नॉर्थ की बत्ती गुल, लेकिन दक्षिण में मजबूत हुई कांग्रेस; क्या डीके शिवकुमार नया पावर सेंटर बनकर उभरेंगे?
<p>मध्य प्रदेश, राजस्थान समेत 4 राज्यों के चुनाव परिणाम ने कांग्रेस संगठन में काफी खलबली मचा दी है. हिंदी बेल्ट के 3 राज्यों में कांग्रेस पूरी तरह से साफ हो गई है. दक्षिण के तेलंगाना में पार्टी की प्रतिष्ठा जरूर बच गई है. यहां कांग्रेस सत्ताधारी बीआरएस को पटखनी दी है.</p>
<p>नए समीकरण के हिसाब से कांग्रेस के पास अब 3 राज्यों की सत्ता रहेगी. इनमें पहाड़ी राज्य हिमाचल और दक्षिण भारत के राज्य कर्नाटक और तेलंगाना शामिल है. कर्नाटक और तेलंगाना बजट और संशाधन के हिसाब से पार्टी के लिए काफी अहम है.</p>
<p>कर्नाटक और तेलंगाना में सरकार होने की वजह से पार्टी के भीतर नए पावर सेंटर उभरने की चर्चा तेज हो गई है. चर्चा कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार को लेकर भी है, जिन्होंने कर्नाटक के बाद तेलंगाना में सरकार बनाने में महत्वपर्ण भूमिका निभाई है.</p>
<p>शिवकुमार को लेकर चर्चा इसलिए भी है, क्योंकि उनके प्रदेश अध्यक्ष रहते कर्नाटक में पार्टी जीती, लेकिन उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया. इसके उलट तेलंगाना में प्रदेश अध्यक्ष रेवंत रेड्डी मुख्यमंत्री की रेस में सबसे आगे हैं. उनके नाम पर शायद ही पार्टी के भीतर कोई विरोध हो.</p>
<p><strong>बात पहले कांग्रेस के पावर सेंटर की</strong><br />कांग्रेस के भीतर भले ही मल्लिकार्जुन खरगे अध्यक्ष हैं, लेकिन पावर सेंटर अभी भी गांधी परिवार और राहुल गांधी के करीबियों के पास है. राष्ट्रीय संगठन में 2000 बैच के नेताओं का खासा दबदबा है. संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल और कोषाध्यक्ष अजय माकन इसी बैच के नेता हैं</p>
<p>संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल तो उदयपुर डिक्लेरेशन को धत्ता बताते हुए पिछले 5 सालों से कांग्रेस के संगठन महासचिव पद पर काबिज हैं. कांग्रेस संविधान में अध्यक्ष के बाद इस पद को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है.</p>
<p>2 राज्यों के महासचिव रणदीप सुरजेवाला और महासचिव भंवर जितेंद्र सिंह भी इसी गुट से आते हैं. राज्य स्तर पर पुराने नेता अभी भी संगठन में हावी है. इनमें से अधिकांश नेता इंदिरा के जमाने से ही प्रभावी हैं. पुराने और नए नेताओं की लड़ाई कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी है. </p>
<p>कांग्रेस हाईकमान (जहां अधिकांश 2000 बैच के नेता हैं) की शिथिलता की वजह से पार्टी हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में सत्ता गंवा चुकी हैं.</p>
<p><strong>शिवकुमार पर सबकी नजर क्यों, 3 वजहें…</strong></p>
<p><strong>1. कर्नाटक के बाद तेलंगाना में निभाई बड़ी भूमिका</strong><br />डीके शिवकुमार ने कर्नाटक के बाद तेलंगाना के चुनाव में कांग्रेस पार्टी के लिए बड़ी भूमिका निभाई है. कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक डीके के कंधों पर तेलंगाना चुनाव का फंड मैनेजमेंट और वार रूम मॉनिटरिंग की जिम्मेदारी थी. </p>
<p>चुनाव परिणाम की घोषणा से पहले कांग्रेस ने डीके को पर्यवेक्षक बनाकर हैदराबाद भेजा था. कांग्रेस को यह डर था कि अगर पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलती है, तो उनके विधायकों को तोड़ा जा सकता है. </p>
<p>कांग्रेस के एक नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा- तेलंगाना चुनाव के हर बड़े फैसले में डीके शिवकुमार को शामिल किया जाता था. तेलंगाना कांग्रेस के अध्यक्ष रेवंत रेड्डी भी उनसे सलाह लेते थे. </p>
<p>दक्षिण भारत में कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच डीके के छवि एक जूझारू नेता की है, जो सत्ता के बड़े लोगों से हर तरह से लड़ने में सक्षम हैं.</p>
<p><strong>2. कर्नाटक में नहीं मिला मुख्यमंत्री का पद</strong><br />कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के बाद डीके शिवकुमार के मुख्यमंत्री बनाए जाने की चर्चा जोरों पर थी, लेकिन सिद्धारमैया के सामने वे 19 पड़ गए. कांग्रेस ने सत्ता बंटवारे के फॉर्मूले के तहत डीके शिवकुमार को उपमुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी. </p>
<p>शिवकुमार कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष भी हैं. हालांकि, उनके समर्थक लगातार उन्हें सीएम बनाने की मांग कर रहे हैं. </p>
<p><a title="लोकसभा चुनाव" href="https://www.abplive.com/topic/lok-sabha-election-2024" data-type="interlinkingkeywords">लोकसभा चुनाव</a> से पहले यह मांग शायद ही पूरा हो. वजह सिद्धारमैया की मजबूत पकड़ है. ऐसे में यह चर्चा है कि शिवकुमार को संगठन में ही बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है. </p>
<p>कांग्रेस की कोठरी में शिवकुमार की छवि फायरब्रांड नेता की भी है, जो पहले भी कई बार बीजेपी के मजबूत संगठन को चुनौती दे चुके हैं.</p>
<p><strong>3. उत्तर भारत के सभी रणनीतिकार ध्वस्त</strong><br />भारतीय जनता पार्टी के चुनावी मशीनरी के सामने उत्तर भारत के सभी कांग्रेसी ध्वस्त हो चुके हैं. कांग्रेस के बड़े रणनीतिकार अशोक गहलोत मुख्यमंत्री रहे पार्टी को चुनाव नहीं जितवा पाए हैं. कमलनाथ के नेतृत्व में भी कांग्रेस हार गई है. </p>
<p>छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में भी पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा है. बीजेपी की रणनीति को कुंद करने के लिए पार्टी के पास अब कोई बड़ा चेहरा नहीं है. </p>
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