नालंदा विश्वविद्यालय के बसने, उजड़ने और फिर बसने की कहानी
नालंदा विश्वविद्यालय प्राचीन भारत का एक प्रमुख और ऐतिहासिक शिक्षा केंद्र था. इसे दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय माना जाता है, जहां छात्र और शिक्षक एक ही परिसर में रहते थे.
कुमारगुप्त प्रथम ने की थी स्थापना
नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 450 ई. में गुप्त सम्राट कुमारगुप्त प्रथम ने की थी. बाद में इसे हर्षवर्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला. इस विश्वविद्यालय की भव्यता का अनुमान इससे लगाइए कि इसमें 300 कमरे, 7 बड़े कक्ष और अध्ययन के लिए 9 मंजिला एक विशाल पुस्तकालय था, जिसमें 3 लाख से अधिक किताबें थीं.
यहां एक समय में 10,000 से अधिक छात्र और 2,700 से अधिक शिक्षक होते थे. छात्रों का चयन उनकी मेधा के आधार पर होता था और इनके लिए शिक्षा, रहना और खाना निःशुल्क था. इस विश्वविद्यालय में केवल भारत से ही नहीं, बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, ईरान, ग्रीस, मंगोलिया आदि देशों से भी छात्र आते थे.
बख्तियार खिलजी ने किया था बर्बाद
1193 में बख्तियार खिलजी के आक्रमण के बाद नालंदा विश्वविद्यालय को बर्बाद कर दिया गया था. यहां विश्वविद्यालय परिसर और खासकर इसकी लाइब्रेरी में आग लगाई गई, जिसमें पुस्तकालय की किताबें हफ्तों तक जलती रहीं.
अब प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की तर्ज पर नई नालंदा यूनिवर्सिटी बिहार के राजगीर में 25 नवंबर 2010 को स्थापित की गई. इस विश्वविद्यालय की स्थापना नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम, 2010 के तहत की गई. इस अधिनियम में विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए वर्ष 2007 में फिलीपीन में आयोजित दूसरे पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में लिए गए निर्णय को लागू करने का प्रावधान किया गया है.
भारत के अलावा 17 अन्य देशों की भागीदारी
नए विश्वविद्यालय ने 2014 में 14 छात्रों के साथ एक अस्थायी स्थान से काम करना शुरू किया. विश्वविद्यालय का निर्माण कार्य 2017 में शुरू हुआ. भारत के अलावा इस विश्वविद्यालय में जिन 17 अन्य देशों की भागीदारी है उनमें ऑस्ट्रेलिया, बांग्लादेश, भूटान, ब्रुनेई दारुस्सलाम, कंबोडिया, चीन, इंडोनेशिया, लाओस, मॉरीशस, म्यांमार, न्यूजीलैंड, पुर्तगाल, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया, श्रीलंका, थाईलैंड और वियतनाम शामिल हैं. इन देशों ने विश्वविद्यालय के समर्थन में समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए हैं. विश्वविद्यालय अंतरराष्ट्रीय छात्रों को 137 छात्रवृत्तियां प्रदान करता है.
शैक्षणिक वर्ष 2022-24, 2023-25 के लिए स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम और 2023-27 के पीएचडी पाठ्यक्रम के लिए नामांकित अंतरराष्ट्रीय छात्रों में अर्जेंटीना, बांग्लादेश, भूटान, कंबोडिया, घाना, इंडोनेशिया, केन्या, लाओस, लाइबेरिया, म्यांमार, मोजाम्बिक, नेपाल, नाइजीरिया, कांगो गणराज्य, दक्षिण सूडान, श्रीलंका, सर्बिया, सिएरा लियोन, थाईलैंड, तुर्किये, युगांडा, अमेरिका, वियतनाम और जिम्बाब्वे के विद्यार्थी शामिल हैं.
विश्वविद्यालय में छह अध्ययन केंद्र हैं जिनमें बौद्ध अध्ययन, दर्शन और तुलनात्मक धर्म स्कूल; ऐतिहासिक अध्ययन स्कूल; पारिस्थितिकी और पर्यावरण अध्ययन स्कूल; और सतत विकास और प्रबंधन स्कूल शामिल हैं.
उद्घाटन से पहले लोगों ने दी इस तरह की प्रतिक्रिया
नालंदा विश्वविद्यालय के इस नए भवन के उद्घाटन से पहले यहां घूमने आए बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगों ने कहा कि इस विश्वविद्यालय के सच्चे इतिहास के बारे में सबको जानकारी होनी चाहिए. इसके लिए राज्य और केंद्र सरकार को प्रयास करना चाहिए.
उन्होंने मांग की कि इस विश्वविद्यालय के सच्चे इतिहास को बहुत कम लोग जानते हैं. ऐसे में इस जगह की खुदाई कराकर इसके बारे में ज्यादा जानकारी लोगों को पहुंचाना चाहिए.
यहां घूमने आई पर्यटक खुशी कुमारी ने कहा कि आजकल के लोगों की सोच अलग है. पहले शिक्षा नेचर के साथ कनेक्ट होता था, आज तकनीक पर आधारित है. शिक्षक भी अब पहले की तरह छात्रों से ज्यादा कनेक्ट नहीं करते हैं. पुराने नालंदा विश्वविद्यालय की शिक्षा व्यवस्था में और आज की शिक्षा व्यवस्था में काफी अंतर है.
आकांक्षा कुमारी जो नालंदा घूमने आई थी, उन्होंने बताया कि इस विश्वविद्यालय परिसर में आकर हमें बहुत अच्छा लगा. लोगों से अपील की कि वह भी नालंदा आएं और अपने इतिहास के अवशेषों को देखें और अपने आप पर गर्व करें.
श्रवण कुमार नाम के पर्यटक ने कहा कि यहां तो पूरी दुनिया से लोग शिक्षा ग्रहण करने आते थे. उन्होंने कहा कि इस विश्वविद्यालय को तोड़ने के पीछे एक मकसद सांस्कृतिक चोट पहुंचाना भी था.
बिहार शरीफ के रहने वाले अंकित कुमार ने बताया कि इस खंडहर को देखकर अपने देश और उसके इतिहास पर गर्व होता है. लोगों से अपील करते हैं कि यहां जरूर आएं और इसे देखें ताकि आप भी अपनी शिक्षा व्यवस्था और संस्कृति पर गर्व कर सकें.
(एजेंसियों के इनपुट के साथ)
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