Sports

ऐसा जुनून, 30 साल दुकान तक नहीं गए! देश के विज्ञान रत्न ‘GP’ की गजब कहानी




दिल्ली:

वो PHD स्टूडेंट, जिसको हर महीने महज 45 रुपए स्कॉलरशिप थी, असिस्टेंड प्रोफेसर रहते भी जो नया स्कूटर नहीं खरीद सके… इतनी साधारण सी जिंदगी जीने वाले उस शख्स ने कहां सोचा होगा कि एक दिन वह विज्ञान के सबसे बड़े सम्मान से नवाजे जाएंगे. सादा सा नाम गोविंदराजन (Govindarajan Padmanabhan) एक दिन इतना खास हो जाएगा कि हर किसी की जुबान पर होगा. हम बात कर रहे हैं देश का पहला विज्ञान रत्न पाने वाले गोविंदराजन पद्मनाभन की. वही गोविंदराजन पद्मनाभन, जो भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) के पूर्व डायरेक्टर हैं और वर्तमान में वह IISc बेंगलुरु में मानद प्रोफेसर के तौर कर सेवाएं दे रहे हैं. उनकी उपलब्धियां भले ही बड़ी हैं, लेकिन उनकी जिंदगी बेहद ही साधारण सी है. 

ये भी पढ़ें-विज्ञान रत्न अवॉर्ड: क्या आपको पता है कौन हैं गोविंदराजन पद्मनाभन? देश के इस अनमोल हीरे के बारे में जानिए

न बड़ा घर, न नया स्कूटर, लेकिन कारनामे बड़े

गोविंदराजन किसी भी आम इंसान की तरह ही क्लासिकल म्यूजिक और क्रिकेट के शौकीन हैं. भारतीय विज्ञान संस्थान के डायरेक्टर बनने के बाद भी वह बेंगलुरु के एक छोटे से घर में रहते थे. क्यों कि उनके पास नया घर खरीदने के लिए पैसे ही नहीं थे. यहां तक कि असिस्टेंट प्रोफेसर रहते वह अपने लिए नया स्कूटर तक नहीं खरीद सके. लेकिन सेकेंड हैंड स्कूटर पर भी उनकी जिंदगी कमाल चल रही थी. वह पहली बार विदेश यात्रा पर ब्रिटेन गए थे. गोविंदराजन के करीबी उनको प्यार से जीपी बुलाते हैं. उनका मानना है कि भारत में विज्ञान पैसा कमाने वाला पेशा नहीं है. तो फिर एक वैज्ञानिक भी तो अपने परिवार को वैसे ही चलाता, जैसे कोई भी मिडिल क्लास फैमली अपना गुजारा करती है. नेचर इंडिया के मुताबिक, अपने बारे में ये खुलासे उन्होंने साल 2008 में आईआईएससी के शताब्दी समारोह के दौरान किए थे.

कम सैलरी की कभी चिंता ही नहीं की

खास बात यह है कि जीपी की रुचि भी इतनी सादा चीजों में थी, कि कम सैलरी उनके लिए कभी चिंता का विषय ही नहीं रही. वह रिसर्च में इस कदर डूबे रहे कि उनको नौकरी या फिर करियर के बारे में सोच ही नहीं पाए. उनका पूरा समय तो रिसर्च पर ही लग जाता था. घर के कामकाज उनकी पत्नी देख लेती थीं. गोविंदराजन ने एक बार खुद इस बात का खुलासा किया था कि वह 30 साल से किसी दुकान या फिर बैंक में नहीं गए. वह जो भी काम कर रहे थे उसमें बहुत खुश थे. IISC के प्रोफेसर रहते उनको दुनिया के किसी दूसरे पद की चाहत ही नहीं हुई. 

न पद का लालच, न पुरस्कार पाने की चाह

गोविंदराजन के मुताबिक, वह इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलॉजी के पहले डायरेक्टर या फिर विभाग के सचिव भी बन सकते थे. लेकिन वह अपने काम में इस कदर मशरूफ थे कि उन्होंने इस सब के बारे में सोचा ही नहीं. न उनको पद का लालच था और न ही पुरस्कार पाने की चाह. कोई भी पद न तो उनका लाइफस्टाइल बदल सका और न ही उनका नजरिया. बस उनके काम करने के घंटे बदल रहे थे, बाकी सब वैसा ही था. 

डॉ. कलाम ने भी की थी जीपी की तारीफ

31 जुलाई 1998 को 60 साल की उम्र में उन्होंने डायरेक्टर का पद छोड़ दिया. उसी शाम को शिक्षा मंत्रालय ने रिटायरमेंट की उम्र 62 साल बढ़ाने का फैसला लिया. एक किताब के जरिए, जीपी ने देश के उभरते वैज्ञानिकों को यह बताया कि ‘वैज्ञानिकों को क्या प्रेरित करता है. जीपी भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने भी एक बार इस बात का जिक्र किया था कि जीपी का संस्मरण सिर्फ वैज्ञानिकों को ही नहीं बल्कि उन सभी छात्रों को भी पढ़ना चाहिए, जो विज्ञान में अपना करियर बनाना चाहते हैं. 

उम्रदराज दिखने के लिए बढ़ाई दाढ़ी

जीपी का जन्म एक मिडिल क्लास फैमली में हुआ. स्कूल में तीन बार प्रमोशन मिलने की वजह से उनको कॉलेज में दाखिले के लिए 15 साल की उम्र तक इंतजार करना पड़ा था. IISC के असिसेंट प्रोफेसर बने तो वह काफी यंग दिखते थे. उम्र दराज दिखने के लिए उन्होंने दाढ़ी बढ़ा ली. उनके मुताबिक, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की चयन समिति में राजनीति की वजह से उनको PHD में दाखिला नहीं मिला. जीपी ने 1966 में IISC से जैव रसायन विज्ञान में पीएचडी की डिग्री प्लाप्त की. 3 साल बाद उसी संस्थान में असिस्टेंट प्रोफेसर बन उन्होंने मिसाल कायम कर दी. 

बेबी फूड से लेकर HIV तक पर किया काम

 जीपी ने 1979 में जब अपने जीन क्लोनिंग प्रयोग को शुरू किया तो उनके सामने कई परेशानियां थीं.  हालांकि वह डीएनए सीक्वेंसिंग के लिए अभिकर्मकों और एंजाइमों को शिकागो से लाए थे, लेकिन उनको जेल वैद्युतकणसंचलन प्रयोग स्थापित करने के लिए एक जोड़ी सूटेबल ग्लास और प्लेटों के लिए अपने छात्र के साथ सेकेंड-हैंड स्कूटर पर पूरे बेंगलुरु का चक्कर लगाना पड़ा. जीपी और उनके छात्रों ने घर में ही यूरिया शुद्ध करने का काम किया. उन्होंने लैथिरस सैटिवस से बेबी फूड सप्लिमेंट के रूप में टॉक्सिन फ्री प्रोटीन बनाया. उन्होंने HIV का पता लगने को लेकर भी काम किया. 




Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *