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क्या हुआ था 1914 में, जब भारतीयों ने दी थी कुर्बानियां… आज भी याद की जाती है वीरता


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के साथ मार्से शहर के ऐतिहासिक माजारग्वेज युद्ध कब्रिस्तान का दौरा किया. यह वो शहर है, जहां हजारों भारतीय सैनिकों ने कुर्बानी दी थी.  प्रधानमंत्री मोदी ने तिरंगे के रंग वाले फूलों से निर्मित पुष्पचक्र अर्पित कर सर्वोच्च बलिदान देने वाले भारतीय सपूतों को याद किया. फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों ने भी भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि दी. सीडब्ल्यूजीसी की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, ‘‘इस कब्रिस्तान में 1914-18 के प्रथम युद्ध में जान गंवाने वाले 1,487 और 1939-45 के युद्ध में बलिदान देने वाले 267 जवानों के स्मारक हैं. आइए जानते हैं 1914 में भारतीय जवानों को वो कुर्बानी…

आधुनिक इतिहास के पन्नों में 2 युद्ध बेहद भीषण हुए. इनमें पहला युद्ध हम प्रथम विश्व युद्ध के तौर पर जानते हैं. इसकी शुरुआत  28 जुलाई 1914 को हुई थी. यह युद्ध यूरोप, अफ्रीका, एशिया और मध्य पूर्व तक फैल गया था. ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, अमेरिका और उनके सहयोगी देशों ने जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी और ऑटोमन सम्राज्य के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी. इस युद्ध में ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा होने के कारण भारत ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. रिपोर्ट के अनुसार, भारत से लगभग 10 लाख से अधिक सैनिक इस युद्ध में शामिल हुए थे. 

हजारों भारतीयों ने यूरोप के युद्धक्षेत्रों में बहादुरी से लड़ते हुए अपनी जान गंवाई थी.  मार्से (Marseille) फ्रांस के दक्षिणी तट पर स्थित एक प्रमुख बंदरगाह शहर था, भारतीय सैनिकों के लिए यूरोप में प्रवेश करने का पहला द्वार था. यहां से भारतीय सैनिकों को फ्रांस और बेल्जियम के युद्ध के मैदान में भेजा जाता था. 

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क्यों भेजे गए थे भारतीय सैनिक? 
प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटेन को अपनी सेना को मजबूत करने के लिए अतिरिक्त सैनिकों की आवश्यकता थी. ब्रिटिश सरकार ने भारत से सैनिकों को यूरोप भेजने का फैसला लिया था. सितंबर 1914 में भारतीय सेना की लाहौर डिवीजन और मेरठ डिवीजन को पश्चिमी मोर्चे (Western Front) की ओर रवाना किया गया था. 26 सितंबर 1914 को भारतीय सैनिकों का पहला समूह मार्से पहुंचा था. यहां से विभिन्न जगहों पर भारतीय सैनिकों को भेजा गया.

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भारतीय सैनिकों के सामने क्या चुनौतियां थी? 

  • नए वातावरण से परेशान थे भारतीय: भारतीय सैनिक गर्म जलवायु में रहने वाले थे, लेकिन फ्रांस और य़ूरोप में ठंड, बारिश के कारण उन्हें युद्ध करने में बेहद परेशानी का सामना करना पड़ा. 
  • जर्मन सेना बेहद मजबूत थी: भारत के सैनिकों का मुकाबला आधुनिक जर्मन सेना से हो रहा था, जो कि बेहद मबजूत थी और उसके पास कई आधुनिक हथियार थे. इसी कारण कई भारतीयों को जान गंवानी पड़ी. 
  • भारतीयों ने पहले इस तरह की लड़ाई नहीं की थी: भारतीय सैनिकों को इन हालत में लड़ने की पहले आदत नहीं थी. इसका नुकसान उन्हें उठाना पड़ा और हजारों की जान चली गयी.

मार्से भारतीयों के लिए क्यों महत्वपूर्ण है? 
प्रथम विश्व युद्ध में भारतीय सैनिकों की भूमिका को भुलाया नहीं जा सकता. मार्से भारतीय सैनिकों के लिए सिर्फ एक बंदरगाह नहीं था, बल्कि वह स्थान था, जहां से उन्होंने एक नए युद्धक्षेत्र में कदम रखा और अपने साहस का परिचय दिया था. तमाम चुनौतियों के बाद भी भारतीय सैनिक युद्ध के मैदान में डटे रहे थे. हजारों सैनिकों की जान चली गयी थी, लेकिन भारतीयों ने अपने कदम को पीछे नहीं किया था.  ब्रिटिश और फ्रांसीसी सेनाओं के लिए लॉजिस्टिक बेस के तौर पर यह शहर स्थापित था. इस बंदरगाह से फ्रांस और बेल्जियम के युद्धक्षेत्रों में तमाम संसाधन पहुंचते थे. 

  • भारतीय सैनिकों की वीरता का लोहा दुनिया ने माना.
  • प्रथम विश्वयुद्ध में भारतीय सैनिकों की वीरता को पूरी दुनिया ने स्वीकार किया था. 
  • 11 भारतीय सैनिकों को विक्टोरिया क्रॉस (Victoria Cross) मिला, जो ब्रिटेन का सर्वोच्च सैन्य सम्मान माना जाता था. 
  • कई भारतीय सैनिकों को मेडल ऑफ ऑनर, मिलिट्री क्रॉस और फ्रेंच लीजन ऑफ ऑनर से सम्मानित किया गया था.
  • इंडिया गेट (दिल्ली) – प्रथम विश्व युद्ध में शहीद हुए भारतीय सैनिकों की स्मृति में बनाया गया.
  • नीव चैपल मेमोरियल (Neuve-Chapelle Memorial, फ्रांस) – भारतीय सैनिकों के योगदान को सम्मानित करने के लिए बनाया गया. 
  • ब्राइटन (Brighton, इंग्लैंड) में चत्री स्मारक – भारतीय सैनिकों को समर्पित एक स्मारक बनाया गया.

भारत पर इसका क्या प्रभाव पड़ा?
भारतीय सैनिकों ने ब्रिटिश साम्राज्य के लिए यूरोप, मध्य पूर्व और अफ्रीका में अद्वितीय बहादुरी दिखाई थी. इसका असर पूरी दुनिया पर देखने को मिला. भारत में भी इसका असर हुआ. युद्ध में भारतीय सैनिकों की वीरता के बावजूद, ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों को समानता या स्वतंत्रता नहीं दी, जिसके कारण भारत में स्वतंत्रता को लेकर लोगों में जागरुकता फैली. लोग अंग्रेज सरकार के खिलाफ अधिक मुखर हुए. महात्मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक, और अन्य नेताओं ने स्वतंत्रता आंदोलन को और तेज कर दिया.  देश के तमाम हिस्सों से शहीद हुए सैनिकों के कारण लोगों के बीच अंग्रेज सरकार को लेकर नाराजगी बढ़ गयी.  

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मजारग्वेज युद्ध समाधि कब बनाया गया?
मारे गए भारतीयों के सम्मान में इसका निर्माण करवाया गया. भारतीय सैनिकों की कब्रों को विशेष मुस्लिम, हिंदू और सिख परंपराओं के अनुसार बनाया गया है. हिंदू और सिख सैनिकों के लिए कई समाधियों पर संस्कृत और गुरुमुखी में शिलालेख खुदे हुए हैं. मुस्लिम सैनिकों के लिए कब्रें मक्का की दिशा में बनाई गई हैं. ब्रिटिश राष्ट्रमंडल के साझा युद्ध इतिहास के तौर पर पूरी दुनिया में इसे याद किया जाता है. 

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