि बिना गौ माता के जैविक खेती संभव नहीं है. शराब से खेती एक विकल्प है. शराब सस्ती पड़ती है, जो कैमिकल मूंग में डालते हैं, उसे शराब में मिलाएंगे. सौ से सवा सौ रुपये में मिल जाती है और एक एकड़ में छिड़काव हो जाता है.
किसानों के लिए शराब सस्ता विकल्प
मूंग की फसल में फली भ्रंग, हरा फुदका, माहू और कंबल कीड़ों का डर रहता है. इन्हें मारने के लिए लगभग 800-1000 लीटर की दवाएं आती हैं. ऐसे में किसानों के लिये शराब सस्ता विकल्प है.
कृषि वैज्ञानिकों की जुदा है राय
हालांकि कृषि वैज्ञानिकों की राय जुदा है. वो कहते हैं ऐसा कोई वैज्ञानिक अनुसंधान नहीं है, जिससे ये बात साबित हो कि शराब कीड़ों के लिए तनाव की वजह बन सकती है. यह उपचार नहीं है.
मूंग की फसल की ज्यादा बुवाई
साल 2023 में राज्य में लगभग 10 लाख 79 हजार हेक्टेयर में मूंग का लक्ष्य है. पिछले साल 9.29 लाख हेक्टेयर में मूंग की फसल की बुवाई हुई थी, जिसमें अनुमानित उत्पादन 15 लाख मीट्रिक टन था. 2022-23 में मूंग की खरीद के लिए मध्य प्रदेश को 2 लाख 75 हजार 645 मीट्रिक टन का लक्ष्य मिला था, जबकि राज्य सरकार ने 3.5 लाख मीट्रिक टन मूंग की खरीद की थी. फायदे को देखते हुए इस बार ज्यादा रकबे में किसानों ने मूंग की फसल की बुवाई की है. ऐसे में किसानों का मानना है कि मूंग उत्पादन के लिए दवा से दारू बेहतर है.
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