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त्योहारी सीजन : ऑनलाइन बाजार गुलज़ार तो लोकल सुनसान, क्या है समाधान!



त्योहारी सीजन में ऑनलाइन बाजार गुलज़ार है पर लोकल बाज़ार में अब पहली जैसी बात नहीं. लोकल दुकानदारों ने भी अपने व्यापार को ऑनलाइन विस्तार देने के लिए कोई साझा पहल नहीं की है.

त्योहारी सीजन में बाजार में दुकानों पर भीड़ देखी जा सकती है पर अब यह भीड़ कुछ सालों पहली जैसी नहीं है. ऑनलाइन शॉपिंग साइटों ने इन लोकल दुकानदारों के हिस्से से कई ग्राहक कम कर दिए हैं. भारतीय ऑनलाइन शॉपिंग साईट्स के बाजार में साल 2007 में फ्लिपकार्ट और फिर साल 2013 में अमेजन के उतरने के बाद से ही इन लोकल दुकानदारों की बिक्री कम होने लगी है. मीशो, स्नैपडील जैसे कुछ अन्य ऑनलाइन शॉपिंग साईट्स ने भी भारतीय बाजार पर अपनी धाक जमाई है.

त्योहारी सीजन में बाजारों की रौनक गायब
उत्तराखंड के टनकपुर में रहने वाले संजय बिष्ट इस विषय पर फेसबुक पर अपनी एक पोस्ट में लिखते हैं कि क्या आपने महसूस किया है कि अब त्योहारों में बाज़ार की रौनक़ कम होने लगी है! लोग एक दूसरे से कटे-कटे रहने लगे हैं. इसका कारण जानते हैं? ऑनलाइन शॉपिंग. जो सामान हमें अपनी पास की दुकान से मिल ही रहा है तो बेवजह ऑनलाइन शॉपिंग क्यों करनी है. जरा सोचिए कि अगर होली, दिवाली, बैसाखी, लोहड़ी, ईद, क्रिसमस आदि त्योहारों में बाज़ार ही ना सजे तो क्या त्योहार मनाने में आनंद आएगा? दोस्तों बाज़ार की रौनक़ फिर से बन जाइए और धूमधाम से त्योहार मनाइए और इस बार ऑनलाइन नहीं लोकल दुकानदार से ख़रीदारी कीजिए.

शॉपिंग साइट्स से टकराने में विफल लोकल दुकानदार
संजय बिष्ट अपनी जगह सही हैं, उनका लोकल दुकानदारों और अपने क्षेत्र से लगाव होना समझ आता है पर सवाल यह है कि जब ग्राहक को इन दुकानों की तुलना में सस्ता सामान जब फ्लिपकार्ट, अमेज़न पर उपलब्ध है तो वह क्यों इन लोकल दुकानदार के पास जाएगा! बाजार के आधे से भी कम दाम पर कपड़े, ड्राई फ्रूट्स, टीवी ऑनलाइन उपलब्ध है. फ्लिपकार्ट ने ‘द बिग बिलियन डेज’ सेल के अपने आंकड़े साझा करते हुए लिखा कि इस बार रिकॉर्ड 18,500 करोड़ रुपए की बचत भारतीयों द्वारा फ्लिपकार्ट से सामान लेकर की गई.

देश की अर्थव्यवस्था के लिए छोटे दुकानदारों का सदृढ़ होना जरूरी है लेकिन कोरोना के बाद से भारत में ऑनलाइन शॉपिंग में इजाफा हुआ है और इन लोकल दुकानदारों ने अमेज़न जैसे बड़े खिलाड़ियों से लड़ने के लिए कुछ नहीं किया है. भारत सरकार की इन्वेस्ट इंडिया वेबसाइट के अनुसार भारत में साल 2019 की तुलना में मोबाइल के माध्यम से इंटरनेट एक्सेस की अवधि में 21 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, इसका सीधा अर्थ यह है कि दूरस्थ क्षेत्रों के लोगों ने भी इंटरनेट की उपलब्धता की वजह से ऑनलाइन शॉपिंग साइट्स से खरीददारी बढ़ाई होगी.

लोकल दुकानदारों के लिए आगे चुनौती और भी मुश्किल होने वाली है क्योंकि भारत सरकार के अनुसार साल 2025 तक लगभग 87 प्रतिशत घरों में इंटरनेट कनेक्शन होगा.

व्यापार करना है तो साझी पहल अब जरूरी

देहरादून के सुनील कैंथोला ने कोरोना काल में लोकल दुकानदारी ठप होने पर और भविष्य में ऑनलाइन शॉपिंग साइट्स के बढ़ते वर्चस्व को ध्यान में रखते लोकल दुकानदारों के लिए एक ऐप बनाया, जिससे इन छोटे दुकानदारों की ग्राहकों तक पहुंच आसान होगी.

इस पर बात करते सुनील कहते हैं एक ख़ास तरह का भविष्य हमारे जेहन में बोया जा रहा है. शॉपिंग मॉल की चेन और ऑनलाइन व्यापार की दुनिया से सजा भविष्य, जहां घर बैठे ही सब हासिल हो जायेगा और खरीदारी किसी पिकनिक से कम न होगी! कुछ समय बाद यह मायावी दुनिया सिर्फ इजारेदारी के दम पर ही चल पायेगी और यह इजारेदारी उत्पादन, विपणन, उपभोक्ता और उपभोग के समस्त आयामों तक पसरती चली जाएगी. इस तंत्र के केंद्र में होगा उपभोक्ता को सम्मोहित करने का मंत्र जो विशेष छूट, फ्री कूपन और विविध प्रचार माध्यमों के जरिये वास्तव में भारत के पारम्परिक किराना व्यापार का मर्सिया पढ़ रहा होगा, लेकिन इस खेल में सामान्य उपभोक्ता तभी तक शामिल रह पायेगा जब तक उसके क्रेडिट कार्ड में दम होगा. यूं प्रारंभिक स्तर पर उसकी क्रेडिट रेटिंग उसे दिवाली में ड्राई फ्रूट खरीदने के लिए भी ईएमआई पर लोन देने को तत्पर दिखेगी पर एक सीमा के बाद उसकी भविष्य में होने वाली आमदनी भी रेहन पर चली जाएगी और इस विकट गणित को जीडीपी के उतार-चढ़ाव के ग्राफ के माध्यम से परिभाषित किया सकेगा. ऐसे में यदि बस्तियों, मोहल्लों और कॉलोनियों की किराना दुकान यदि बच पायी तो पिटे हुए उपभोक्ता फिर उसी लाला की तरफ लौटेंगे जो उन्हें बिना ब्याज, बिना किसी कागजी लिखा-पढ़ी के बरसों से उधार सामान देता आ रहा है.

जब टेक्नोलॉजी उपलब्ध है तो भारत के समस्त स्थानीय बाज़ारों और किराना व्यापारियों को बिना किसी खर्चे के ऑनलाइन रिटेल से जोड़ा जा सकता है. दिलचस्प बात यह है कि इस दिशा में कोई सार्थक प्रयास कभी किया ही नहीं गया और स्वयं किराना व्यापारियों भी अपने व्यापार को ऑनलाइन विस्तार देने में कोई साझी पहल करने में असफल रहे.

ऑनलाइन व्यापार की बिसात आभासी खिलाडियों ने बिछाई है, जिसके तहत स्थानीय बाज़ार मुकाबला नहीं कर सकते. किन्तु इसके केंद्र में अंततः टेक्नोलॉजी ही है, दाज्यू इन्नोवेशंस ने लोकल मार्किट इकोसिस्टम के आधार पर लाला जी ऐप विकसित किया है. इसमें भुगतान सीधा व्यापारी पकड़ता है और किसी तरह का कमीशन नहीं देना पड़ता. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि लाला जी इंडिया ऐप के प्रयोग से उत्पन्न यूजर डाटा व्यापारी की डिजिटल संपत्ति के रूप में विकसित होता चला जाता है, जिसका कालांतर में वह अपने व्यापार के प्रबंधन एवं विस्तार में उपयोग कर सकता है. इस यूजर डाटा पर गूगल अथवा फेसबुक सेंधमारी नहीं कर सकते. लोकल मार्केट इकोसिस्टम के अंतर्गत ग्राहक अपनी पसंदीदा दुकानों को अपने ऐप से जोड़ कर सीधा आर्डर कर सकते हैं, जिसके अंतर्गत किराना, फल-सब्जी, फार्मेसी आदि से लेकर प्रेस-लॉन्ड्री वाले सभी उद्यमियों को एक ऐप के अंतर्गत जोड़ना संभव है.

(हिमांशु जोशी उत्तराखंड से हैं और प्रतिष्ठित उमेश डोभाल स्मृति पत्रकारिता पुरस्कार प्राप्त हैं. वह कई समाचार पत्र, पत्रिकाओं और वेब पोर्टलों के लिए लिखते रहे हैं.)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.



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