Sports

नाइट में कैसे काम करती हैं महिला डॉक्टर; कितना है खतरनाक, सुनिए खौफनाक आपबीती




मुंबई:

कोलकाता की महिला डॉक्टर के साथ हुई दरिंदगी के विरोध में देश भर में डॉक्टरों का गुस्सा फूट पड़ा है. इस घटना से सालों से दबी ज़ुबानों को मुखर होने का मौका मिला है. देश की आर्थिक राजधानी मुंबई के सरकारी, बीएमसी अस्पतालों की हालत भी कुछ अलग नहीं है. यहां की महिला रेसिडेंट डॉक्टरों की आपबीतियां हैरान करती हैं. 

अस्पतालों के दरवाजों पर सुरक्षा तो बढ़ा दी गई है, पर अस्पतालों के भीतर भी क्या हालात बदले हैं? मुंबई के बीएमसी और सरकारी अस्पतालों की महिला रेसिडेंट डॉक्टरों के अनुभव परेशान करने वाले हैं. खास तौर पर नाइट शिफ्ट की ड्यूटी उनको खौफ के माहौल में करनी पड़ती है. 

मनोचिकित्सा विभाग की रेसिडेंट डॉक्टर डॉ सिमरन कौर ने कहा कि, ”मैं साईकायट्री में हूं, मरीज का मेंटल स्टेट सही नहीं होता, एग्रेशन में वे हमला करते हैं. कल भी मेरे साथ हुआ. नाईट शिफ्ट के दौरान बहुत खौफनाक मंजर होता है. बहुत अनसेफ फील करते हैं. सिक्योरिटी बस खड़ी ना रहे, हमारे लिए लड़े, हमारी सुरक्षा करे. खास तौर से आईसीयू के बाहर ज्यादा सुरक्षा की जरूरत है. बाहर विदेशों में इंडिया के डॉक्टरों की डिमांड है, क्योंकि हम हाई रैंक के साथ ये बड़े सरकारी मेडिकल कॉलेजों में आ पाते हैं. लेकिन इंडिया में ही हमारी कद्र नहीं, हम पर भरोसा नहीं.”

अधिकांश अस्पतालों में डॉक्टर असुरक्षित 

सरकारी मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटलों में मरीजों की बड़ी जिम्मेदारी जूनियर डॉक्टर ही संभालते हैं. एनडीटीवी जितनी महिला डॉक्टरों के पास पहुंचा, उनमें से अधिकांश अस्पताल के भीतर ऐसी घटनाओं से गुजरी हैं जहां उन्हें जान का खतरा महसूस हुआ है. 

रेसिडेंट डॉक्टर (एनेस्थीसिया) डॉ नीति सिंह ने कहा कि, ”मैं एनेस्थीसिया में हूं, तो ओटी या आईसीयू के अंदर ड्यूटी होती है, क्रिटिकल मरीज़ सम्भालती हूं. उनके रिलेटिव एग्रेसिव काफी होते हैं. जब बुरी खबर उन तक पहुंचानी होती है तो मारने तक आ जाते हैं. एक बार मुझे अस्पताल में ढूंढते हुए आए थे, तीन दिन ऑफ ड्यूटी रहना पड़ा. कुछ दवाइयों के मामले में मरीज को हमें अपना नंबर प्रिस्क्रिप्शन पर लिखकर देना होता है. फिर वो फोन पर धमकी देते हैं.” 

शराब के नशे में बदतमीजी

रेसिडेंट डॉक्टर (कम्युनिटी मेडिसिन) डॉ अपर्णा रोड़े ने कहा, ”रात के दौरान शराब के नशे में मुझसे बदतमीजी हो चुकी है. लेकिन सिक्योरिटी कुछ कर नहीं पाती. हमें शांत रहकर गुजरना पड़ता है इससे. कई बार सुरक्षा बढ़ाने की मांग की है, लेकिन सुनता कौन है?” रेसिडेंट डॉक्टर (मनोचिकित्सा) डॉ मनाली गोरे कहती हैं कि, ”सख्त कानून बने, इंप्लीमेंट हो, एग्जाम्पल सेट हो कि कोई ऐसा ना कर पाए.” 

मुंबई के सायन अस्पताल में हाल ही में महिला डॉक्टर से अभद्रता के मामले में हड़कंप मचा. पर उसके बाद भी हालात कितने बदले, कहना मुश्किल है. इन्हें इन बदसलूकियों को सहने की आदत सी हो गई है लेकिन कोलकाता में हुई दरिंदगी ने गुस्सा चरम पर पहुंचा दिया. यदि आर्थिक राजधानी के हालत ये हैं तो छोटे शहरों का क्या हाल होगा इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है. जरूरी है कि बदलाव सिर्फ सतही ना हों और सुरक्षा सिर्फ दिखावे की तरह ना हो बल्कि हकीकत में मुस्तैदी दिखे.

यह भी पढ़ें –

सुप्रीम कोर्ट की अपील पर डॉक्टर क्या काम पर लौटेंगे? जानिए, इनके संगठनों ने क्या कहा?

क्या है पॉलीग्राफ टेस्ट? जिसके बाद कोलकाता में डॉक्टर से रेप और हत्या का आरोपी संजय रॉय उगल सकता है राज




Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *