भारत में लोकपाल के क्या हैं अधिकार, कब और किसके खिलाफ कर सकता है कार्रवाई?
<p style="text-align: justify;">कुछ दिन पहले ही भारत के लोकपाल ने क्षेत्राधिकार की सीमाओं का हवाला देते हुए एक याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था. ये मामला उत्तर प्रदेश में खुदकुशी करने वाले एक सरकारी अधिकारी की पत्नी का था. उनका कहना था कि वह इस याचिका पर विचार नहीं कर सकते क्योंकि ऐसा करना उनके क्षेत्राधिकार के बाहर है.</p>
<p style="text-align: justify;">हालांकि अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर होने के बावजूद, लोकपाल ने इस मामले की आगे की जांच के लिये शिकायत को केंद्रीय पर्यटन सचिव के पास भेज दिया. इस पूरे मामले में लोकपाल ने ये भी स्पष्ट किया कि उनके पास प्रमुख सचिव, पर्यटन एवं संस्कृति और उत्तर प्रदेश के महानिदेशक के खिलाफ शिकायत दर्ज करने का अधिकार नहीं है. उन्होंने बताया कि आपराधिक गतिविधियों से जुड़ा यह मामला आपराधिक कानून और प्रक्रिया के दायरे में आता है. </p>
<p style="text-align: justify;"><em>ऐसे में एक सवाल ये उठता है कि आखिर भारत में लोकपाल के पास क्या क्या अधिकार है और वह कब और किसके खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं. </em></p>
<p style="text-align: justify;"><strong>पहले जानते हैं क्या है खुदकुशी का मामला </strong></p>
<p style="text-align: justify;">कुछ दिन पहले ही उत्तर प्रदेश में एक अधिकारी ने आत्महत्या कर अपनी जान दे दी थी. आरोप लगा कि कथित तौर पर उस सरकारी अधिकारी पर स्वदेश दर्शन योजना के तहत केंद्र सरकार की परियोजनाओं के क्लोजिंग सर्टिफिकेट पर हस्ताक्षर करने के लिए दबाव बनाया जा रहा था. अपने सीनियर अधिकारियों के दबाव में आकर उस अधिकारी ने खुदकुशी करने का फैसला ले किया. अब उस सरकारी अधिकारी की पत्नी ने याचिका दर्ज कर पूरे मामले के जांच की मांग की है. </p>
<p style="text-align: justify;"><strong>लोकपाल क्या है और क्या काम करते हैं </strong></p>
<p style="text-align: justify;">मनमोहन सिंह सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान जब देश बुरे दौर से गुजर रहा था, उस वक्त सार्वजनिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल ने एक बड़ा आंदोलन शुरू किया. इस आंदोलन को पूरे देश से भावी समर्थन भी मिला. इस आंदोलन की मांगों में से एक प्रमुख मांग थी लोकपाल कानून को लागू करना. </p>
<p style="text-align: justify;">अन्ना हजारे के इस आंदोलन ने यूपीए-2 सरकार को बुरी तरह हिला कर रख दिया था और आखिरकार जनवरी 2014 में लोकपाल और लोकायुक्त कानून 2013, लागू हो गया. </p>
<p style="text-align: justify;">अब साल 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार सत्ता में आई. इस सरकार का भी पहला कार्यकाल लगभग खत्म होने वाले था लेकिन देश में लोकपाल की नियुक्ति नहीं हो रही थी. आखिरकार साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट को अल्टीमेटम देना पड़ा और इस सख्ती का नतीजा यह निकला कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस पीसी घोष भारत का पहला लोकपाल नियुक्त किय हैं. उनकी नियुक्ति की अधिसूचना राष्ट्रपति कार्यालय की ओर से जारी की गई.</p>
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<p class="bbc-kl1u1v e17g058b0" dir="ltr">उनके नाम का चयन करने वाली समिति में प्रधानमंत्री <a title="नरेंद्र मोदी" href="https://www.abplive.com/topic/narendra-modi" data-type="interlinkingkeywords">नरेंद्र मोदी</a>, मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी शामिल थे. हालांकि समिति के सदस्य और लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस बैठक में भाग नहीं लिया था.</p>
<p class="bbc-kl1u1v e17g058b0" dir="ltr"><strong>कौन हैं देश के पहले लोकपाल</strong></p>
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<p class="bbc-kl1u1v e17g058b0" dir="ltr">जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष (पीसी घोष) का जन्म साल1952 हुआ था. उनके पिता का नाम शंभू चंद्र घोष हैं. पीसी घोष ने कानून संबंधी पढ़ाई कोलकाता से ही की और कोलकत्ता हाईकोर्ट में ही वह साल 1997 में जज बने.</p>
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<p class="bbc-kl1u1v e17g058b0" dir="ltr">यहां से पीसी घोष की यात्रा शुरु हुई और दिसंबर 2012 में वह आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने. मुख्य न्यायाधीश रहते हुए उन्होंने एआईएडीएमके की पूर्व सचिव ससिकला को भ्रष्टाचार के एक मामले में सजा सुनाई थी. पीसी घोष की 8 मार्च 2013 में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के तौर पर उनकी पदोन्नति हुई.</p>
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<p class="bbc-kl1u1v e17g058b0" dir="ltr">27 मई 2017 को उन्होंने मुख्य न्यायाधीश के पद से रिटायरमेंट ले लिया. सुप्रीम कोर्ट से रिटायर लेने के बाद जस्टिस घोष राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से जुड़ गए थे.</p>
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<p style="text-align: justify;"><strong>क्या है लोकायुक्त कानून?</strong></p>
<p style="text-align: justify;">लोकपाल और लोकायुक्त कानून 2013 के अनुसार एक लोकपाल नाम से एक निकाय के गठन किया जाएगा. इस निकाय में आठ से ज्यादा सदस्य नहीं होंगे. इन 8 सदस्यों में 50 प्रतिशत मेंबर न्यायिक क्षेत्र के होंगे और 50 प्रतिशत में अनुसूचित जाति, जनजाति, ओबीसी, अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्य होंगे. इन्ही 50 फीसदी सदस्यों में महिला सदस्य का भी प्रावधान है. इस निकाय का एक चेयरमैन भी होगा. चेयरमैन का पद संभालने की योग्यता उनमें ही होगी जो मौजूदा मुख्य न्यायाधीश या पूर्व मुख्य न्यायाधीश या सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा या पूर्व जज या कोई नामचीन व्यक्ति जो.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>क्या है लोकपाल का काम </strong></p>
<p style="text-align: justify;">लोकपाल में एक जांच विभाग है. जिसका नेतृत्व जांच निदेशक करते हैं. यह भ्रष्टाचार निरोधक कानून 1988 के तहत दंड के दायरे में आने वाले लोकसेवकों के भ्रष्टाचार से जुड़े अपराधों की शुरुआती जांच करेगा. </p>
<p style="text-align: justify;">लोकपाल कानून के अंतरगत एक छोटे सरकारी कर्मचारी से लेकर कुछ शर्तों के साथ प्रधानमंत्री तक जांच में दायरे में आ सकते हैं. लोकायुक्त कानून के तहत किसी भी व्यक्ति के खिलाफ पुख्ता सबूत हो तो लोकपाल के पास सीधा शिकायत की जा सकती है. अगर लोकपाल को उस शिकायत और सबूतों में दम नजर आया तो वह सीबीआई और सीबीसी को जांच के लिए कह सकता है. </p>
<p style="text-align: justify;"><strong>लोकपाल कानून की खासियत </strong></p>
<p style="text-align: justify;">इस कानून की खासियत है कि केंद्रीय स्तर पर एक लोकपाल होगा और हर राज्य में एक-एक लोकायुक्त किए जाएंगे. लोकपाल में एक अध्यक्ष और अधिकतम आठ सदस्य होंगे. लोकपाल के सदस्यों में से 50 प्रतिशत सदस्यों में एससी, एसटी, ओबीसी, महिला और अल्पसंख्यक समुदाय के होंगे.</p>
<p style="text-align: justify;">लोकपाल कानून में भ्रष्ट तरीके से कमाई किए जाने वाले संपत्ति को जब्त करने का अधिकार है. इसके अलावा विदेशों से एक साल में 10 लाख रुपये से ज्यादा दान पाने वाली भारतीय संस्थाओं को भी जांच के दायरे में रखा गया है. इसके अलावा किसी सरकारी अधिकारी के खिलाफ गलत शिकायत करने वाले को सजा और अर्थदंड देने का प्रावधान है. लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में हर श्रेणी के सरकारी कर्मचारी आएंगे.</p>
<p><strong>लोकायुक्त में नियुक्ति के लिए शर्तें</strong></p>
<p>कोई भी व्यक्ति अगर हाईकोर्ट के जज हों या रह चुके हों तो उनकी नियुक्ति न्यायिक सदस्य के रूप में हो सकती है. इसके अलावा लोकायुक्त का सदस्य बनने के लिए पूरी तरह ईमानदार, भ्रष्टाचार निरोधी नीति, पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन, सतर्कता, बीमा, बैंकिंग, क़ानून और प्रबंधन के मामलो में कम से कम 25 साल का विशेष ज्ञान और विशेषज्ञता होना अनिवार्य है.</p>
<p><strong>कौन नहीं हो सकता लोकायुक्त</strong></p>
<p>किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश की विधानसभा का सदस्य या संसद सदस्य लोकायुक्त नहीं हो सकता. इसके अलावा ऐसा व्यक्ति भी लोकायुक्त नहीं हो सकता जो किसी भी तरह नैतिक भ्रष्टाचार का दोषी पाया गया हो.</p>
<p>वह व्यक्ति जिसके उम्र अध्यक्ष या सदस्य का पद ग्रहण करने तक 45 साल न हुई हो वह भी लोकायुक्त नहीं हो सकता. ऐसा व्यक्ति भी लोकायुक्त नहीं हो सकता जिसे किसी भी कारण वश राज्य या केंद्र सरकार की नौकरी से बर्ख़ास्त किया गया हो. </p>
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