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ये पहली बार नहीं… धार्मिक आयोजनों में बदइंतजामी से हजारों ने गंवाई है जान; जानें कब-कब हुए ऐसे बड़े हादसे



नई दिल्ली:

उत्तर प्रदेश के हाथरस में आयोजित सत्संग के दौरान मची भगदड़ में 116 से लोगों की मौत हो गई है और कई अन्य घायल हुए हैं. भारत में मंदिरों एवं अन्य धार्मिक आयोजनों के दौरान भगदड़ होने से बड़ी संख्या में लोगों की मौत की यह पहली घटना नहीं है. इससे पहले भी कई बार लोग इसी तरह से भगदड़ का शिकार होकर अपनी जान गंवा चुके है. अगर पिछले कुछ सालों के आंकड़ों पर उठा कर देखे तो सैकड़ों लोग इन धार्मिक स्थलों पर हुई भगदड़ में अपनी जान गंवा चुके है. 

महाराष्ट्र के मंधारदेवी मंदिर में 2005 के दौरान हुई भगदड़ में 340 श्रद्धालुओं की मौत और 2008 में राजस्थान के चामुंडा देवी मंदिर हुई भगदड़ में कम से कम 250 लोगों की मौत ऐसी ही कुछ बड़ी घटनाएं हैं.

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हिमाचल प्रदेश के नैना देवी मंदिर में भी 2008 में ही धार्मिक आयोजन के दौरान मची भगदड़ में 162 लोगों की जान चली गई थी. हाल के वर्षों में देश में मंदिरों और धार्मिक आयोजनों के दौरान भगदड़ की कुछ प्रमुख घटनाएं इस प्रकार हैं.

  • 31 मार्च 2023 : इंदौर शहर के एक मंदिर में रामनवमी के अवसर पर आयोजित हवन कार्यक्रम के दौरान एक प्राचीन बावड़ी के ऊपर बनी स्लैब ढह जाने से कम से कम 36 लोगों की मौत हो गई.
  • एक जनवरी 2022 : जम्मू-कश्मीर स्थित प्रसिद्ध माता वैष्णो देवी मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ के कारण मची भगदड़ में कम से कम 12 लोगों की मौत हो गई और एक दर्जन से अधिक घायल हो गए.
  • 14 जुलाई 2015 : आंध्र प्रदेश के राजमुंदरी जिले में ‘पुष्करम’ उत्सव के पहले दिन गोदावरी नदी के तट पर एक प्रमुख स्नान स्थल पर भगदड़ से 27 तीर्थयात्रियों की मृत्यु हो गई तथा 20 अन्य घायल हो गए.
  • तीन अक्टूबर 2014 : दशहरा समारोह समाप्त होने के तुरंत बाद पटना के गांधी मैदान में भगदड़ मचने से 32 लोगों की मौत हो गई और 26 अन्य घायल हो गए.
  • 13 अक्टूबर 2013 : मध्य प्रदेश के दतिया जिले में रतनगढ़ मंदिर के पास नवरात्रि उत्सव के दौरान मची भगदड़ में 115 लोगों की मौत हो गई और 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए. भगदड़ की शुरुआत नदी के पुल टूटने की अफवाह से हुई जिसे श्रद्वालु पार कर रहे थे.
  • 19 नवंबर 2012 : पटना में गंगा नदी के तट पर अदालत घाट पर छठ पूजा के दौरान एक अस्थायी पुल के ढह जाने से मची भगदड़ में लगभग 20 लोगों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए.
  • आठ नवंबर 2011 : हरिद्वार में गंगा नदी के तट पर हरकी पैड़ी घाट पर मची भगदड़ में कम से कम 20 लोगों की मौत हो गई.
  • 14 जनवरी 2011 : केरल के इडुक्की जिले के पुलमेडु में एक जीप के सबरीमाला मंदिर के दर्शन कर लौट रहे तीर्थयात्रियों से टकरा जाने के कारण मची भगदड़ में कम से कम 104 श्रद्धालुओं की मौत हो गई और 40 से अधिक घायल हो गए.
  • चार मार्च 2010 : उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में कृपालु महाराज के राम जानकी मंदिर में भगदड़ मचने से लगभग 63 लोगों की मौत हो गई. लोग स्वयंभू धर्मगुरु द्वारा दान किए जा रहे कपड़े और भोजन लेने पहुंचे थे.
  • 30 सितंबर 2008 :राजस्थान के जोधपुर शहर में चामुंडा देवी मंदिर में बम विस्फोट की अफवाह के कारण मची भगदड़ में लगभग 250 श्रद्धालु मारे गए और 60 से अधिक घायल हो गए.
  • तीन अगस्त 2008 :हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में नैना देवी मंदिर में चट्टान खिसकने की अफवाह के कारण मची भगदड़ में 162 लोगों की मौत हो गई, 47 घायल हो गए.
  • 25 जनवरी 2005 : महाराष्ट्र के सतारा जिले में मंधारदेवी मंदिर में वार्षिक तीर्थयात्रा के दौरान 340 से अधिक श्रद्धालुओं की कुचलकर मौत हो गई और सैकड़ों घायल हो गए. यह दुर्घटना तब हुई जब कुछ लोग फिसलन भरी सीढ़ियों पर गिर गए.
  • 27 अगस्त 2003 : महाराष्ट्र के नासिक जिले में सिंहस्थ कुंभ मेले में पवित्र स्नान के दौरान भगदड़ में 39 लोग मारे गए और लगभग 140 घायल हो गए.
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हाथरस में हुई घटना से पूरी दुनिया स्तब्ध है. देश-विदेश के लोग अपनी संवेदनाएं प्रकट कर चुके हैं. उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने एक कमिटी बनाई है. बुधवार को वो खुद हाथरस जाएंगे और पीड़ितों से मिलेंगे. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिए ऐसी घटनाएं होती ही क्यों हैं. 

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अभी तक जो मामले सामने आए हैं, उस आधार पर कहा जा सकता है कि प्रशासन का काफी लचर भूमिका रहा है. सुरक्षा भगवान के भरोसे रहता है. बिना जांच-परख के ही कार्यक्रम करने की अनुमति दी जाती है. कार्यक्रम स्थल पर उम्मीद से अधिक लोग आते हैं, ऐसे में प्रशासन इनके लिए तैयार नहीं रहता है. कई कार्यक्रमों में देखा जा सकता है कि सुरक्षा के साथ समझौता किया जाता है. ना मौके पर एंबुलेंस रहता है, ना ही फायर कंट्रोल की टीम रहती है और ना ही जरूरत के मुताबिक सुरक्षाकर्मी. ऐसे में जरा सी लापरवाही के कारण ऐसी घटनाएं होती हैं.

हाथरस सत्संग में जमा श्रद्धालु

भारत में धार्मिक आयोजनों में इस तरह के हादसे अक्सर सामने आते रहते हैं. मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर के बेलेश्वर महादेव मंदिर में पिछले साल रामनवमी के दिन एक बावड़ी की छत ढहने से 30 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी.

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अभी पिछले महीने शुरू हुई उत्तराखंड की चार धाम यात्रा में जिस तरह से श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी, उसे देखते हुए इस तरह की भगदड़ की आशंका हर समय बनी रहती है. इस यात्रा के दौरान भी श्रद्धालुओं के नियंत्रण के इंतजाम नाकाफी नजर आते हैं. अगर अव्यवस्था और बिगड़ी तो वहां बड़ी जनहानी हो सकती है.

क्या कहती है एनडीएमए की रिपोर्ट

भीड़भाड़ वाली जगहों पर होने वाले हादसों के लिए नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी ने 2014 में एक रिपोर्ट दी थी.इसमें कुछ सुझाव दिए गए थे.ये सुझाव राज्य सरकार,स्थानीय अधिकारियों, प्रशासन और आयोजको के लिए थे.

रिपोर्ट में भीड़ प्रबंधन से जुड़े लोगों के प्रशिक्षण का सुझाव दिया गया था.इसके लिए हर स्तर पर काम करने की जरूरत पर जोर था. रिपोर्ट में पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों को भीड़ के व्यवहार और मनोविज्ञान का अध्ययन और भीड़ प्रबंधन को जानने के बारे में कहा गया था.

धार्मिक आयोजनों में सुरक्षा के इंतजाम

भारत में होने वाले प्रवचनों और धार्मिक आयोजनों में बड़े पैमाने पर लोग शामिल होते हैं. कई बार तो भीड़ इतनी आ जाती है,जितने की उम्मीद भी आयोजकों को नहीं रहती है.ऐसे में उनके इंतजाम भी कम पड़ जाते हैं.लेकिन कई बार ऐसे आयोजनों में अव्यवस्था साफ-साफ नजर आती है. 

कई बार देखने में यह भी आता है कि इन आयोजनों के लिए पुलिस इंतजाम पर्याप्त नहीं होते हैं या पुलिस से इजाजत भी नहीं ली जाती है और अगर ली भी जाती है तो उतने लोगों की संख्या नहीं बताई जाती है, जितने श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद होती है.इस वजह से भी पुलिस जरूरी इंतजाम नहीं कर पाती है. 




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