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कालीन बुनकरों को मिलेंगे स्टील करघे, नहीं होगी स्वास्थ्य की समस्या, जानें आवंटन की प्रक्रिया



<p style="text-align: justify;"><strong>Jammu Kashmir News:</strong> जम्मू-कश्मीर सरकार ने कालीन बुनकरों के लिए महत्वाकांक्षी परियोजना शुरू की है. परियोजना के तहत भारतीय कालीन प्रौद्योगिकी संस्थान 100 बुनकरों को आधुनिक कालीन करघे उपलब्ध कराएगा. लाभार्थियों का चयन लॉटरी के माध्यम से किया जाएगा. अगले सप्ताह से हस्तशिल्प और हथकरघा विभाग, कश्मीर पंजीकृत सक्रिय बुनकरों को संशोधित आधुनिक स्टील कालीन करघे वितरित करने जा रहा है.</p>
<p style="text-align: justify;">कालीन बुनाई में इस्तेमाल किया जाने वाला करघा दो क्षैतिज लकड़ी के बीम से बना होता है. 14वीं शताब्दी से कश्मीर में चालू रहने वाले पारंपरिक कालीन करघे लकड़ी के रोल से बने होते हैं और कालीन बुनने वालों को लंबे समय तक फर्श पर पैर मोड़कर बैठना पड़ता है, जिसके कारण कालीन बुनकरों को कई स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है. कालीन बुनकरों को पीठ और हाथ-पैरों में दर्द के अलावा लंबे समय तक बैठने की वजह से नसों को नुकसान पहुंचने का खतरा रहता है.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>कालीन बुनकरों को मिलेंगे&nbsp;संशोधित स्टील करघे</strong></p>
<p style="text-align: justify;">अब भारतीय कालीन प्रौद्योगिकी संस्थान हस्तशिल्प और हथकरघा विभाग के साथ आरामदायक बैठने की व्यवस्था प्रदान करने और हाथ से बुने कालीनों की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए बुनकरों को संशोधित आधुनिक स्टील कालीन करघे वितरित करने जा रहा है. लाभार्थियों में से पहले 100 कालीन बुनकरों का चयन लॉटरी के जरिये 18 फरवरी को नौशेरा श्रीनगर में किया जाएगा. आईआईसीटी श्रीनगर के निदेशक जुबैर अहमद ने बताया कि परियोजना केंद्रीय ऊन विकास बोर्ड, केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय का संयुक्त सहयोग है.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>पहले चरण में 100 लाभार्थियों का लॉटरी से चयन</strong></p>
<p style="text-align: justify;">पहले चरण में मंत्रालय ने चालू वित्त वर्ष 2024-25 के लिए &lsquo;ऊन प्रसंस्करण योजना&rsquo; के तहत कुल 43.70 लाख रुपये की लागत से सक्रिय कालीन बुनकरों को 100 संशोधित आधुनिक स्टील करघे बांटने की मंजूरी दी है. उन्होंने कहा, "आईआईसीटी ने बुनकरों की स्वास्थ्य सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए करघे डिजाइन और संशोधित किए हैं." उन्होंने बताया कि विभाग सभी सक्रिय कालीन बुनकरों को चरणबद्ध तरीके से संशोधित करघे उपलब्ध कराने का इरादा रखता है. नए संशोधित करघे पारंपरिक लकड़ी के कालीन करघों की जगह लेंगे.</p>
<p style="text-align: justify;">आईआईसीटी के निदेशक ने सभी संबंधित लाभार्थियों को 18 फरवरी की सुबह 11 बजे निर्धारित ड्रॉ में भाग लेने की सलाह दी है. स्थानीय रूप से "काल भाफ़ी " के रूप में जाने जाने वाले हाथ से बुने कालीनों की उत्पत्ति 15वीं शताब्दी से हुई है, जिसके बाद इसने धीरे-धीरे पूर्णता की उच्च डिग्री प्राप्त की. ऐसा कहा जाता है कि सुल्तान ज़ैन-उल-अबिदीन स्थानीय निवासियों को प्रशिक्षित करने के लिए फारस और मध्य एशिया से कालीन बुनकरों को कश्मीर लाए थे.&nbsp;</p>
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