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…तो क्या जानवरों के ह्रदय, किडनी और लीवर का इस्तेमाल इंसानों में होगा?



जानवरों के अंगों का इंसानों में प्रत्यारोपण एक जटिल और विवादास्पद विषय है. क्या जानवरों के अंगों का इस्तेमाल इंसानों में किया जा सकता है? क्या चिंपाजी का हृदय या सूअर की किडनी इंसानों में लगाई जा सकती है और क्या यह सफल हो सकता है? इन सवालों के जवाब जानने के लिए हमने मशहूर डॉक्टर डेविड कूपर और समीरन रॉय से बात की.

एक्सेनोट्रांसप्लांटेशन का अर्थ है जानवरों के अंगों, टिश्यू और सेल को इंसानों में प्रत्यारोपित करना. यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें जानवरों के अंगों का उपयोग इंसानों के लिए किया जाता है. इंसान सालों से इस कोशिश में लगा है कि कैसे जानवरों के अंगों का इस्तेमाल अपने लिए किया जा सकता है. यह एक जटिल और विवादास्पद विषय है, लेकिन इसके पीछे की तकनीक और संभावनाओं को समझना दिलचस्प है.

प्रोफेसर डेविड कूपर ने बताया कि जानवरों के अंग प्रत्यारोपण की कोशिश इंसानों में कई सालों से हो रही है, लेकिन सफल नहीं हो पाई है. उन्होंने बताया कि 18वीं शताब्दी में कुछ लोगों ने गधे का खून इंसानों में प्रत्यारोपित करने की कोशिश की, लेकिन रेड ब्लड सेल्स (RBC) कम हो जाने से उनकी मौत हो गई. इसके अलावा 1980 के दशक में एक इंसान में चिंपाजी की किडनी ट्रांसप्लांट की गई थी. लेकिन मरीज कुछ दिनों तक जीवित रही और फिर अचानक मौत हो गई. एक अन्य प्रयोग में चिंपाजी का हृदय इंसान में ट्रांसप्लांट किया गया था. लेकिन छोटे हृदय के कारण यह प्रयोग सफल नहीं हो सका.

1985 से प्रोफेसर डेविड कूपर ने जानवरों के अंग प्रत्यारोपण पर लगातार काम किया और आखिरकार 2024 में उन्हें सफलता मिली. उन्होंने सूअर की किडनी को एक इंसान में सफलतापूर्वक प्रत्यारोपित किया. रिचर्ड नाम के एक मरीज, जो किडनी की गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे, को सूअर की किडनी लगाई गई. वह दो महीने तक जीवित रहे, जिसे एक बड़ी कामयाबी माना जाता है.

प्रोफेसर डेविड कूपर का कहना है कि जानवरों से अंग प्रत्यारोपण (एक्सेनोट्रांसप्लांटेशन) का एक बड़ा फायदा यह है कि अंगों के डोनर की संख्या बढ़ जाएगी. उनका कहना है कि फिलहाल, जो मरीज मौत के करीब हैं और उनके लिए कोई अन्य विकल्प नहीं है, उनके लिए इस तरह का ट्रांसप्लांट किया जा सकता है.

प्रोफेसर डेविड कूपर का कहना है कि सूअर की किडनी लगाने में सबसे बड़ी चुनौती यह है कि सूअर को रोग फैलाने वाले वायरस से कैसे बचाया जाए. उनका कहना है कि इसके लिए कुछ विशेष उपाय करने होंगे, जैसे कि जीन संशोधित (जेनोक्राफ्टेड) जानवरों को विकसित करना, जिससे इंसानों को नुकसान पहुंचाने वाले रेट्रोवायरस को निष्क्रिय किया जा सके.

इसके बाद, इन जानवरों के अंगों का इस्तेमाल इंसानों में प्रत्यारोपण के लिए किया जा सकता है. भारत के प्रसिद्ध गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल विशेषज्ञ डॉ समीरन नंदी का कहना है कि फिलहाल यह मेडिकल ट्रायल के तौर पर चल रहा है, लेकिन सफलता मिलने में 10 से 20 साल और लगेंगे. यह एक नई दिशा में बढ़ते हुए मेडिकल साइंस की एक बड़ी उपलब्धि हो सकती है.




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