बिहार में कांग्रेस ने बदला अध्यक्ष, लालू यादव से रिश्ते और जाति की राजनीति भी बदलेगी?
<p style="text-align: justify;">कांग्रेस ने अखिलेश सिंह की छुट्टी करके दलित समुदाय से आने वाले राजेश कुमार को प्रदेश में पार्टी की कमान सौंपी है. राजेश कुटुंबा विधानसभा सीट से विधायक हैं. ये बिहार की आरक्षित सीट है. इससे पहले कांग्रेस नेता कृष्णा अल्लावरू को बिहार का प्रभारी बनाया था. अल्लावरू ने कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार के साथ ‘नौकरी दो, पलायन रोको’ यात्रा शुरू की.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>लालू यादव के करीबी माने जाते हैं अखिलेश सिंह</strong></p>
<p style="text-align: justify;">अखिलेश सिंह बिहार के प्रभावशाली भूमिहार जाति से ताल्लुक रखते हैं. मौजूदा समय में वो राज्यसभा के सांसद भी हैं. अखिलेश सिंह को लालू यादव का करीबी माना जाता है. वह कभी आरजेडी का ही हिस्सा थे. साल 2022 में उन्हें बिहार कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था. ऐसे में बिहार विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने ये बदलाव करके सियासी संदेश देने की कोशिश की है.</p>
<p style="text-align: justify;">दरअसल, कहा जा रहा है कि कांग्रेस पिछले विधानसभा चुनाव जितनी सीटों पर अड़ी है. पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को आरजेडी ने 70 सीटें थी. इसमें से कांग्रेस 19 सीटों पर जीती थी. बीते दिनों में कई कांग्रेस नेताओं ने सीट शेयरिंग को लेकर अपनी प्रतिक्रिया भी दी जिसमें पार्टी को सीट शेयरिंग में ज्यादा से ज्यादा सीटें मिलें इस पर जोर दिया. वहीं, आरजेडी 150 सीटों पर चुनाव लड़ने के मूड में है.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>लालू यादव से सियासी रिश्ते होंगे प्रभावित?</strong></p>
<p style="text-align: justify;">अब नए अध्यक्ष की सीट शेयरिंग में महत्वपूर्ण भूमिका होगी. सीटों को लेकर लालू यादव से उनकी बार्गेनिंग कितनी होगी ये भी सवाल है. हालांकि, लालू यादव की पहुंच सीधे कांग्रेस आलाकमान तक है. ऐसे में ये बदलाव लालू यादव के साथ सियासी रिश्ते को कितना प्रभावित करेगी, ये भी देखने वाली बात होगी.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>दलित अध्यक्ष बनाकर समुदाय को साधने की कोशिश</strong></p>
<p style="text-align: justify;">दलित अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस ने इस समुदाय को साधने की कोशिश की है. बिहार में दलितों की आबादी 19.65 फीसदी है. किसी भी पार्टी के लिए चुनाव में इनका वोट अहम है. इससे पहले कांग्रेस ने अशोक चौधरी को अध्यक्ष बनाया था जो दलित समुदाय से आते हैं. हालांकि अब वो नीतीश कुमार के साथ हैं. </p>
<p style="text-align: justify;"><strong>कांग्रेस के स्ट्राइक रेट पर उठे थे सवाल</strong></p>
<p style="text-align: justify;">आरजेडी की बात करें तो पिछले विधानसभा चुनाव में सीट शेयरिंग के तहत उसके कोटे में 144 सीटें आई थीं. आरजेडी ने आधे से ज्यादा 75 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की थी. कांग्रेस 70 में से 19 ही सीटें जीत पाई. ऐसे में चुनाव नतीजों के बाद ये चर्चा हुई क्या कांग्रेस को ज्यादा सीटें देने से महागठबंधन को नुकसान हुआ? क्योंकि महागठबंधन में ही सीपीआई-एमएल को 19 सीटें मिलीं जिसमें से उसने 12 सीटों पर जीत हासिल की थी. यानी सीपीआई-एमएल की जीत का स्ट्राइक रेट कांग्रेस से ज्यादा रहा.</p>
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