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पुस्तक समीक्षा : एक सभ्यता डूब जाने का हाल बताती 'टिहरी की जल समाधि एक दस्तावेज'



टिहरी एक शहर था, जो डूब गया और इसके डूबने के साथ ही एक पूरी संस्कृति समाप्त हो गई. ‘टिहरी की जल समाधि एक दस्तावेज’ किताब में हम एक संस्कृति के डूब जाने से पहले का शोर और उसके बाद की सुनसानी महसूस कर सकते हैं. किताब पढ़ते लगता है कि लेखक यह सुनसानी झेल नही पाए होंगे और उसे फिर से शोर बनाकर लोगों तक पहुंचाने की बेचैनी ने उनसे यह किताब लिखवा डाली.

‘टिहरी की जल समाधि एक दस्तावेज’ महिपाल नेगी की लिखी किताब है और यह समय साक्ष्य प्रकाशन से प्रकाशित होकर आई है. जैसा कि किताब के नाम से ही पता चलता है कि यह डूब चुके टिहरी पर लिखा एक दस्तावेज है, किताब का कवर पेज भी यही दर्शाता है. किताब का पिछला आवरण बड़ा रोचक है, जिसमें एक गांव की चार दशकों की यात्रा को दिखाया गया है.

नई जानकारी और रोचक किस्सों से भरी किताब.

किताब को 136 हिस्सों में बांटा गया है जिसकी शुरुआत ‘इस पुस्तक के बारे में’ से होती है. इस किताब को पढ़ते हुए पाठकों के सामने कई नई जानकारी सामने आएंगी, जैसे उन्हें यह पता चलेगा कि टिहरी के आसपास की जगहों के नाम कीर्ति नगर, नरेंद्र नगर राजाओं के नाम पर रखे गए हैं. टिहरी से जुड़े कई रोचक किस्से भी लेखक पाठकों के सामने लाए हैं, जैसे वह लिखते हैं कि टिहरी वह शहर रहा जहां सड़क से पहले गाड़ी पहुंच गई थी.

किताब को लेखक ने काफी शोध करने के बाद लिखा है और किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए पाठकों को खुद ही निर्णय लेने के लिए छोड़ दिया है. ‘जैसे टिरी, टीरी, टेरी, टेहरी, तिहरी ,त्रिहरी ,त्रिवेणी, टिहरी’ में वह लिखते हैं टीरी नाम 1815 से पूर्व भी प्रचलन में था. एटकिंसन ने हिमालय डिस्ट्रिक्ट गजेटियर में लिखा कि 1808 में टिरी एक छोटा सा गांव था.

धर्म और इतिहास पर आंख खोलती किताब.

‘टिहरी बांध से डूब गए 5 पौराणिक स्थान’ को पढ़कर ऐसा लगता है कि धर्म, पैसे से कहीं पीछे रह गया है. 
पृष्ठ संख्या 43 में इतिहास को वर्तमान में सामने लाते लेखक लिखते हैं कि सन 1815 के आसपास “व्यवसायी जैन और मुस्लिम परिवार भी बसाए गए” यह पंक्ति उत्तराखंड की वर्तमान स्थिति में कही जा रही इस बात को साफ कर देती है कि यहां मुस्लिम अभी बाहर से आए हैं.

टिहरी के मदरसे में हिंदू भी पढ़ते थे और सैंकड़ों कब्रें व कुछ समाधियां भी डूबी शीर्षकों के अंदर लेखक ने साम्प्रदायिक सौहार्द बढ़ाने वाली कुछ जानकारियां साझा की हैं, जिन्हें पढ़ना जरूरी है.

किताब पढ़ते पाठकों को यह जानकारी भी मिलती है कि रियासत के राजा ने जंगल खत्म कर लाभ कमाया था.
‘बांध ने ली दो लाख पेड़ों की भी बलि’ के जरिए लेखक ने विकास के लिए पेड़ों के विनाश पर प्रकाश डाला है और यह उन्होंने आंकड़ों के साथ किया है. इसके लिए वह काका कालेलकर की हिमालय यात्रा संस्मरण का भी हवाला देते हैं.

‘खबरों में हमेशा रहा टिहरी’ पढ़ते हुए कन्या पाठशाला के लिए साल 1913 में छपी टिप्पणी पढ़कर लगता है कि लेखक कन्याओं की शिक्षा में तब और अब की स्थिति पर तुलना करना चाहते हैं.

फोटों का सही इस्तेमाल और कविताओं से खो चुकी भव्यता की झलक.

टिहरी डूबने के दर्द को पाठकों के सामने लाने के लिए लेखक ने किताब में कुछ तस्वीरों का इस्तेमाल किया है, यह प्रयोग शानदार है. पृष्ठ 105 में ‘तीन पीढ़ियों ने एक साथ देखी ये जलसमाधि’ और पृष्ठ 73 में ‘डूबने से पहले की चमक झील के पानी मे प्रतिबिंब’ इसका उदाहरण हैं. सिर्फ इन्हें देखने भर के लिए ही यह किताब खरीदी जा सकती है.

किताब में कविताओं का संकलन भरा पड़ा है, लेखक ने कविताओं और अखबारों की कतरनों से टिहरी का दर्द आने वाली पीढ़ी के लिए संग्रहित कर लिया है. कविताओं के जरिए टिहरी के इतिहास व भवनों जैसे महल, घंटाघर से उसकी खो चुकी भव्यता को वर्णित किया गया है.

लाभ के लिए अब लूट लिया अब जो बच गया उनका संरक्षण हो.

लेखक टिहरी की कुछ महत्वपूर्ण संपदाओं के संरक्षण की मांग भी करते हैं जैसे पृष्ठ 70 में वह लिखते हैं सर्दियों के महीनों में जब बांध में पानी कम हो जाता है तब महल के खंडहर दिखाई दे जाते हैं लेकिन इसके संरक्षण की कोई प्रयास नहीं किए गए.

‘डूबने वाले ये गांव और गांव के लोग’ को थोड़ा विस्तार से लिखा जा सकता था पर इस किताब में ऐसी बहुत सी जानकारियां हैं ,जिन्हें पढ़ने के बाद लोग सालों तक उन पर शोध कर विस्तार से लिख सकते हैं.

किताब के अंत तक पहुंचते पहुंचते पाठक इस निष्कर्ष पर पहुंच जाएंगे कि एक पूरी संस्कृति को कुछ लोगों ने अपने लाभ के लिए सारे नियम कायदे ताक पर रख कर मिटा दिया था.



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