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किसने किया बटर चिकन और दाल मखनी का आविष्कार? अब दिल्ली हाईकोर्ट में होगा फैसला



बटर चिकन और दाल मखनी को लेकर छिड़ी बहस अब दिल्ली हाई कोर्ट पहुंच गई है. अब कोर्ट यह तय करेगा कि बटर चिकन और दाल मखनी का “आविष्कार” किसने किया. कोर्ट दिल्ली स्थित दो रेस्तरां चेन मोती महल और दरियागंज के बीच चल रहे विवाद पर फैसला सुनाएगा. मोती महल ने लंबे समय से दावा किया है कि इसके दिवंगत संस्थापक, कुंडल लाल गुजराल (1902-97) ने बटर चिकन और दाल मखनी का आविष्कार किया था, जो विभाजन के बाद पेशावर के मोती महल रेस्तरां से व्यंजन भारत लाए थे.

इधर, हाल ही में, शार्क टैंक इंडिया की प्रसिद्धि वाले दरियागंज ने भी खुद को दोनों व्यंजनों के “आविष्कारक” के तौर पर प्रचार करना शुरू कर दिया. इसके मालिकों ने दावा किया कि यह उनके पूर्वज, कुंदन लाल जग्गी (1924-2018) थे, जिन्होंने दोनों व्यंजनों का आविष्कार किया था. उन्होंने रेस्तरां की वेबसाइट पर पेशावर के मोती महल की एक तस्वीर भी डाली है.

मोती महल के आरोप

नतीजतन, मोती महल ने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक कानूनी मुकदमा दायर किया, जिसमें दावा किया गया कि दरियागंज मोती महल के आविष्कार को अपना बता रहा है. मोती महल के मुकदमे में ट्रेडमार्क उल्लंघन और उसे ख़त्म करने का आरोप लगाया गया है और दरियागंज के खिलाफ एक अस्थायी निषेधाज्ञा की मांग की गई है. अस्थायी निषेधाज्ञा एक आदेश है जिसके द्वारा किसी कार्रवाई के पक्ष को मुकदमे का निपटारा होने तक, या अदालत के अगले आदेश तक कोई विशेष कार्य करने/करने से बचना होता है.

मोती महल के मालिकों ने तर्क दिया है कि दरियागंज न केवल जनता को गुमराह कर रहा है कि बटर चिकन का आविष्कार किसने किया, बल्कि उसने अपनी वेबसाइट पर पेशावर रेस्तरां की एक छेड़छाड़ की गई तस्वीर का भी गलत इस्तेमाल किया है.

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मोती महल की याचिका में दरियागंज को यह दावा करने से रोकने की मांग की गई है कि उनके पूर्वजों ने दो व्यंजनों का आविष्कार किया था. साथ ही उनकी वेबसाइट, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और किसी भी मीडिया पर “बटर चिकन और दाल मखनी के आविष्कारकों द्वारा” टैगलाइन का इस्तेमाल करने से रोक लगाने की मांग गई है.

याचिका में दरियागंज को यह दावा करने से रोकने की भी मांग की गई है कि यह किसी भी तरह से मोती महल से संबंधित है, जिसकी पहली शाखा पुरानी दिल्ली के दरियागंज इलाके में खोली गई थी. मोती महल की याचिका में कहा गया है कि 1920 से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संचालित रेस्तरां के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले अन्य संबंधित चिह्नों के साथ ट्रेडमार्क “मोती महल” का स्वामित्व पूरी तरह से उसके पास है.

दरियागंज की सफाई

16 जनवरी को, दिल्ली HC में, दरियागंज के वकील ने मोती महल के दावों का विरोध किया, और पूरे मुकदमे को “गलत धारणा, निराधार और कार्रवाई का अभाव” करार दिया. पेशावर रेस्तरां की एक तस्वीर के संबंध में, प्रतिवादी के वकील ने कहा कि रेस्तरां दोनों पक्षों के “पूर्ववर्तियों” – मोती महल के गुजराल और दरियागंज के जग्गी – द्वारा संयुक्त रूप से स्थापित किया गया था और वादी के पास तस्वीर पर विशेष अधिकार का कोई वैध दावा नहीं था.

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