तुर्की में एर्दोगन बढ़त हासिल करके भी चूके, जानिए अब क्या होगा? – Turkey Presidential Election process explained Erdogan and Kilicdaroglu will face runoff election tlifwr
दो दशकों से अधिक समय से तुर्की की सत्ता पर काबिज राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन के लिए राष्ट्रपति चुनाव इससे पहले कभी इतने मुश्किल नहीं हुए थे. इस बार उन्हें विपक्ष के उम्मीदवार कमाल कलचदारलू से कड़ी टक्कर मिल रही है. सोमवार तड़के तुर्की चुनाव आयोग ने कहा कि किसी भी उम्मीदवार को जीत के लिए जरूरी 50 फीसद वोट नहीं मिले हैं. इसी के साथ ही यह तय हो गया कि तुर्की के अगले राष्ट्रपति के चुनाव के लिए एक बार फिर से वोटिंग, यानी रन ऑफ राउंड के चुनाव कराए जाएंगे.
तुर्की में अगर किसी उम्मीवार को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता तो दो सप्ताह के भीतर दो सबसे अधिक वोट पाने वाले उम्मीदवारों के बीच रन ऑफ राउंड कराया जाता है. तुर्की में दूसरे राउंड की यह वोटिंग 28 मई को तय की गई है.
एकेपी (जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी) के मुखिया एर्दोगन पहले राउंड में चुनाव जीतते-जीतते रह गए और उन्हें 49.4% वोट मिले हैं. वहीं उनके प्रतिद्वंद्वी कलचदारलू को 45% वोट मिले हैं.
कौन हैं कमाल कलचदारलू?
कलचदारलू तुर्की के छह विपक्षी पार्टियों से मिलकर बने रिपब्लिकन पीपुल्स पार्टी नेशन अलायंस के उम्मीदवार हैं. अगर कलचदारलू की जीत होती है तो तुर्की में दशकों बाद संसदीय लोकतंत्र की वापसी हो सकेगी.
एर्दोगन साल 2003 से ही देश का नेतृत्व कर रहे हैं और अपने नेतृत्व में उन्होंने तुर्की को एक रुढ़िवादी देश बनाने की कोशिश की है जो इस्लाम की नीतियों पर चलता है. चुनावों के दौरान वो पश्चिमी देशों पर सरकार गिराने की साजिश रचने का आरोप भी लगाते रहे हैं.
इधर, गांधीवादी कलचदारलू जिन्हें तुर्की में ‘कमाल गांधी’ भी कहा जाता है, ने लोगों से वादा किया है कि अगर वो सत्ता में आते हैं तो तुर्की एर्दोगन की तरह रुढ़िवादी नहीं बल्कि उदारवादी नीति अपनाएगा. उन्होंने यह भी कहा है कि वो लोकतंत्र वापस लाने के साथ-साथ अपने नाटो सहयोगियों के साथ भी संबंधों को पुनर्जीवित करेंगे.
रिपब्लिकन पीपुल्स पार्टी के नेता 74 वर्षीय कलचदारलू इससे पहले कई चुनाव हार चुके हैं लेकिन इस बार उन्होंने जो मुद्दे उठाए हैं, तुर्की के लोग उससे प्रभावित हुए हैं.
तुर्की चुनाव के बड़े मुद्दे
इस चुनाव में दो अहम मुद्दे छाए हैं- पहला महंगाई और दूसरा भूकंप. फरवरी की शुरुआत में तुर्की को दो बड़े भूकंपों ने दहलाकर रखा दिया. भूकंप में 11 राज्य बुरी तरह प्रभावित हुए और करीब 50,000 लोगों की जान गई.
भूकंप के बाद राष्ट्रपति एर्दोगन पर आरोप लगे कि उन्होंने राहत और बचाव कार्य में ढिलाई बरती. हालांकि, भूकंप प्रभावित राज्यों में 8 राज्य एर्दोगन की पार्टी के गढ़ माने जाते हैं, वहां एर्दोगन की लोकप्रियता में कोई खास कमी नहीं आई है. आठ में से सात राज्यों में एर्दोगन को 60 फीसद वोट मिले हैं. केवल गजियांटेप में उन्हें 59% वोट मिला है.
अलजजीरा ने लिखा है कि ‘भूकंप में भले ही एके पार्टी के गढ़ माने जाने वाले राज्यों को हिला दिया लेकिन पार्टी के प्रति लोगों की वफादारी को वो नहीं हिला सका.’
एर्दोगन की नीतियों से बढ़ी महंगाई
तुर्की की महंगाई दर की बात करें तो यह 44 फीसद तक पहुंच गई है लेकिन लोगों का कहना है कि जमीन पर स्थिति और अधिक भयावह है. पिछले कई सालों से महंगाई की मार झेल रहे तुर्की में कई लोग यह मानते हैं कि एर्दोगन की नीतियों के कारण महंगाई बेलगाम हो गई है.
एर्दोगन देश में ब्याज दर बढ़ाने के सख्त खिलाफ रहे हैं. वो कहते हैं कि इस्लाम में कर्ज के पैसे पर ब्याज लेना हराम है. वो तुर्की के केंद्रीय बैंक पर उच्च मुद्रास्फीति के बावजूद ब्याज दरों में कटौती के लिए हमेशा दबाव डालते रहे हैं. उनका मानना है कि इससे तुर्की का आर्थिक विकास होगा और विदेश निवेश बढ़ेगा.
हालांकि, उनकी इस नीति का अब तक कोई फायदा नहीं हुआ और आम लोग बढ़ती महंगाई से परेशान हैं.
तुर्की के अधिकतर युवा भी एर्दोगन से खुश नहीं हैं. राजधानी इस्तांबुल के जिले कासिमपासा, जहां एर्दोगन बड़े हुए, वहां के कई युवाओं ने कहा कि उन्होंने विपक्षी रिपब्लिकन पीपुल्स पार्टी नेशन अलायंस को अपना वोट दिया है.
26 वर्षीय एविन ने द गार्डियन को बताया, ‘सामान्यतः हमारी पीढ़ी का कोई युवा एके पार्टी को वोट नहीं करता है. मुझे विश्वास नहीं कि वो (एर्दोगन) जीत सकते हैं….जीत के लिए उनके पास 1 फीसद मौका भी नहीं है.’
उम्मीदवारों के वादे
एर्दोगन और कलचदारलू दोनों ही उम्मीदवारों ने इस चुनाव में भूकंप प्रभावितों के लिए काम करने का वादा किया है. एर्दोगन ने जहां भूकंप प्रभावित इलाकों में 6 लाख 50 हजार नए घर बनाने का वादा किया है वहीं, कलचदारलू ने भूकंप प्रभावितों के लिए निःशुल्क घर देने की बात कही है.
एर्दोगन ने और क्या वादा किए-
-महंगाई दर को घटाकर 20 फीसद करना और 2024 तक इसे 10 फीसद कम करना. तुर्की में फिलहाल महंगाई दर 44 फीसद है.
-सीरिया के शरणार्थियों को वापस उनके देश भेजना
-समलैंगिकता के खिलाफ लड़ाई जारी रखना.
कलचदारलू के चुनावी वादे-
-भूकंप प्रभावितों को फ्री में घर देने के अतिरिक्त कलचदारलू ने वादा किया है कि वो महंगाई दर को नियंत्रण में लाएंगे.
-राष्ट्रपति की शक्तियों को कम करना
-संसदीय व्यवस्था की बहाली
तुर्की में किसके पास है सारी पावर
एर्दोगन के राष्ट्रपति चुनाव जीतने के एक महीने बाद जुलाई 2018 में तुर्की में संसदीय व्यवस्था के बजाय राष्ट्रपति शासन प्रणाली लागू कर दी गई. 2017 में जनमत संग्रह के जरिए राष्ट्रपति की शक्तियों में भारी इजाफा कर दिया गया था. इसके जरिए एर्दोगन ने प्रधानमंत्री का पद समाप्त कर दिया और प्रधानमंत्री की कार्यकारी शक्तियां अपने हाथ में ले ली थी. तुर्की में राष्ट्रपति ही सरकार का मुखिया बन गया.
नई व्यवस्था के तहत, मतदाता राष्ट्रपति चुनाव में प्रत्यक्ष रूप से हिस्सा लेते हैं.
तुर्की में कौन बन सकता है राष्ट्रपति
तुर्की में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को देश का नागरिक होने के साथ-साथ कम से कम 40 साल का होना जरूरी है.
उम्मीदवार के पास ग्रेजुएशन की डिग्री का होना जरूरी है.
उम्मीदवार को वैसी पार्टियां मैदान में उतार सकती हैं जिन्होंने पिछले संसदीय चुनावों में पांच फीसद वोट हासिल किया हो या संसद में जिनके 20 सांसद हों.
अगर किसी उम्मीदवार को समर्थन के लिए एक लाख नागरिक हस्ताक्षर कर दे तो भी वो राष्ट्रपति पद के लिए नामांकन भर सकता है.
तुर्की में कैसे होते हैं चुनाव?
तुर्की में राष्ट्रपति चुनाव के उम्मीदवार को पहले राउंड में 50 फीसदी से ज्यादा वोट हासिल होते हैं तो वह जीत जाता है. लेकिन अगर किसी भी उम्मीदवार को 50 फीसदी से ज्यादा वोट नहीं मिलते हैं तो शीर्ष के दो उम्मीदवारों के बीच दो हफ्ते बाद फिर से रन ऑफ होता है और दूसरे राउंड की वोटिंग कराई जाती है.
संसदीय चुनाव की प्रक्रिया क्या है
तुर्की में राष्ट्रपति चुनावों के साथ-साथ ही संसदीय चुनाव भी हो रहे हैं. ये चुनाव हर पांच साल के अंतराल पर कराए जाते हैं. तुर्की के 81 प्रांतों में 87 निर्वाचन क्षेत्र हैं. निर्वाचन क्षेत्र में संसदीय सीटें आबादी के आधार पर आवंटित की जाती हैं.
तुर्की की संसद नेशनल एसेंबली के लिए कुल 600 सदस्य चुने जाते हैं. इनका चुनाव समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के आधार पर होता है. तुर्की में उम्मीदवारों की जगह पार्टी को वोट किया जाता है और हर पार्टी को मिले वोट शेयर के आधार पर ही उन्हें सीटें मिलती हैं.
किसी भी पार्टी को तुर्की की संसद में जाने के लिए 7 फीसद वोट हासिल करना या ऐसा करने वाले गठबंधन का हिस्सा होना जरूरी है.
संसदीय बहुमत प्राप्त करने के लिए किसी पार्टी या गठबंधन का आधी सीटों से अधिक यानी 301 सीटों पर जीत दर्ज करनी होती है.