सुल्तानपुर में मेनका गांधी की राह को मुश्किल बना रहे हैं सपा-बसपा, ऐसा है सियासी समीकरण
उत्तर प्रदेश की तीन लोकसभा सीटों के परिणाम पर इस बार सबकी निगाह रहेगी. ये सीटें हैं रायबरेली, अमेठी और सुल्तानपुर. इन तीनों में एक चीज कॉमन है. वह इनका गांधी परिवार से जुड़ाव. रायबरेली से कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) चुनाव लड़ रहे हैं, तो अमेठी में वो पिछला चुनाव हार गए थे. इस बार वहां किशोरी लाल शर्मा कांग्रेस (Congress) के टिकट पर मैदान में हैं. वहीं सुल्तानपुर में गांधी परिवार की ही बहू मेनका गांधी (Menka Gandhi) मैदान में हैं.मेनका नौवीं बार लोकसभा जाने के लिए चुनाव मैदान में हैं.रायबरेली और अमेठी में मतदान हो चुका है. वहीं सुल्तानपुर में 25 मई को मतदान होगा.
सुल्तानपुर में बीजेपी कितनी मतबूत है?
मेनका ने 2019 का चुनाव भी सुल्तानपुर से बीजेपी की टिकट पर जीता था. सुल्तानपुर में मेनका गांधी को लोग ‘माताश्री’या ‘माता जी’कहकर बुलाते हैं.वहां उनका मुकाबला समाजवादी पार्टी के राम भुआल निषाद और बसपा के टिकट पर उदराज वर्मा से है. साल 2019 का लोकसभा चुनाव सपा और बसपा ने मिलकर लड़ा था. इस समझौते में सुल्तानपुर सीट बसपा के खाते में गई थी. उस चुनाव में बीजेपी की मेनका गांधी और बसपा के चंद्र भद्र सिंह में कांटे की लड़ाई हुई थी.मेनका गांधी यह चुनाव केवल 14 हजार वोटों के अंतर से जीत पाई थीं. मेनका को चार लाख 59 हजार 196 और चंद्र भद्र को चार लाख 44 हजार 670 वोट मिले थे.इससे पहले 2014 के चुनाव में मेनका के बेटे वरुण गांधी सुल्तानपुर से बीजेपी के उम्मीदवार थे. उन्होंने बसपा के पवन पांडेय को एक लाख 78 हजार 902 वोटों से हराया था. वरुण को चार लाख 10 हजार 348 और पवन को दो लाख 31 हजार 446 वोट मिले थे.सपा उम्मीदवार को दो लाख 28 हजार 144 वोट मिले थे. इससे पता चलता है कि सुल्तानपुर में बीजेपी का जनाधार कम हो रहा है.इसे बढ़ाना मेनका के लिए बड़ी चुनौती है.
सुल्तानपुर लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा सीटें आती हैं. ये सीटें हैं इसौली, सुल्तानपुर, सुल्तानपुर सदर, कादीपुर और लंभुआ. इनमें से इसौली को छोड़कर बाकी की चार सीटों पर बीजेपी का कब्जा है. सुल्तानपुर में दलित वोट करीब 22 फीसदी तो मुसलमान करीब 17 फीसदी हैं.सुल्तानपुर में मेनका का मुकाबला दो ओबीसी उम्मीदवारों से है.सपा उम्मीदवार निषाद जहां मल्लाह जाति के हैं, जिसकी इस क्षेत्र में आबादी करीब ढाई लाख मानी जाती है.वहीं बसपा उम्मीदवार उदयराज वर्मा कुर्मी जाति से आते हैं. बसपा ने 1999 और 2004 का चुनाव यहां से जीता था. मायावती ने बुधवार को सुल्तानपुर में अपने उम्मीदवार के समर्थन में एक सभा को संबोधित किया.
मेनका गांधी ने चुनाव प्रचार में राममंदिर के मुद्दे को नहीं छुआ. वह भी तब जब सुल्तानपुर से अयोध्या करीब एक घंटे की दूरी पर है.चुनाव प्रचार में मेनका का जोर विकास के मुद्दे पर रहा.उन्होंने जनता के सामने उन कामों को रखा जो उनके कार्यकाल में हुए हैं. मेनका गांधी का चुनाव प्रचार करने न तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आए और न ही केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बुधवार को सुल्तानपुर में एक जनसभा को संबोधित किया. वहीं निषाद पार्टी के संजय निषाद और बीजेपी का दलित चेहरा माने जाने वाले पूर्व आईपीएस अधिकारी असीम अरुण ने मेनका गांधी के लिए चुनाव प्रचार किया है. इसे निषाद और दलित वोटों को साधने की कोशिश के रूप में देखा गया. चुनाव प्रचार के अंतिम दिन मेनका के बेटे वरुण गांधी भी मां का चुनाव प्रचार करने पहुंचे.
गोरखपुर से आया है सपा उम्मीदवार
साल 2024 के चुनाव से कुछ दिन पहले ही चंद्र भद्र सिंह बसपा छोड़ सपा में शामिल हो गए हैं. इसने सुल्तानपुर में मेनका की राह को कठिन बना दिया है. इंडिया गठबंधन में यह सीट सपा के खाते में आई है.सपा ने राम भुआल निषाद को उम्मीदवार बनाया है.निषाद गोरखपुर जिले की कौड़ीराम सीट से दो बार विधायक रह चुके हैं.वो बसपा सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं. सपा ने 2019 का चुनाव निषाद को गोरखपुर से लड़ाया था.वहां वे बीजेपी के रविकिशन शुक्ल से तीन लाख 670 वोटों के अंतर से हार गए थे. सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने 20 मई को चांदपुर सैदोपट्टी में निषाद के समर्थन में एक जनसभा को संबोधित किया था. इसमें भीम निषाद भी शामिल हुए, जिन्हें सपा ने पहले अपना उम्मीदवार बनाया था. उनका टिकट काटकर ही राम भुआल निषाद को दिया गया. सपा प्रमुख और भीम निषाद के साथ आने से सुल्तानपुर के सपा कार्यकर्ताओं में जोश आ गया है. इससे लड़ाई और कांटे की हो गई है.
मेनका गांधी का सियासी सफर
मेनका गांधी पहली बार सुल्तानपुर से 2019 में चुनाव लड़ीं. इसके पहले वो पीलीभीत और आंवला से चुनाव जीत रही थीं. वो 1989 में जनता दल के टिकट पर पीलीभीत से पहली बार सांसद चुनी गईं थी. बाद में उन्होंने 1996, 1998, 1999 में बीजेपी के समर्थन से पीलीभीत से चुनाव जीतीं. वो बीजेपी में 2004 में शामिल हुईं.बीजेपी ने 2004 में उन्हें पीलीभीत और 2009 में आंवला से टिकट दिया. वो फिर 2014 में पीलीभीत से लोकसभा के लिए चुनी गईं. इसके बाद उन्हें नरेंद्र मोदी की सरकार में महिला एवं बाल विकास मंत्री बनाया गया था.
ये भी पढ़ें: क्या नतीजों से पहले शेयर मार्केट की यह उछाल BJP के लिए गुड न्यूज है?