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क्या है उदयपुर के प्रसिद्ध एकलिंगजी महादेव मंदिर का इतिहास? कैसे होती थी पूजा, किसे दिया था महादेव ने वरदान, जानें सबकुछ


Ekling Mahadev Temple: राजस्थान के उदयपुर के पूर्व मेवाड़ राज परिवार के सदस्य महेंद्र सिंह मेवाड़ के निधन के बाद उनके बेटे विश्वराज सिंह मेवाड़ का हाल ही में राज्याभिषेक किया गया है. विश्वराज का राजतिलक ऐतिहासिक चित्तौड़गढ़ दुर्ग के प्रकाश महल में हुआ था. इस दौरान सलूंबर रावत देवव्रत सिंह ने अपना अंगूठा काट अपने खून से विश्वराज का राजतिलक किया था और इसके बाद उन्हें राजा की गद्दी सौंपी थी. इसके साथ ही राजतिलक के दौरान उन्हें 21 तोपों की सलामी भी दी गई थी. वहीं, मेवाड़ के ‘महाराणा’ के रूप में विश्वराज सिंह के राज्याभिषेक से एकलिंगजी महादेव मंदिर में पारंपरिक पूजा प्रथाओं को लेकर बड़ा विवाद छिड़ गया है. आइए जानते हैं एकलिंगजी महादेव मंदिर का इतिहास और क्या है इसकी मान्यता.

एकलिंग महादेव मंदिर के बारे में (Ekling Mahadev Temple)

एकलिंगजी महादेव मंदिर राजस्थान के उदयपुर जिले के कैलाशपुरी में स्थित है. यह एक खास तीर्थस्थल है. एकलिंगजी महादेव मंदिर भगवान शिव को अर्पित है. यहां शिव को एकलिंग के रूप में पूजा जाता है. पूर्वी भारत में त्रिकलिंग को मान्यता दी गई है, जिसमें उत्कलिंग, मध्यकलिंग और कलिंग शामिल हैं, जबकि पश्चिमी भारत में एकलिंग का महत्व ज्यादा है. शुरुआत में, यह मंदिर लकुलिश संप्रदाय का था और वहां 971 ईस्वी का एक शिलालेख भी मिला था, लेकिन एकलिंगजी मंदिर काा वर्तमान ढांचा मध्यकाल में बनाया गया था, जिसमें पूजा करने के नए-नए तरीकों के बारे में बताया गया है.

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इतिहासकार क्या कहते हैं?  (Eklingji Mahadev Temple History)
लोक संस्कृति एवं इतिहास के विशेषज्ञ डॉ. श्रीकृष्ण जुगनू के अनुसार, ‘वर्तमान मंदिर का निर्माण महारावल समरसिंह (1288) के शासनकाल के दौरान बड़े भक्तिभाव और गोपनीयता के साथ किया गया था. इस दौरान, शिवराशी को मंदिर का प्रमुख देवता मान उन्हें पूजा जाता था और उनकी विरासत ‘चीरवा प्रशंसा’ के निर्माण तक जारी रही थी. बता दें, चित्तौड़ के कवि वेद शर्मा ने इस प्रशंसा (Praise) को लिखा था, जो अब कहीं लुप्त हो चुकी है, हालांकि इसके कुछ लेख अभी भी मौजूद हैं.

क्या है यहां का इतिहास ?  (Ekling Mahadev Temple Significance)
एकलिंगजी मंदिर का इतिहास महाराणा रायमल के शासनकाल (12 मार्च, 1489 ई.) के एक शिलालेख में भी मिलता है. यहां मिले अभिलेखों के आधार पर पता चला है कि यहां पूजा-अर्चना और तोहफे देने वाले पहले व्यक्ति मेवाड़ के महाराणा हमीर थे. डॉ. जुगनू के अनुसार, यहां रहने वाले हरित ऋषि न केवल एक शैव तपस्वी थे, बल्कि एक शक्तिशाली सेना के कुशल नेता और एक सक्षम प्रशासक भी थे. कहा जाता है कि शिव ने उनकी भक्ति और नेतृत्व से खुश होकर उन्हें अपार धन का आशीर्वाद दिया था. यहीं, कारण है कि उनके नेतृत्व में मेवाड़ के राजाओं ने पश्चिमी भारत को बाहरी खतरों से बचाया था. ये सभी शासक अलग-अलग धर्म, मान्यताओं और संप्रदायों से संबंध रखते थे, फिर भी वे सभी एकलिंगजी की श्रद्धा में एकजुट थे, जो आज एकलिंग के नाम से मशहूर हुए.

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