गोगी सरोज पाल की चित्रकला में नियति, प्रारब्ध और कथाएं
उस स्त्री की ओर कभी मत देखो, जो करुणा की आसक्ति में हो. जिसकी ग्रीवा पारदर्शी हो और श्वास नाभि तल को छूती हो. वह अपने प्रारब्ध की सुकोमल दृश्यवाहिनी बन एक अन्य संसार (नियति) में हो सकती है और किसी छोटी-सी आहट से कांप भी सकती है.
देखना सुनियोजित बंधन भी हो सकता है.
देखना रंगों के प्रति शाप भी हो सकता है.
उस स्त्री को कभी मत देखो, जो अपने किसी प्रिय के बिछड़ने की पीड़ा को आंखों से बहा रही हो और वह पीड़ा किसी कुत्ते के स्पंदनों में घुल रही हो.
उसे ठोस ईश्वर से बात करने दो. उस ईश्वर के तरल होने की अपनी यात्रा है.

रक्त की भी स्मृति होती है, जैसे जल ने सभ्यताओं की स्मृतियों को अपने गर्भ में पोषित किया.
स्त्री का निर्माण भी स्मृति द्वारा होता है और वह स्वयं ही अपनी स्मृतियों से अपना निर्माण करती है.
सुना है…?
स्त्री नेत्रों द्वारा आह्वान करती है. देह द्वारा अनुष्ठान और रिक्ति द्वारा इल्हाम पाती है.
स्त्री को पुकारने के लिए स्वर का तो जन्म होता है, लेकिन कंठ नहीं जन्म पाते. स्त्री के सबसे उदास दिनों को सबसे गहरे रंग इसलिए ही ओढ़ा दिए जाते हैं कि वह अपनी आंखों से झुठला सके स्वयं को.
कापित्ता

कई बार स्वप्न नींद के आखिरी पहर में टूट जाते हैं. उससे पहले उलझी रहती हूं स्वप्न के आईने में. मैं अब से पहले यह नहीं जान पाई कि आईनों के भ्रम तोड़ने ही होते हैं. अब जब तोड़ती हूं, तो रक्त की बूंदें मेरा होना बुझाने लगती हैं.
मेरा आकाश बन रहा है धीरे-धीरे, लेकिन मैं अंधेरे और उजाले के ग्रहण में खिंची जा रही हूं.
मेरा सौंदर्य निर्मित हो रहा है धीरे-धीरे, लेकिन मैं अभी भी नहीं भूलती, बीत जाने को बीतते देखना.
मैं नृत्य की एक हस्त-मुद्रा बनाती हूं ‘कापित्ता’ और देर तक उसी मुद्रा में समर्पित रहती हूं. मैं आकार लेने लगती हूं उसी हस्त-मुद्रा का और बारिश रुकने की आस करने लगती हूं.
पूनम अरोड़ा ‘कामनाहीन पत्ता’ और ‘नीला आईना’ की लेखिका हैं… उन्हें हरियाणा साहित्य अकादमी पुरस्कार, फिक्की यंग अचीवर, और सनातन संगीत संस्कृति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है…
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं