मक्का में गर्मी से सबसे ज्यादा मिस्र के हाजी ही क्यों मर रहे? जानिए
इस बार हज यात्रा में सबसे ज्यादा मौत मिस्र, जॉर्डन और इंडोनेशिया के लोगों की हुई, दरअसल इन देशों के लोग इतनी गर्मी झेलने के आदी नहीं होते हैं. ऐसे में अचानक से इतने ऊंचे तापमान में पहुंचने से इन लोगों को काफी दिक्कतों से जूझना पड़ता है. इन मुश्किल स्थिति में अगर इन यात्रियों को जरूरी देखभाल ना मिले तो इंसान की मौत भी हो सकती है. तापमान की बात करें तो मिस्र के तटीय क्षेत्रों में तो सर्दियों में औसत तापमान न्यूनतम 14 डिग्री सेल्सियस और गर्मियों में औसत तापमान 30 डिग्री सेल्सियस रहता है. जबकि अधिकतम तापमान 40 डिग्री के आसपास ही रहता है. यही वजह है कि जब मिस्त्र के लोग अचानक से 50 डिग्री तापमान में पहुंचते हैं तो उन्हें अधिक एहतियात की जरूरत होती है.
एएफपी की रिपोर्ट के मुताबिक एक यासर नाम के शख्स ने बताया कि वह भीषण गर्मी के बीच अपनी रस्मों को पूरा करने में सफल रहे, लेकिन रविवार से अपनी पत्नी को नहीं देखा है और अब उसे इस बात का डर सता रहा है कि उनकी पत्नि भी मरे हुए लोगों में से एक हो सकती है. रिटायर हो चुके 60 वर्षीय इंजीनियर ने शुक्रवार को अपने होटल के कमरे से फोन पर कहा कि मैंने मक्का के हर एक अस्पताल की तलाशी ली है पर वह वहां नहीं है. मैं इस पर विश्वास नहीं करना चाहता कि वह मर चुकी है. अगर वह मर चुकी है, तो यह उसके जीवन का अंत है और मेरे जीवन का भी.
आधिकारिक हज परमिट कोटा सिस्टम के माध्यम से देशों को आवंटित किए जाते हैं और लॉटरी के माध्यम से इन्हें बाटा जाता है. यहां तक कि जो लोग उन्हें प्राप्त कर सकते हैं, वो भी ऊंची लागत की वजह से दूसरे मार्ग को अपनाते हैं, जिसकी लागत हजारों डॉलर कम है. जब सऊदी अरब ने सामान्य पर्यटक वीजा जारी करना शुरू किया, जिससे देश की यात्रा करना आसान हो गया. यासर अभी भी सऊदी अरब में हैं, पिछले महीने सऊदी पहुंचते ही उन्हें कई दिक्कतों से जूझना पड़ा. क्योंकि उनका रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ था.
किन यात्रियों को उठानी पड़ती है दिक्कतें
हज शुरू होने से एक सप्ताह पहले, कुछ दुकानों और रेस्तरां ने उन सभी को सेवा देने से इनकार कर दिया, जो नुसुक नामक आधिकारिक ऐप पर परमिट नहीं दिखा सकते थे. जब चिलचिलाती धूप में चलने और प्रार्थना करने के लंबे दिन शुरू हुए, तो वह हज बसों तक नहीं पहुंच सके, जो पवित्र स्थलों के आसपास पहुंचने का एकमात्र जरिया है. जब गर्मी ने उनकी हालत खराब कर दी तो उन्होंने मीना के एक अस्पताल में देखभाल की मांग की, लेकिन वहां परमिट के कारण उन्हें वापस भेज दिया गया. मीना में “शैतान को पत्थर मारने” के दौरान भीड़ में यासर और उनकी पत्नी सफा एक-दूसरे से बिछड़ गए. तब से यासर अपनी पत्नी की राह देख रहे हैं.
अराफात, मीना और मक्का के रास्ते में कई लाशें
31 वर्षीय मिस्र के मोहम्मद, सऊदी अरब में रहते हैं और जिन्होंने इस साल अपनी 56 वर्षीय मां के साथ हज किया है. उन्होंने कहा कि अराफात, मीना और मक्का के रास्ते में “ज़मीन पर लाशें पड़ी थीं. मैंने लोगों को अचानक गिरते और थकावट से मरते देखा. एक अन्य मिस्रवासी जिसकी मां की रास्ते में ही मृत्यु हो गई, उसने कहा कि उसकी मां को एम्बुलेंस मिल पाना असंभव था. एक आपातकालीन वाहन उसकी मां की मृत्यु के बाद ही आया, जो शव को अज्ञात स्थान पर ले गया. अब तक मक्का में मेरे चचेरे भाई मेरी मां के शव की तलाश कर रहे हैं.