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'बेल मिल गई तो भी जेल में ही रहोगे', 'ये आप मत बताइए…', पार्थ चटर्जी की बेल पर ईडी की ओर से बोले ASG राजू तो सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे किया चुप



<p style="text-align: justify;">सुप्रीम कोर्ट नें बुधवार (4 दिसंबर, 2024) को पश्चिम बंगाल के पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए प्रवर्तन निदेशालय के विरोध पर कहा कि ये आप नहीं कह सकते कि बेल मिलने के बाद भी पार्थ चटर्जी जेल से बाहर नहीं आ सकेंगे. प्रवर्तन निदेशालय का तर्क था कि पार्थ चटर्जी पर सीबीआई का केस भी चल रहा है इसलिए अगर उन्हें ईडी के मामले में बेल मिल भी जाए तो भी वह जेल से बाहर नहीं आ सकेंगे.</p>
<p style="text-align: justify;">पश्चिम बंगाल के शिक्षक भर्ती घोटाला मामले में ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज किया है. साथ ही वह सीबीआई की कस्टडी में भी हैं. ईडी की तरफ से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू दलील दे रहे थे. वहीं, पार्थ चटर्जी का पक्ष रखने के लिए सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी कोर्ट में पेश हुए. मामले पर सुनवाई जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुईयां के बेंच कर रही थी. इस दौरान एएसजी राजू ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए कोर्ट को बताया कि पार्थ चटर्जी पर कितने गंभीर आरोप लगे हैं.</p>
<p style="text-align: justify;">एएसजी राजू ने कोर्ट से कहा कि पार्थ चटर्जी को बेल मिल जाती है तो भी वह जेल से बाहर नहीं आ पाएंगे क्योंकि उन पर सीबीआई का मामला भी चल रहा है और वह उसकी कस्टडी में हैं. इस पर सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने आपत्ति जताई और सवाल किया कि ये किस तरह का तर्क है. उन्होंने कहा कि बाकी आरोपियों को तो बेल मिल रही है.</p>
<p style="text-align: justify;">एएसजी एसवी राजू ने कहा कि जमानत से इनकार करने से पार्थ चटर्जी को कोई नुकसान नहीं होगा क्योंकि सीबीआई कस्टडी की वजह से वह तो वैसे भी बाहर नहीं आ पाएंगे, लेकिन हां अगर वह जमानत के लिए अभी इनकार करते हैं तो उन्हें इसका ये फायदा मिल सकता है. ट्रायल खत्म होने के बाद वह मुजरा (Set-off) के लिए दावा कर सकते हैं. सीआरपीसी 1973 की धारा 428 के तहत ऐसी व्यवस्था दी गई है, जिसमें अभियुक्त को ये अधिकार है कि वह जांच और ट्रायल के दौरान जेल में बिताई गई अवधि को दोषसिद्धी पर दी गई सजा की अवधि में से घटाने के लिए दावा कर सकते हैं. इस प्रक्रिया को मुजरा (Set-Off) कहते हैं.&nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;">एएसजी राजू के तर्क पर जस्टिस उज्जल भुईयां ने उन्हें टोकते हुए कहा कि आप ये कैसे कह सकते हैं कि बेल मिलने के बाद पार्थ चटर्जी जेल से बाहर नहीं आ सकेंगे. उन्होंने कहा, ‘अगर पार्थ चटर्जी को बेल मिलती है तो उसका मतलब बेल ही है. ये मत कहिए कि वह जेल से बाहर नहीं आ सकेंगे. आपको नहीं पता है कि ट्रायल कोर्ट क्या करेगा. हमारा कोर्ट कहता है कि एक दिन के लिए भी स्वतंत्रता से वंचित करना बहुत ज्यादा होता है.'</p>
<p style="text-align: justify;">मुकुल रोहतगी ने पार्थ चटर्जी की बेल के लिए कोर्ट में मनी लॉन्ड्रिंग के दूसरे मामलों का जिक्र किया, जिनमें ट्रायल जल्द शुरू न होने की संभावना को देखते हुए कोर्ट ने बेल दे दी. उन्होंने बताया कि उनके मुवक्किल ढाई साल से जेल में हैं. एडवोकेट रोहतगी ने तमिलनाडु के मंत्री सेंथिल बालाजी को बेल दिए जाने की भी बात कही. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि रिकवरी का पैसा पार्थ चटर्जी के आवास से नहीं मिला है.</p>
<p style="text-align: justify;">जस्टिस सूर्यकांत ने उनकी दलीलों पर कहा कि देश में मंत्रियों का कोई संघ नहीं है इसलिए समानता का दावा न करें. उन्होंने यह भी कहा कि पार्थ चटर्जी पर 28 करोड़ रुपये की रिकवरी के आरोप हैं और ये सामान्य सी बात है कि रिश्वत का पैसा वह अपने घर पर नहीं रखेंगे. उन पर आरोप है कि उन्होंने फॉर्थ क्लास के कर्चारियों और असिस्टेंट प्राइमरी टीचर्स से रिश्वत लेकर डमी कंपनियों और लोगों के नाम भेज दी. 27 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने पार्थ चटर्जी को बगैर ट्रायल शुरू किए लंबे समय तक जेल में रखे जाने पर चिंता व्यक्त की थी और ईडी की दोषसिद्धी दर पर भी नाराजगी जताई थी, जिसकी वजह से आरोपियों को लंबे समय तक जेल में रहना पड़ता है. हालांकि, कोर्ट ने मामले को अगली सुनवाई के लिए टाल दिया था.</p>
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