'पत्नी शारीरिक संबंध बनाने से करे मना तो अगली सुबह…', मैरिटल रेप पर सुप्रीम कोर्ट में किसने क्या दी दलील?
<p style="text-align: justify;">उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार, 17 अक्टूबर को कहा कि वह भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के उन दंडनीय प्रावधानों की संवैधानिक वैधता पर फैसला करेगी जो बलात्कार के अपराध के लिए पति को मुकदमे से बचाता है, जबकि वह अपनी पत्नी को यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करता है. इस मामले में पहले की सुनवाई में केंद्र सरकार ने दलील दी थी कि अगर ऐसे मामलों के अपराध की कैटगरी में लाया गया तो इससे वैवाहिक संबंधों पर गंभीर असर पड़ेगा और विवाह की संस्था भी प्रभावित होगी.</p>
<p style="text-align: justify;">केंद्र सरकार की इस दलील पर सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की राय जानने की कोशिश की. एक याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता करुणा नंदी ने दलीलें शुरू कीं और वैवाहिक दुष्कर्म पर आईपीसी तथा बीएनएस के प्रावधानों का जिक्र किया.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>अदालत में जिरह के कुछ अंश</strong></p>
<p style="text-align: justify;">मुख्य न्यायाधीश ने सुनवाई करते हुए कहा, "यह एक संवैधानिक प्रश्न है. हमारे सामने दो फैसलें हैं (दो हाईकोर्ट के) और अब हमें फैसला लेना है. मुख्य मुद्दा संवैधानिक वैधता का है." नंदी ने कहा कि अदालत को एक प्रावधान को रद्द कर देना चाहिए जो असंवैधानिक है. शीर्ष अदालत ने कहा, "आप कह रहे हैं कि यह (दंडात्मक प्रावधान) अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 19, अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) का उल्लंघन करता है. संसद ने जब अपवाद खंड लागू किया था, तो उसका आशय यह था कि जब कोई पुरुष 18 वर्ष से अधिक उम्र की पत्नी के साथ यौनाचार में संलग्न होता है, तो इसे बलात्कार नहीं माना जा सकता."</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>’…और अधिक हैंडसम बनकर आए पति'</strong></p>
<p style="text-align: justify;">सुनवाई के दौरान जस्टिस जे.बी. पारदीवाला ने एक केस के संदर्भ में सवाल उठाया, "मान लीजिए कोई पति अपनी पत्नी पर हमला करने या अभद्र व्यवहार करने की हद तक चला जाता है, तो कानून के अनुसार उस पर मुकदमा चलाया जा सकता है. लेकिन यदि जबरदस्ती संबंध बनाने की बात हो और पत्नी मना कर दे और अगले दिन FIR दर्ज करवा दे, तो क्या होगा?"</p>
<p style="text-align: justify;">इस पर एडवोकेट नंदी ने कहा, "किसी भी महिला को ना कहने का अधिकार उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि उसका हां कहना." जस्टिस पारदीवाला ने फिर पूछा, "तो क्या पति को पत्नी के इंकार को मान लेना चाहिए या तलाक दाखिल कर देना चाहिए?" एडवोकेट नंदी ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "पति को अगले दिन तक इंतजार करना चाहिए और अधिक हैंडसम बनकर आना चाहिए."</p>
<p style="text-align: justify;">सुनवाई के दौरान एडवोकेट करुणा नंदी ने कहा, "पत्नी के साथ जबरन संबंध बनाने में पति को सिर्फ इसलिए छूट मिल रही, क्योंकि पीड़ित उसकी पत्नी है. यह जनता बनाम पितृसत्ता की लड़ाई है, इसलिए हम अदालत में आए हैं. हमारा संविधान लोगों के बदलने के साथ बदल रहा है."</p>
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