बांग्लादेश में देश भर में लगा कर्फ्यू, विरोध प्रदर्शन में 105 लोगों की मौत के बाद सेना की तैनाती
नई दिल्ली:
बांग्लादेश में हिंसक प्रदर्शन के बाद स्थिति और गंभीर हो गई है. बांग्लादेश की पुलिस हिंसा रोकने में असक्षम हो रही है, जिसके बाद सरकार ने सैन्य बलों की तैनाती की घोषणा की है. एएफपी के अनुसार, छात्र प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच इस सप्ताह की झड़पों में कम से कम 105 लोग मारे गए हैं, और यह 15 साल के कार्यकाल के बाद प्रधान मंत्री शेख हसीना की निरंकुश सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है.
सरकार अलर्ट
हिंसा रोकने के लिए बांग्लादेश सरकार ने इंटरनेट पर पाबंदी लगा दी है. छात्रों और पुलिस के बीच हिंसा रुकने का नाम नहीं ले रही है. हिंसा में शामिल छात्रों ने कहा “हमारा विरोध जारी रहेगा.””हम शेख हसीना का तत्काल इस्तीफा चाहते हैं. सरकार हत्याओं के लिए जिम्मेदार है.”
विरोध प्रदर्शन शुरू होने के बाद पुलिस ने हिंसा रोकने के लिए कठोर कदम उठाए हैं, पुलिस ने लोगों को सार्वजनिक जगहों पर जाने से रोका है. इसके अलावा राजधानी में सुरक्षा व्यवस्था हो हटा दिया गया है. हालांकि, विरोध प्रदर्शन के बाद सेना की तैनाती कर दी गई है.
बांग्लादेश का ‘‘आंतरिक” मामला है
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि 8,000 छात्रों सहित लगभग 15,000 भारतीय वर्तमान में बांग्लादेश में रह रहे हैं और वे सुरक्षित हैं. ढाका और अन्य शहरों में विश्वविद्यालय के छात्र 1971 में पाकिस्तान से देश की आजादी के लिए लड़ने वाले युद्ध नायकों के रिश्तेदारों के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों को आरक्षित करने की प्रणाली के खिलाफ कई दिनों से रैलियां कर रहे हैं.
बृहस्पतिवार को आरक्षण प्रणाली में सुधार की मांग को लेकर छात्रों के विरोध प्रदर्शन के दौरान राजधानी ढाका तथा अन्य जगहों पर हिंसा भड़कने से करीब 105 लोगों की मौत हो चुकी है तथा 2,500 से अधिक लोग घायल हुए हैं. जायसवाल ने कहा, ‘‘जैसा कि आप जानते हैं, बांग्लादेश में विरोध प्रदर्शन जारी हैं. हम इसे उस देश का आंतरिक मामला मानते हैं.”
प्रवक्ता ने कहा, ‘‘हमने बांग्लादेश में रहने वाले भारतीय नागरिकों एवं हमारे छात्रों को उनकी सुरक्षा और आवश्यकता पड़ने पर सहायता के लिए एक परामर्श जारी किया है. हमसे संपर्क करने के लिए हेल्पलाइन नंबर चौबीसों घंटे सक्रिय हैं.”
आरक्षण पर क्यों हो रहा बवाल?
बांग्लादेश में वर्तमान आरक्षण सिस्टम के तहत 56 प्रतिशत सरकारी नौकरियां आरक्षित हैं, जिनमें से 30 प्रतिशत 1971 के मुक्ति संग्राम के स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए, 10 प्रतिशत पिछड़े प्रशासनिक जिलों, 10 प्रतिशत महिलाओं, पांच प्रतिशत जातीय अल्पसंख्यक समूहों और एक प्रतिशत नौकरियां दिव्यांगों के लिए आरक्षित हैं. लेकिन छात्र स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों को मिलने वाले आरक्षण के खिलाफ हैं. आंकड़ों के मुताबिक देश में हर साल 3 हजार सरकारी नौकरियां निकलती हैं, जिनके लिए आवेदन करने वालों की संख्या 4 लाख के करीब होती है. जिसमें 30 प्रतिशत आरक्षण उनके पास चला जाता है. इस बात से छात्र आक्रोशित हैं.
देश में चल रही हिंसक झड़पों में अब तक 105 लोगों की जान जा चुकी है. लेकिन फिर भी हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है. हिंसक प्रदर्शन को रोकने के लिए सरकार ने सेना की तैनाती की है.