एक भाई वकील, दूसरा जज! केजरीवाल को कैसे मिलेगी राहत? चीफ जस्टिस को वकीलों ने क्यों लिखी चिट्ठी
नई दिल्ली:
“हितों के टकराव” का मुद्दा उठाते हुए 150 से अधिक वकीलों ने बृहस्पतिवार को भारत के प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ को एक ज्ञापन भेजा. उन्होंने कहा कि दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सुधीर कुमार जैन को धन शोधन के एक मामले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जमानत दिए जाने के खिलाफ ईडी की अपील पर सुनवाई से खुद को अलग कर लेना चाहिए था, क्योंकि उनके भाई जांच एजेंसी के वकील हैं.
हालांकि, सूत्रों ने बताया कि वकील अनुराग जैन कथित आबकारी नीति घोटाले से संबंधित धन शोधन के किसी भी मामले को नहीं देख रहे हैं.
इस प्रतिवेदन पर 157 वकीलों द्वारा हस्ताक्षर किया गया है. इसमें कहा गया है, “न्यायमूर्ति सुधीर कुमार जैन को कार्यवाही से खुद को अलग कर लेना चाहिए था, क्योंकि उनके सगे भाई अनुराग जैन ईडी के वकील हैं. हितों के इस स्पष्ट टकराव की कभी घोषणा नहीं की गई.”
वकीलों ने बृहस्पतिवार को यहां एक जिला न्यायाधीश के कथित आंतरिक पत्र पर चिंता व्यक्त की, जिसमें अधीनस्थ अदालतों के अवकाशकालीन न्यायाधीशों से अदालती अवकाश के दौरान लंबित मामलों में अंतिम आदेश पारित नहीं करने को कहा गया है. वकीलों ने इसे “अभूतपूर्व” बताया.
यह प्रतिवेदन इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि अवकाशकालीन न्यायाधीश न्याय बिंदु द्वारा 20 जून को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को कथित आबकारी नीति घोटाले से जुड़े धन शोधन के एक मामले में जमानत दिए जाने के मद्देनजर भेजा गया है. बाद में ईडी की अपील पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने जमानत आदेश पर रोक लगा दी थी.
प्रतिवेदन पर 157 वकीलों ने हस्ताक्षर किये हैं. वकीलों ने कहा कि अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश बिंदु ने केजरीवाल को जमानत दे दी और उन्होंने प्रधान न्यायाधीश के इस कथन को उद्धृत किया है कि अधीनस्थ अदालतों को शीघ्र और साहसिक निर्णय लेने की आवश्यकता है, ताकि उच्च न्यायालयों में मामलों का बोझ न पड़े.
प्रतिवेदन में कहा गया है, “हालांकि, अगले ही दिन ईडी ने इस आदेश को दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दे दी. इस चुनौती को बेहद अनियमित बनाने वाली बात यह है कि यह चुनौती राउज एवेन्यू अदालत के आदेश को (वेबसाइट पर) अपलोड किए जाने से पहले ही दी गई थी.”
उच्च न्यायालय द्वारा निचली अदालत के जमानत आदेश को तत्काल सूचीबद्ध करने, सुनवाई करने और स्थगन लगाने का उल्लेख करते हुए, प्रतिवेदन में कहा गया है, “भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं देखा गया है और इसने कानूनी बिरादरी के मन में गहरी चिंता पैदा कर दी है.”
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)